Wed, 19 Nov 2025 20:16:04 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
वाराणसी: रानी लक्ष्मीबाई के जन्मोत्सव पर मंगलवार को भदैनी स्थित उनकी प्रतिमा स्थल पर श्रद्धा और राष्ट्रभावना का अद्वितीय संगम देखने को मिला। कैंट विधानसभा के लोकप्रिय एवं सक्रिय विधायक सौरभ श्रीवास्तव ने भाजपा कार्यकर्ताओं संग पहुंचकर वीरांगना की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और उनकी स्मृति को नमन किया। जनसंपर्क, विकास कार्यों और जनता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए प्रसिद्ध विधायक सौरभ श्रीवास्तव का यह भावपूर्ण कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहा।
स्थानीय लोगों के अनुसार, प्रतिमा स्थल पर उनकी उपस्थिति न सिर्फ औपचारिकता थी, बल्कि जनसंवेदनाओं से जुड़ा एक जीवंत उदाहरण भी, जहाँ उन्होंने मातृभूमि के लिए बलिदान देने वाली राष्ट्रनायिका को संपूर्ण आदर के साथ स्मरण किया।
विधायक श्रीवास्तव ने कहा कि “रानी लक्ष्मीबाई नारी शक्ति का शाश्वत प्रतीक” पुष्पार्चन के बाद अपने संबोधन में विधायक सौरभ श्रीवास्तव ने रानी लक्ष्मीबाई को भारतीय इतिहास की अनुपम शूरवीर बताया। उन्होंने कहा कि “अदम्य साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई को उनकी जयंती पर स्मरण करते हुए मैं उन्हें शत्-शत् नमन करता हूँ। प्रथम स्वाधीनता संग्राम में जिस निर्भीकता से उन्होंने अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध संघर्ष किया, वह भारत के गौरवशाली इतिहास की अमिट गाथा है। नारी शक्ति को प्रेरित करने में उनका योगदान सदियों तक याद रखा जाएगा।”
विधायक श्रीवास्तव के इस वक्तव्य ने कार्यक्रम में मौजूद युवा कार्यकर्ताओं के बीच नई ऊर्जा भरी। कई कार्यकर्ताओं ने कहा कि विधायक श्रीवास्तव द्वारा ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के प्रति दिखाया जाने वाला सम्मान उनके नेतृत्व के संवेदनशील और सांस्कृतिक पक्ष को सामने लाता है।
इस अवसर पर भाजपा संगठन के कई पदाधिकारी भी उपस्थित रहे, जिनमें प्रमुख रूप से मण्डल अध्यक्ष अनुराग शर्मा, वरिष्ठ भाजपा नेता दीपक मिश्रा, सेक्टर संयोजक सुरेश गुप्ता, बूथ अध्यक्ष सचिन शर्मा, बूथ अध्यक्ष गोविन्द चतुर्वेदी, बूथ अध्यक्ष सतेंद्र ठाकुर, अब्दुल सलाम समेत कार्यकर्ताओं की उल्लेखनीय भागीदारी रही। सभी ने रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर राष्ट्रभक्ति का संकल्प दोहराया।
रानी लक्ष्मीबाई भारत की उन असाधारण वीरांगनाओं में शामिल हैं जिन्होंने अंग्रेज़ी शासन को अपने साहस, संकल्प और रणनीति से चुनौती दी। 1828 में वाराणसी में जन्मी मणिकर्णिका, जिन्हें बाद में दुनिया ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के रूप में जाना, बचपन से ही साहसी, निर्भीक और युद्धकला में निपुण थीं।
बनारस से उनका नाता मात्र जन्म तक सीमित नहीं था। यहाँ के सांस्कृतिक परिवेश, आध्यात्मिक ऊर्जा और स्वाधीनता की भावना ने ही उनके भीतर वह तेजस्विता भरी जो बाद में अंग्रेजों के सामने एक चट्टान की तरह खड़ी हुई। वाराणसी की गलियों में पली-बढ़ी मणिकर्णिका ने बचपन में ही घुड़सवारी, तलवारबाजी और धनुर्विद्या सीखकर युद्धकला में निपुणता प्राप्त की। यही संस्कार आगे चलकर झांसी के किले की दीवारों पर ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध अमर प्रतीक बने।
1857 का संग्राम भारतीय इतिहास का वह मोड़ था जिसने मणिकर्णिका को रानी लक्ष्मीबाई के रूप में अमर कर दिया। उनका प्रसिद्ध उद्घोष “मैं अपनी झांसी नहीं दूँगी”।
आज भी भारतीयों में देशभक्ति और आत्म-सम्मान की लौ जलाता है।
उन्होंने अंग्रेजी सेना का सामना न केवल रणनीति से बल्कि अनुपम वीरता से किया। युद्ध के अंतिम क्षण तक रानी ने अपनी तलवार नहीं छोड़ी। उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अविस्मरणीय अध्याय है।
भदैनी स्थित प्रतिमा पर आयोजित यह श्रद्धांजलि सिर्फ एक औपचारिक आयोजन नहीं था, बल्कि वाराणसी की उस गौरवशाली ऐतिहासिक धरोहर को पुनः स्मरण करने का अवसर भी था। विधायक सौरभ श्रीवास्तव की अगुवाई में भाजपा कार्यकर्ताओं ने जिस सम्मान और गरिमा के साथ रानी लक्ष्मीबाई को नमन किया, उसने यह संदेश दिया कि काशी आज भी उन आदर्शों और परंपराओं की धुरी है जिनसे भारत की स्वाधीनता का चिरंतन इतिहास जुड़ा है।