गोरखपुर: भोजपुरी संगोष्ठी का हुआ सफल आयोजन, भाषा और संस्कृति के संरक्षण पर मंथन

गोरखपुर में आयोजित एक दिवसीय भोजपुरी संगोष्ठी में भाषा व लोकसंस्कृति के संरक्षण पर गहरा मंथन हुआ, कुलपति और मॉरीशस की गायिका ने किया संबोधित।

Sat, 20 Dec 2025 22:09:43 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

गोरखपुर: भोजपुरी भाषा और लोकसंस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और वैश्विक पहचान को लेकर गोरखपुर में आयोजित एक दिवसीय भोजपुरी संगोष्ठी ने बौद्धिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक स्तर पर गहरी छाप छोड़ी। भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया “भाई” के तत्वावधान में स्थानीय सरस्वती विद्या मंदिर, आर्य नगर में मंगलवार को संपन्न हुई इस संगोष्ठी में भोजपुरी की जड़ों, उसकी परंपराओं और समकालीन चुनौतियों पर व्यापक मंथन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने की। उन्होंने लोक कलाओं को बचाने और उन्हें नई पीढ़ी तक पहुंचाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि मातृभाषा से प्रेम और उस पर गर्व ही किसी भी संस्कृति की सबसे बड़ी ताकत होती है।

संगोष्ठी की मुख्य अतिथि मॉरीशस की प्रख्यात लोकगायिका एवं भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन की अध्यक्ष डॉ. वर्षारानी बिसेसर रहीं, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में गोरखपुर के महापौर डॉ. मंगलेश श्रीवास्तव उपस्थित रहे। डॉ. वर्षारानी बिसेसर ने भारत और मॉरीशस के बीच सांस्कृतिक समानताओं को रेखांकित करते हुए कहा कि दोनों देशों की लोक परंपराएं एक ही सांस्कृतिक चेतना से जुड़ी हैं। उन्होंने कहा कि हल्दी गीत जैसे लोकगीतों में जो संवेदना है, वह सीमाओं से परे जाकर लोगों को जोड़ती है और ऐसे सांस्कृतिक रिश्तों को और मजबूत किए जाने की जरूरत है। वहीं महापौर डॉ. मंगलेश श्रीवास्तव ने भोजपुरी को तेजी से आगे बढ़ती हुई भाषा बताते हुए कहा कि इसका भविष्य उज्ज्वल है और यह वास्तव में एक वैश्विक भाषा के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है।

संगोष्ठी के प्रथम सत्र में “भोजपुरी संस्कृति, परंपरा और समकाल” विषय पर गहन विचार-विमर्श हुआ। मुख्य वक्ता नालंदा विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर एवं पूर्व अध्यक्ष प्रो. रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव ‘परिचय दास’ ने भोजपुरी संस्कृति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और उसके आधुनिक संदर्भों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा का विकास उसके व्यवहारिक उपयोग से ही संभव है, बोलने, लिखने और रचनात्मक प्रयोग से ही भोजपुरी आगे बढ़ेगी। उन्होंने यह भी कहा कि भोजपुरी साहित्य और कलाओं की वैश्विक पहचान है, लेकिन इसके अकादमिक आधार को और सुदृढ़ किए जाने की आवश्यकता है। विशेष आमंत्रित वक्ताओं प्रो. प्रभाकर सिंह, प्रो. दीपक प्रकाश त्यागी और वंदना श्रीवास्तव ने भी अपने विचार रखे। प्रो. प्रभाकर सिंह ने भोजपुरी को प्रतिरोध की भाषा बताया, जबकि प्रो. दीपक प्रकाश त्यागी ने इसे जनभाषा के रूप में रेखांकित किया। वंदना श्रीवास्तव ने भोजपुरी कला को अद्वितीय बताते हुए अपने योगदान को मातृभाषा और माँ के प्रति श्रद्धा से जोड़ा।

इस अवसर पर भोजपुरी लोकसंस्कृति के संरक्षण और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसके प्रचार-प्रसार में उल्लेखनीय योगदान के लिए डॉ. वर्षारानी बिसेसर को “मैनावती देवी लोक गायिका राष्ट्रीय सम्मान” से सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें ₹11,000 की नगद राशि और ट्रॉफी प्रदान की गई, जिसे उपस्थित जनसमूह ने तालियों के साथ सराहा।

संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में “गीत-गवनई” कार्यक्रम के अंतर्गत पूर्वांचल के विवाह संस्कारों की संगीतमयी प्रस्तुति दी गई। भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया “भाई” के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत इस सांस्कृतिक कार्यक्रम ने लोकजीवन की जीवंत झलक प्रस्तुत की और दर्शकों को भावविभोर कर दिया।

पूरे आयोजन में भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया “भाई” के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राकेश श्रीवास्तव की भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय रही। संयोजक के रूप में उन्होंने न केवल कार्यक्रम की रूपरेखा को सशक्त बनाया, बल्कि भोजपुरी भाषा और संस्कृति को एक मंच पर विद्वानों, कलाकारों और जनप्रतिनिधियों से जोड़ने का सार्थक प्रयास किया। अपने संबोधन में डॉ. राकेश श्रीवास्तव ने कहा कि भोजपुरी केवल भाषा नहीं, बल्कि एक जीवन-दृष्टि और सांस्कृतिक चेतना है, जिसे संस्थागत और सामाजिक दोनों स्तरों पर मजबूत करने की जरूरत है। उनके नेतृत्व और दूरदर्शिता के चलते यह संगोष्ठी विचार, कला और संवाद का प्रभावशाली केंद्र बन सकी।

कार्यक्रम का संचालन शिवेन्द्र पांडेय ने किया, जबकि अंत में डॉ. राकेश श्रीवास्तव ने सभी अतिथियों, वक्ताओं, कलाकारों और दर्शकों के प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में पुष्प दन्त जैन, डॉ. संजयन त्रिपाठी, हरि प्रसाद सिंह, श्री नारायण पांडेय, दिनेश गोरखपुरी, कीर्ति रमन दास, चन्द्रेश्वर शर्मा ‘परवाना’, शिव जी सिंह सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी और संस्कृतिकर्मी उपस्थित रहे। दोपहर 2:30 बजे से सायं 6 बजे तक चले इस आयोजन ने गोरखपुर को एक बार फिर भोजपुरी सांस्कृतिक विमर्श का महत्वपूर्ण केंद्र बना दिया।

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