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वाराणसी: काशी तमिल संगमम के सातवें दिन सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने मोहा मन

वाराणसी: काशी तमिल संगमम  के सातवें दिन सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने मोहा मन

काशी तमिल संगमम के सातवें दिन नमो घाट पर काशी व तमिलनाडु के कलाकारों ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ दीं।

काशी तमिल संगमम 4.0 का सातवां दिन नमो घाट पर सांस्कृतिक रंगों से सराबोर नजर आया। उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र प्रयागराज और दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र तंजावूर के संयुक्त आयोजन में हुए इस कार्यक्रम में काशी और तमिलनाडु के कलाकारों ने अपनी विविध प्रस्तुतियों से वातावरण को पूर्णतः आध्यात्मिक और उत्सवी बना दिया। ठंड भरी शाम में भी दर्शकों की बड़ी संख्या नमो घाट के मुक्ताकाशी प्रांगण में जुटी रही और कार्यक्रम के आगे बढ़ने के साथ उनका उत्साह भी लगातार बढ़ता गया।

कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. विजय कपूर और उनके दल द्वारा लोक गायन से हुई। उन्होंने धर्म अपना सनातन है, हे शंभु तुम्हारी इच्छा पर, उठते ही सुबह खुद से कुछ बात कीजिए और जीवन गुजर गया तो जीने का ढंग आया जैसे भावपूर्ण भजनों को अपने स्वर में प्रस्तुत किया। तबले पर पं. बलराम मिश्र, बांसुरी पर सुधीर कुमार गौतम और साइट रिदम पर संजय श्रीवास्तव ने संगत की। सह गायन में काजल तिवारी और सुहानी शुक्ला ने कार्यक्रम को और प्रभावी बनाया।

दूसरी प्रस्तुति तमिलनाडु के डॉ. एस ए थनीकचलम द्वारा पम्बई तमिल लोक वादन की रही। यह वादन दक्षिण भारत की देवी पूजन परंपरा से जुड़ा है। विशेष आकर्षण तब देखने को मिला जब एक कलाकार अपने साथी के कंधे पर खड़े होकर ढोल बजाने लगा। इस अनोखे प्रदर्शन ने दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट को चरम पर पहुंचा दिया।

तीसरी प्रस्तुति अदिति जायसवाल और उनके दल द्वारा लोक नृत्य की रही। नेहा चौहान, अरूधंति जायसवाल, साक्षी कटवर, अराध्या केशरी और सुरभि कश्यप ने नृत्य में सहयोग किया और मंच पर जीवंतता का संचार किया। चौथी प्रस्तुति अनन्या सिंह और उनके समूह द्वारा कथक नृत्य की रही। उन्होंने कृष्ण वंदना और मेघ मल्हार पर आधारित गरज गरज जैसे भावनात्मक और कलात्मक नृत्य प्रस्तुत किए। उनकी टीम में सौरभ दास, तनु कुमारी, कविता सिंह और अंजली कुमारी शामिल रहीं।

पंचम प्रस्तुति सुक्ला दत्ता और उनके दल की रही। उन्होंने अपनी प्रस्तुति गंगा स्तुति से आरंभ की और इसके बाद मीरा भजन पर नृत्य किया। कार्यक्रम का समापन तराना से हुआ, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी प्रस्तुति में सम्मिलित कलाकारों ने अपनी निपुणता से पूरे वातावरण को सौंदर्यमय बना दिया।

नमो घाट पर सैकड़ों की संख्या में आए पर्यटकों और स्थानीय लोगों ने इन प्रस्तुतियों का आनंद लिया। काशी और तमिल परंपराओं का यह संगम न केवल सांस्कृतिक संवाद को मजबूत करता है, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों की कलाओं को एक मंच पर लाकर देश की एकता और बहुलता को भी दर्शाता है।

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