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जन्म प्रमाण पत्र फर्जीवाड़ा रैकेट का पर्दाफाश, व्हाट्सएप नेटवर्क से चलता था खेल

जन्म प्रमाण पत्र फर्जीवाड़ा रैकेट का पर्दाफाश, व्हाट्सएप नेटवर्क से चलता था खेल

अमरोहा पुलिस ने सरकारी पोर्टल हैक कर व्हाट्सएप के जरिए चल रहे राष्ट्रीय स्तर के जन्म प्रमाण पत्र फर्जीवाड़ा रैकेट का भंडाफोड़ किया है।

जौनपुर: उत्तर प्रदेश की जौनपुर पुलिस ने जन्म प्रमाण पत्र जारी करने से जुड़े एक बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा करते हुए उस संगठित गिरोह को बेनकाब कर दिया है, जो सरकारी पोर्टलों को हैक कर राष्ट्रीय स्तर पर फर्जी पहचान दस्तावेज तैयार कर रहा था। पुलिस की जांच में यह बात सामने आई है कि यह पूरा रैकेट एक विशेष व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से संचालित होता था, जहाँ देश के अलग-अलग राज्यों के लोगों के जन्म प्रमाण पत्र अवैध रूप से तैयार किए जा रहे थे। हैरानी की बात यह है कि अब तक मिले 500 फर्जी प्रमाण पत्रों में कई ऐसे भी हैं जिनमें वास्तविक जन्म स्थान की जगह दूसरे राज्य का विवरण दर्ज है। एक मामले में पश्चिम बंगाल के एक व्यक्ति का जन्म स्थान महाराष्ट्र दिखाकर प्रमाण पत्र उत्तर प्रदेश से जारी कर दिया गया था।

पुलिस अधिकारियों के अनुसार इस रैकेट के कामकाज को समझने में उन प्रारंभिक गिरफ्तारियों ने अहम भूमिका निभाई, जो कुछ महीने पहले शहर कोतवाली क्षेत्र में फोटोशॉप के जरिए फर्जी दस्तावेज बनाने के मामले में की गई थीं। पूछताछ के दौरान इन आरोपियों ने बताया था कि वे केवल सतही स्तर का फर्जीवाड़ा करते हैं, जबकि जन्म प्रमाण पत्र जैसे आधिकारिक दस्तावेजों के फर्जी निर्माण का असली खेल एक अलग नेटवर्क में चलता है। इसी सुराग के आधार पर जलालपुर थाने में असबरनपुर निवासी रतन कुमार की ओर से दर्ज कराई गई प्राथमिकी को जोड़कर पुलिस ने जब जांच गहराई से शुरू की तो इस बड़े रैकेट के तार खुलने लगे।

जांच के दौरान पुलिस ने सबसे पहले मुरलीपुर निवासी विनय यादव, मारूफपुर चंदौली निवासी रामभरत मौर्य और विजयपुरवा चंदौली निवासी शहबाज हसन को गिरफ्तार किया। पूछताछ से खुलासा हुआ कि यह संपूर्ण नेटवर्क एक सुव्यवस्थित व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से संचालित होता था, जहाँ फर्जी प्रमाण पत्र बनवाने वालों का विवरण लिया जाता था और आगे की कार्रवाई के लिए अलग-अलग सदस्यों को सौंपा जाता था। व्हाट्सएप पर प्राप्त हुए संदेशों का संचालन अमरोहा से किया जाता था, जबकि कई बार इसका सिस्टम एक्सेस लखनऊ या बिहार से उपलब्ध कराया जाता था।

गिरोह की कार्यप्रणाली बेहद संगठित थी। विनय यादव उन लोगों से संपर्क करता था जिन्हें फर्जी जन्म प्रमाण पत्र चाहिए होते थे। वह उनके दस्तावेजों का विवरण लेकर उसे रामभरत मौर्य तक पहुँचाता था। रामभरत यह डेटा शहनाज खान को भेजता था, जो एक निजी अस्पताल में वार्ड बॉय के रूप में कार्यरत था। शहनाज आगे यह जानकारी टेकई मऊ निवासी अंकित यादव उर्फ शुभम को देता था, जो नोएडा में बैठकर फर्जी प्रमाण पत्र जारी कराने की पूरी तकनीकी प्रक्रिया को अंजाम देता था। इसके अतिरिक्त हसनपुर अमरोहा निवासी राजीव कुमार और गौतमबुद्ध नगर निवासी राज कुमार उर्फ विक्की भी AnyDesk के जरिए सिस्टम को संचालित कर प्रमाण पत्र जारी करने में सहयोग करते थे।

पुलिस की जांच में जो तथ्य सबसे अधिक चौंकाने वाले रहे, वह गिरोह के मास्टरमाइंड से जुड़े हैं। इस अवैध कारोबार की कमान प्रेमाबिहार कॉलोनी, थाना पारा, लखनऊ निवासी अभिषेक गुप्ता और बिसफी, मधुबनी (बिहार) निवासी राशिद के हाथों में थी। इन दोनों के पास सरकारी पोर्टल की ‘मास्टर आईडी’ थी, जिसके जरिए जन्म प्रमाण पत्र जारी किए जाते थे। अभिषेक गुप्ता ने पूछताछ में स्वीकार किया कि वह पंचायती राज विभाग, ग्रामीण विकास विभाग और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के आधिकारिक ई-मेल आईडी किसी तरह हासिल कर लेता था और उनके पासवर्ड हैक कर लेता था। इसके बाद वह जन्म प्रमाण पत्र पोर्टल पर ‘फॉरगेट पासवर्ड’ विकल्प के माध्यम से ओटीपी उन्हीं ई-मेल पर मंगाता था और पासवर्ड बदलकर पोर्टल में अवैध रूप से लॉग-इन कर लेता था। इसी एक्सेस को AnyDesk के माध्यम से ऑपरेटरों को दिया जाता था, जो दैनिक आधार पर 80 से 100 तक जन्म प्रमाण पत्र फर्जी तरीके से जारी करते थे।

आर्थिक रूप से यह गिरोह बेहद लाभदायक अवैध कारोबार चला रहा था। अभिषेक और राशिद एक दिन के सिस्टम एक्सेस के बदले 20 से 25 हजार रुपये तक वसूलते थे। वहीं, नीचे के ऑपरेटर प्रति प्रमाण पत्र 50 से 100 रुपये का कमीशन प्राप्त करते थे। फर्जी दस्तावेज बनवाने आने वाले व्यक्तियों से 600 से लेकर 1000 रुपये तक लिए जाते थे। इस रैकेट की कमाई प्रतिदिन हजारों रुपये तक पहुँच जाती थी।

एएसपी सिटी ने बताया कि अब तक करीब 500 फर्जी जन्म प्रमाण पत्र पुलिस के हाथ लगे हैं, जिनमें कई की जानकारी गंभीर रूप से संदिग्ध पाई गई है। सभी प्रमाण पत्रों को निरस्त करने के लिए संबंधित विभागों को पत्र भेजा जा चुका है। पुलिस साइबर सेल और तकनीकी विशेषज्ञों की सहायता से इस नेटवर्क की पूरी श्रृंखला की जांच कर रही है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि कितने और दस्तावेज अवैध रूप से जारी किए गए हैं।

पुलिस को आशंका है कि यह गिरोह लंबे समय से सक्रिय हो सकता है और देश के अन्य राज्यों में भी ऐसी गतिविधियों का विस्तार हो सकता है। इस खुलासे से न केवल सरकारी दस्तावेजों की सुरक्षा को लेकर चिंताएँ बढ़ीं हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट हुआ है कि एक संगठित साइबर अपराधी समूह राष्ट्रीय पहचान प्रणाली में सेंध लगाने की क्षमता रखता है।

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