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सारनाथ जापानी बौद्ध मंदिर में ओ एशिकी पर्व की भव्य तैयारी, 20-21 नवंबर को आयोजन

सारनाथ जापानी बौद्ध मंदिर में ओ एशिकी पर्व की भव्य तैयारी, 20-21 नवंबर को आयोजन

सारनाथ के जापानी बौद्ध मंदिर में 744वें ओ एशिकी पर्व की तैयारियां शुरू, मंदिर को शकुरा फूलों से सजाया गया, 20-21 नवंबर को होगा आयोजन।

सारनाथ स्थित जापानी बौद्ध मंदिर में ओ एशिकी पर्व की तैयारियां पूरी रौनक के साथ शुरू हो चुकी हैं। मंदिर परिसर को इस अवसर पर जापान के प्रसिद्ध शकुरा फूलों की सजावट और बिजली की रंगीन झालरों से भव्य रूप दिया गया है। यह अनोखी सजावट इन दिनों सारनाथ पहुंचने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। ओ एशिकी पर्व जापानी बौद्ध अनुयायियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है और इस बार इसे जापानी वाद्य यंत्रों की धुन और मंत्रो के उच्चारण के साथ धूमधाम से मनाया जाएगा।

धर्म चक्र इंडो जापान बुद्धिस्ट कल्चरल सोसाइटी की अध्यक्षा भिक्षु म्यो जित्सु नागा कुबो ने बताया कि इस वर्ष 744वां ओ एशिकी पर्व मनाया जाएगा। इसके साथ ही मंदिर का 33वां और विश्व शांति स्तूप का 15वां वार्षिकोत्सव भी 20 और 21 नवंबर को आयोजित होगा। दोनों दिनों के कार्यक्रम की विस्तृत तैयारियां पूरी कर ली गई हैं और मंदिर परिसर को उत्सव के अनुकूल सजाया जाएगा है। मंदिर के प्रभारी कालजंग नोरबू ने जानकारी दी कि 20 नवंबर की शाम को जापानी सांस्कृतिक नृत्य बच्चों द्वारा प्रस्तुत किया जाएगा, जो इस उत्सव का मुख्य आकर्षण रहेगा।

मंदिर की सजावट में जापान की पारंपरिक कला और भारतीय वातावरण का सुंदर मिश्रण देखने को मिल रहा है। शकुरा फूलों के साथ साथ मंदिर परिसर को विभिन्न देशों के झंडों से भी सजाया गया है जो अंतरराष्ट्रीय सहभागिता और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है। रंगीन झालरों की रोशनी पूरे परिसर को उत्सव के रंग में रंग रही है और शाम के समय यह दृश्य और भी मनमोहक हो जाता है।

दो दिवसीय पर्व में एक दर्जन से अधिक जापानी बौद्ध अनुयायी और कई बौद्ध मठों के भिक्षु शामिल होंगे। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जापान और भारत के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान को और मजबूत करने का भी एक माध्यम बनता है। श्रद्धालु इस अवसर पर एकत्रित होकर शांति, करुणा और समर्पण के साथ अपने धर्म का पालन करते हैं।

सारनाथ जैसी ऐतिहासिक और आध्यात्मिक नगरी में इस पर्व का आयोजन और भी विशेष महत्व रखता है। यहां बुद्ध धर्म की प्राचीन परंपराओं और आधुनिक सांस्कृतिक प्रस्तुति का सुंदर संगम देखने को मिलता है। श्रद्धालुओं का कहना है कि ऐसे आयोजन भारत और जापान के बीच आध्यात्मिक संबंधों को और मजबूत बनाते हैं और आने वाली पीढ़ियों को सांस्कृतिक विरासत से जोड़ते हैं।

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