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वाराणसी: रामनगर में बाबा साहेब को श्रद्धांजलि, उनके विचारों और संघर्षों को किया गया नमन

वाराणसी: रामनगर में बाबा साहेब को श्रद्धांजलि, उनके विचारों और संघर्षों को किया गया नमन

वाराणसी के रामनगर में महापरिनिर्वाण दिवस पर डॉ. भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि दी गई, उनके विचारों और संघर्षों को नमन किया गया।

वाराणसी/रामनगर: मंडल रामनगर के भीटी क्षेत्र में शनिवार को भारत के संविधान के महान निर्माता और समाज सुधारक ‘भारत रत्न’ डॉ. भीमराव अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर श्रद्धासुमन अर्पित किए गए। स्थानीय मंडल इकाई द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में उनके स्मृति चिन्ह पर पुष्पांजलि कर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि दी गई। पूरा वातावरण बाबा साहेब के प्रति कृतज्ञता, सम्मान और सामाजिक समानता के संकल्प से भरा रहा।

कार्यक्रम में उपस्थित नेताओं और कार्यकर्ताओं ने डॉ. अंबेडकर के जीवन, संघर्ष और राष्ट्रनिर्माण में दिए गए उनके योगदान को याद करते हुए कहा कि वे न केवल विधि शास्त्र के महान जानकार थे, बल्कि भारत के सामाजिक ढांचे में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले दूरदर्शी चिंतक भी थे।

मंडल अध्यक्ष प्रीति सिंह ने कहा कि बाबा साहेब ने भारतीय समाज में सदियों से चले आ रहे भेदभाव की जंजीरों को तोड़ने का साहसिक काम किया। उन्होंने कहा कि उनका संपूर्ण जीवन संघर्ष, अध्ययन और समाज के सबसे कमजोर तबके को उठाने की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।

मंडल महामंत्री रितेश पाल ने इस अवसर को सामाजिक न्याय के संकल्प के रूप में देखा। उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर की नीतियां आज भी वंचितों, शोषितों और उपेक्षित वर्गों के लिए मार्गदर्शक हैं।

महामंत्री जितेंद्र पांडे ‘झुंझुनू’ ने बताया कि बाबा साहेब ने सिर्फ कानून नहीं लिखा, बल्कि एक ऐसा सामाजिक ढांचा खड़ा किया जिसमें हर नागरिक को समान अवसर और अधिकार मिले।

पूर्व सभासद अशोक जायसवाल ने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने शिक्षा को वह हथियार बताया जो समाज को बदल सकता है। आज उनका यह विचार पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण दिखाई देता है।

महानगर मंत्री अनुपम गुप्ता ने कहा कि डॉ. अंबेडकर का योगदान भारत की लोकतांत्रिक नींव को मजबूत बनाने में निर्णायक रहा है। संविधान में निहित मौलिक अधिकार उनकी दूरदर्शिता का प्रमाण हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी बाबा साहेब के सामाजिक समरसता और राष्ट्र निर्माण के संदेशों को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।

प्रारंभिक जीवन और संघर्ष 14 अप्रैल 1891 को महू (मध्य प्रदेश) में जन्मे डॉ. अंबेडकर का बचपन संघर्षों से भरा था। जाति आधारित भेदभाव ने उनके जीवन की राह कठिन बनाई, लेकिन उन्होंने कभी अध्ययन और आत्मबल को कमजोर नहीं होने दिया। कोलंबिया यूनिवर्सिटी और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से उच्च शिक्षा प्राप्त कर वे भारत लौटे और सामाजिक सुधार तथा राष्ट्र निर्माण में स्वयं को समर्पित कर दिया।

उन्होंने दलितों, वंचितों, महिलाओं और सभी कमजोर वर्गों के अधिकारों की लड़ाई को एक नई दिशा दी। अस्पृश्यता, असमानता और जातिगत दमन के खिलाफ उनकी आवाज पूरे भारत में परिवर्तन का सूत्रधार बनी। उन्होंने शिक्षा, संगठन और संघर्ष को सामाजिक परिवर्तन का आधार बताया जो आज भी सामाजिक न्याय की प्रमुख धुरी कही जाती है।

भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ. अंबेडकर ने, लोकतंत्र की मजबूत नींव रखी, विधि और न्याय प्रणाली को आधुनिक रूप दिया, मूल अधिकारों को प्रत्येक नागरिक के लिए समान बनाया, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता के सिद्धांतों को स्थापित किया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि किसी भी नागरिक के साथ जाति, वर्ग, लिंग, भाषा या धर्म के आधार पर भेदभाव न हो।भारतीय लोकतंत्र के स्तंभों में उनकी भूमिका निर्विवाद है।

डॉ. अंबेडकर द्वारा स्थापित विचार, समानता, शिक्षा, अधिकार, संवैधानिक मूल्य और सामाजिक समरसता आज भी देश को दिशा दिखा रहे हैं।

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