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अहमदाबाद: प्याज-लहसुन के विवाद में तलाक, हाई कोर्ट ने परिवार अदालत का फैसला रखा बरकरार

अहमदाबाद: प्याज-लहसुन के विवाद में तलाक, हाई कोर्ट ने परिवार अदालत का फैसला रखा बरकरार

गुजरात हाई कोर्ट ने एक अनोखे वैवाहिक विवाद में तलाक को बरकरार रखा, जहां पति को प्याज-लहसुन पसंद था और पत्नी संप्रदाय के कारण नहीं खाती थी।

अहमदाबाद : एक अनोखा वैवाहिक विवाद आखिरकार तलाक पर जाकर खत्म हो गया। गुजरात हाई कोर्ट ने पारिवारिक अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा है जिसमें पति और पत्नी का विवाह केवल इस वजह से समाप्त कर दिया गया था कि पति को प्याज और लहसुन खाना पसंद था, जबकि पत्नी स्वामीनारायण संप्रदाय से जुड़ी होने के कारण इनका सेवन नहीं करती थी। वर्षों तक दोनों एक ही घर में रहते हुए अलग-अलग रसोई चला रहे थे और अंत में यह विवाद रिश्ते को पूरी तरह असहज बना गया।

अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार इस दंपती की शादी 2002 में हुई थी। पति का परिवार सामान्य रूप से प्याज और लहसुन का उपयोग करता था, जबकि पत्नी अपने संप्रदाय की मान्यताओं के कारण ऐसा भोजन नहीं खाती थी। शुरू में पति की मां पत्नी के लिए अलग भोजन बनाती थीं, लेकिन समय के साथ यह व्यवस्था विवाद का कारण बन गई। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि प्याज और लहसुन को लेकर दोनों पक्षों के बीच लंबे समय से तनाव था और यही तलाक का मुख्य आधार बना।

पति और पत्नी के बीच मतभेद बढ़ते चले गए और 2007 में पत्नी अपने बच्चे के साथ ससुराल छोड़कर चली गई। 2013 में पति ने अहमदाबाद की पारिवारिक अदालत में तलाक की अर्जी दायर की, जिसमें आरोप लगाया कि पत्नी ने उसे क्रूरता का सामना कराया। वर्षों तक चले विवाद और गवाही के बाद पारिवारिक अदालत ने मई 2024 में तलाक को मंजूरी दे दी।

पत्नी ने हाई कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील तो की, लेकिन सुनवाई के दौरान उसने तलाक का विरोध नहीं किया। उसकी प्रमुख मांग गुजारा भत्ते को लेकर थी। उसने बताया कि पारिवारिक अदालत द्वारा दिए गए आदेश के बावजूद उसे 18 महीने से गुजारा भत्ता नहीं मिला। पत्नी के वकील ने अदालत को बताया कि कुल बकाया राशि 13 लाख दो हजार रुपये है। इनमें से उसे अंतरिम भत्ते के तौर पर दो लाख बहत्तर हजार रुपये मिले हैं और मुकदमे के दौरान पति चार लाख सत्ताईस हजार रुपये पहले ही जमा कर चुका है।

हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि उपलब्ध राशि का सत्यापन कर उसे तुरंत पत्नी के खाते में स्थानांतरित किया जाए। साथ ही पति को निर्देश दिया गया कि शेष राशि भी पारिवारिक अदालत में जमा कराई जाए ताकि उसे महिला तक पहुंचाया जा सके।

अदालत ने माना कि यह मामला असाधारण परिस्थितियों में पैदा हुआ था और लंबे समय से चली आ रही असहमति ने इस रिश्ते को पुनर्जीवित होने की कोई संभावना नहीं छोड़ी थी। अदालत का यह फैसला उस सामाजिक परिस्थिति को भी रेखांकित करता है जहां व्यक्तिगत मान्यताएं और पारिवारिक परंपराएं कभी कभी वैवाहिक जीवन की संरचना को गहराई से प्रभावित कर देती हैं।

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