निर्वाचन आयोग द्वारा इस समय मतदाता सूची का विशेष सघन पुनरीक्षण यानी एसआइआर किया जा रहा है, लेकिन इसे लेकर आम मतदाताओं के बीच काफी भ्रम की स्थिति बनी हुई है। कई लोग यह मान रहे हैं कि यह पुनरीक्षण नगर निगम या ग्राम पंचायत की मतदाता सूची का हो रहा है, जबकि वास्तविकता इससे अलग है। कुछ नागरिक यह तर्क दे रहे हैं कि उन्होंने नगर निगम या ग्राम प्रधान के चुनाव में मतदान किया है, इसलिए उनका नाम हर चुनाव की मतदाता सूची में अपने आप शामिल होना चाहिए। चुनावी व्यवस्था में मतदाता सूचियों के अलग अलग प्रकार होने के कारण यह भ्रम पैदा हो रहा है, जिसे समझना बेहद जरूरी है।
सामान्य रूप से भारत में मतदाता सूची के पांच प्रकार होते हैं। इनमें विधानसभा और लोकसभा चुनाव की मतदाता सूची सबसे प्रमुख मानी जाती है, जिसमें हर भारतीय नागरिक निर्धारित आयु पूरी करने पर मतदाता बन सकता है। इसके अलावा नगर निकाय चुनावों के लिए अलग मतदाता सूची होती है, जिसमें नगर निगम नगर पालिका या नगर पंचायत क्षेत्र में रहने वाले लोग शामिल होते हैं। इसी तरह ग्राम पंचायत चुनावों के लिए ग्राम स्तर पर अलग सूची तैयार की जाती है। इसके अतिरिक्त शिक्षक और स्नातक एमएलसी चुनावों के लिए दो विशेष मतदाता सूचियां बनाई जाती हैं, जिनमें वही लोग मतदाता बन सकते हैं जो निर्धारित योग्यता पूरी करते हैं।
विधानसभा की मतदाता सूची का उपयोग लोकसभा चुनाव में भी किया जाता है। एक बार इस सूची में नाम दर्ज हो जाने के बाद मतदाता जीवनपर्यंत विधानसभा और लोकसभा चुनावों में मतदान कर सकता है। आमतौर पर मतदाता पहचान पत्र इसी सूची के आधार पर जारी किया जाता है। वर्तमान में निर्वाचन आयोग द्वारा जिस मतदाता सूची का विशेष सघन पुनरीक्षण किया जा रहा है, वह यही विधानसभा और लोकसभा से जुड़ी मूल मतदाता सूची है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सूची में कोई अपात्र नाम न रहे और सभी पात्र नागरिकों का नाम सही तरीके से दर्ज हो।
नगर निकाय की मतदाता सूची पूरी तरह अलग होती है। यह वार्ड के आधार पर तैयार की जाती है और नगर निगम नगर पालिका या नगर पंचायत के चुनाव से ठीक पहले इसका पुनरीक्षण किया जाता है। उदाहरण के तौर पर वाराणसी नगर निगम क्षेत्र में प्रत्येक वार्ड की अलग मतदाता सूची होती है। इसी प्रकार गांवों में रहने वाले नागरिक ग्राम पंचायत की मतदाता सूची में शामिल होते हैं, जिसका पुनरीक्षण पंचायत चुनावों से पहले किया जाता है। इसलिए यह जरूरी नहीं है कि जिसने नगर निकाय या ग्राम पंचायत में मतदान किया हो, उसका नाम विधानसभा की मतदाता सूची में भी हो।
विशेष मतदाता सूचियां स्नातक और शिक्षक एमएलसी चुनावों के लिए बनाई जाती हैं। स्नातक उत्तीर्ण नागरिक स्नातक एमएलसी चुनाव के लिए और मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में कार्यरत शिक्षक शिक्षक एमएलसी चुनाव के लिए मतदाता बनते हैं। इन दोनों सूचियों की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इन्हें केवल चुनाव के समय तैयार किया जाता है और चुनाव संपन्न होने के बाद इन्हें निरस्त कर दिया जाता है। इसलिए इन सूचियों को स्थायी मतदाता सूची नहीं माना जाता।
इस पूरे परिप्रेक्ष्य को समझना हर मतदाता के लिए आवश्यक है। सही जानकारी के अभाव में लोग अपने नाम को लेकर अनावश्यक चिंता में पड़ जाते हैं या गलत निष्कर्ष निकाल लेते हैं। निर्वाचन आयोग का विशेष सघन पुनरीक्षण अभियान मतदाता सूची को अधिक पारदर्शी और विश्वसनीय बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि मतदाता यह समझ लें कि किस चुनाव के लिए कौन सी मतदाता सूची मान्य होती है, तो वे अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का सही और प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकेंगे।
मतदाता सूची के सघन पुनरीक्षण पर भ्रम, आयोग ने स्पष्ट किया विभिन्न सूचियों का अंतर

निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची के पुनरीक्षण में फैले भ्रम पर स्पष्ट किया कि हर चुनाव के लिए सूची अलग होती है।
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