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इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र संगठनों का प्रदर्शन, निलंबन पर प्रशासन को घेरा

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र संगठनों का प्रदर्शन, निलंबन पर प्रशासन को घेरा

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र निलंबन के विरोध में प्रदर्शन, प्रशासन पर छात्रों की आवाज दबाने का आरोप।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बुधवार को माहौल उस समय तनावपूर्ण हो गया जब आल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन आइसा, दिशा और अन्य छात्र संगठनों ने एक छात्र के निलंबन के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। मुख्य गेट और लाइब्रेरी परिसर में छात्रों की भीड़ इकट्ठा हुई और विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ नारे लगाए। छात्रों का आरोप है कि प्रशासन लगातार भेदभावपूर्ण रवैया अपना रहा है और छात्र गतिविधियों को व्यवस्थित रूप से दबाने की कोशिश कर रहा है।

प्रदर्शन में शामिल छात्रों ने कहा कि हाल के दिनों में प्रशासन द्वारा छात्रों से जुड़े मुद्दों को संवाद की बजाय दंडात्मक कार्रवाई के माध्यम से निपटाया जा रहा है। आरोप है कि विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित संगोष्ठियों और विचार गोष्ठियों को रोकने की कोशिश की जा रही है। छात्रों ने इसे शिक्षा विरोधी मानसिकता बताया और कहा कि इस तरह की कार्रवाइयां लोकतांत्रिक वातावरण को बाधित करती हैं।

आइसा इकाई के सह सचिव मानवेंद्र ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन परिसर को एक तरह की छावनी जैसा बना रहा है। रचनात्मक कार्यक्रमों, बातचीत और अकादमिक गतिविधियों को रोककर छात्रों की आवाज दबाई जा रही है। उन्होंने कहा कि जब छात्र अपनी बात रखने की कोशिश करते हैं तो प्रशासन निलंबन जैसी कठोर कार्रवाई कर देता है, जो बेहद चिंताजनक है।

लाइब्रेरी गेट पर किए गए विरोध प्रदर्शन में छात्र संगठनों ने निलंबन को तुरंत वापस लेने की मांग उठाई। उनका कहना है कि न केवल निलंबन रद्द किया जाए बल्कि प्रशासनिक रवैये में भी बदलाव लाया जाए। छात्रों ने मांग रखी कि विश्वविद्यालय परिसर में लोकतांत्रिक वातावरण बहाल किया जाए और रचनात्मक कार्यक्रमों की अनुमति दी जाए।

छात्र नेताओं ने यह भी मांग की कि वर्तमान छात्र विरोधी रवैया अपनाने वाले प्रशासन को हटाकर नए अधिकारियों की नियुक्ति की जाए, ताकि परिसर में सकारात्मक वातावरण बन सके। संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगों को जल्द नहीं माना गया तो आंदोलन और तेज किया जाएगा।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में चल रहा यह विरोध प्रदर्शन एक बार फिर से इस सवाल को उठाता है कि उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अकादमिक माहौल कितना सुरक्षित है। आने वाले दिनों में प्रशासन की प्रतिक्रिया तय करेगी कि मामला सुलझता है या संघर्ष और बढ़ता है।

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