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काशी तमिल संगमम का चौथा संस्करण आज नमो घाट पर होगा शुरू, जुड़ेंगे 1400 प्रतिनिधि

काशी तमिल संगमम का चौथा संस्करण आज नमो घाट पर होगा शुरू, जुड़ेंगे 1400 प्रतिनिधि

उत्तर-दक्षिण भारत के सांस्कृतिक संबंध मजबूत करने काशी तमिल संगमम का चौथा संस्करण नमो घाट पर आज से शुरू, 1400 से अधिक प्रतिनिधि पहुंचे।

नमो घाट पर आज से काशी तमिल संगमम का चौथा संस्करण शुरू होने जा रहा है। उत्तर और दक्षिण भारत के सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने के उद्देश्य से आयोजित होने वाला यह कार्यक्रम इस बार तमिल करकलाम यानी तमिल सीखें थीम के साथ शुरू किया जा रहा है। आयोजन के लिए तमिलनाडु से 1400 से अधिक प्रतिनिधि काशी पहुंच रहे हैं, जिनमें छात्र, कलाकार, विद्वान और सांस्कृतिक समूह शामिल हैं। यह कार्यक्रम मंगलवार को नमो घाट पर भव्य उद्घाटन के साथ शुरू होगा, जहां सांस्कृतिक विविधता और परंपरागत कला शैलियों का एक अद्वितीय संगम देखने को मिलेगा।

उद्घाटन समारोह में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि, पुडुचेरी के उप राज्यपाल के कैलासनाथन सहित कई विशिष्ट अतिथि शामिल होंगे। मंच पर काशी और तमिलनाडु के पारंपरिक कलाकार अपनी संयुक्त प्रस्तुतियों के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक एकता की जीवंत तस्वीर पेश करेंगे। प्रतिनिधियों के पहले छात्र दल में कन्याकुमारी से 43, तिरुचिरापल्ली से 86 और चेन्नई से 87 छात्र शामिल हैं, जो काशी के विभिन्न स्थलों और शैक्षणिक गतिविधियों में हिस्सा लेंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में मन की बात कार्यक्रम में काशी तमिल संगमम का जिक्र करते हुए कहा था कि यह आयोजन तमिल भाषा और संस्कृति से प्रेम करने वाले सभी लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बन चुका है। प्रधानमंत्री ने देशवासियों से आग्रह किया है कि वे इस संगम में शामिल होकर एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना को और मजबूत बनाएं। उनकी अपील के बाद आयोजन को लेकर लोगों में उत्साह और अधिक बढ़ गया है।

प्रतिनिधिमंडल के काशी पहुंचने के बाद उन्हें सबसे पहले हनुमान घाट ले जाया जाएगा, जहां वे गंगा स्नान करेंगे। इसके बाद दक्षिण भारतीय परंपरा से जुड़े काशी के कई ऐतिहासिक मंदिरों में दर्शन पूजन किया जाएगा। प्रतिनिधि वहां के समृद्ध इतिहास और पुरातन संबंधों को समझेंगे। इसके बाद वे श्रीकाशी विश्वनाथ धाम जाएंगे और मां अन्नपूर्णा रसोई में प्रसाद के रूप में भोजन ग्रहण करेंगे। दिन का अंतिम चरण बीएचयू में आयोजित अकादमिक सत्र में होगा, जिसमें छात्र और विद्वान दोनों ही भाग लेंगे और उत्तर तथा दक्षिण भारत के सांस्कृतिक संवाद को आगे बढ़ाएंगे।

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