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अखिलेश यादव का दीपावली दीयों पर बयान, फिजूलखर्ची कहने पर सोशल मीडिया पर बवाल

अखिलेश यादव का दीपावली दीयों पर बयान, फिजूलखर्ची कहने पर सोशल मीडिया पर बवाल

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव दीपावली दीयों को फिजूलखर्ची बताकर विवादों में घिरे, सोशल मीडिया पर सनातन विरोधी बयानबाजी की आलोचना हो रही है।

वाराणसी: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव दीपावली के अवसर पर दीयों और मोमबत्तियों को फिजूलखर्ची बताने वाले बयान को लेकर विवादों में घिर गए हैं। उनके इस बयान की सोशल मीडिया पर व्यापक आलोचना हो रही है। लोगों ने इसे हिंदू धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाला बताया और पार्टी पर राम भक्तों के खून से हाथ रंगे होने का आरोप लगाया। इस बयान ने राजनीतिक माहौल को गर्म कर दिया है।

अखिलेश यादव ने अयोध्या में दीयों और मोमबत्तियों को जलाने को लेकर कहा कि पूरी दुनिया क्रिसमस के समय शहरों को महीनों तक जगमगाते रहते हैं, हमें उनसे सीखना चाहिए। उनका यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद लोगों ने इसे सनातन विरोधी मानसिकता का प्रतीक बताया। विश्लेषकों का कहना है कि यह केवल एक व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं है, बल्कि समाजवादी पार्टी की वैचारिकी का हिस्सा है।

सपा पर अक्सर धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों से टकराव के आरोप लगाए जाते रहे हैं। पिछले वर्षों में पार्टी नेताओं द्वारा कई विवादास्पद बयान दिए जा चुके हैं। कभी उन्होंने धार्मिक स्थलों के महत्व पर टिप्पणियां की हैं तो कभी सांस्कृतिक आयोजनों को लेकर विरोध जताया है। सपा शासनकाल में कब्रिस्तानों की बाउंड्री पर बड़े पैमाने पर खर्च, कांवड़ यात्रा पर रोक और राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से दूरी जैसे फैसले भी अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और सनातन विरोधी होने से जोड़े गए थे।

विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा जहां धर्म और आस्था को अपने वैचारिक आधार के रूप में प्रस्तुत करती है, वहीं सपा बार-बार ऐसे बयान देती रही है जो परंपरागत प्रतीकों से टकराते हैं। अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव की राह पर चलते हुए धार्मिक प्रतीकों और सांस्कृतिक परंपराओं के साथ टकराव को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। भाजपा नेताओं ने इसे सनातन परंपराओं और धार्मिक भावनाओं की रक्षा का मुद्दा बना दिया है, जबकि सपा इसे राजनीतिक आलोचना का हिस्सा बता रही है।

इस विवाद ने न केवल सोशल मीडिया पर तीखी बहस छेड़ी है, बल्कि आगामी चुनावी परिदृश्य में राजनीतिक दलों के रुख और रणनीतियों पर भी असर डाल सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि धार्मिक प्रतीकों और सांस्कृतिक आयोजनों को लेकर राजनीति अब पहले से अधिक संवेदनशील और विवादास्पद होती जा रही है।

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