वाराणसी: पॉक्सो दोषी को उम्रकैद, अदालत ने पीड़िता को 35 हजार रुपये क्षतिपूर्ति का आदेश दिया

वाराणसी की विशेष पॉक्सो कोर्ट ने ढाई साल पुराने दुष्कर्म मामले में श्याम सुंदर उर्फ सुक्खू को उम्रकैद की सजा सुनाई, ₹35 हजार जुर्माना भी लगा।

Wed, 03 Dec 2025 12:05:40 - By : Shriti Chatterjee

वाराणसी में एक संवेदनशील मामले पर लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है। जिला सत्र न्यायालय की विशेष पॉक्सो कोर्ट ने ढाई साल पहले हुई घटना में दोषी पाए गए श्याम सुंदर उर्फ सुक्खू को उम्रकैद की सजा दी है। अदालत ने इसे अमानवीय और समाज विरोधी कृत्य बताते हुए उस पर पैंतीस हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। यह पूरी राशि अदालत ने पीड़िता को क्षतिपूर्ति के तौर पर देने का आदेश दिया है।

जंसा थाना क्षेत्र में रहने वाली आठ साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म का यह मामला 23 जून 2023 को दर्ज हुआ था। पीड़िता की मां ने थाने में दी गई तहरीर में बताया कि उसकी बेटी घर में खेल रही थी। इसी दौरान पड़ोस में रहने वाला आरोपी उनके घर पहुंचा और बच्ची को बहला कर अपने साथ ले गया। मां के अनुसार आरोपी उसे अपने कमरे में ले गया और वहां उसके साथ दुष्कर्म किया। इसके बाद बच्ची रोते हुए घर लौटी और अपनी मां को घटना की जानकारी दी।

परिजनों का आरोप था कि शुरुआत में पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया। हालांकि तहरीर के बाद जांच शुरू हुई और बच्ची के बयान तथा साक्ष्यों के आधार पर पुलिस ने घटना की पुष्टि की। इसके बाद आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

मामले की सुनवाई विशेष न्यायाधीश पॉक्सो एक्ट प्रथम विकास श्रीवास्तव की अदालत में हुई। अभियोजन की ओर से विशेष लोक अभियोजक आदित्य नारायण सिंह ने कठोर सजा की मांग करते हुए कहा कि अभियुक्त का कृत्य समाज के लिए गहरी चिंता का विषय है। अदालत को बताया गया कि घटना की पुष्टि के लिए छह गवाहों को परीक्षित कराया गया और सभी ने अलग अलग रूप से घटना के तथ्यों को मजबूत किया। बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता शाईनी शेख ने दलील देते हुए आरोपी के लिए नरमी की मांग की। वहीं अदालत में फैसला सुनने के दौरान आरोपी खुद भी दया की गुहार लगाता रहा।

लंबी सुनवाई और साक्ष्यों के विश्लेषण के बाद अदालत ने माना कि आरोपी ने गंभीर अपराध किया है और उसे समाज में रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। अदालत ने उम्रकैद और जुर्माने का आदेश सुनाकर पीड़िता और उसके परिवार को न्याय देने की कोशिश की है। यह फैसला ऐसे मामलों में कानूनी प्रक्रिया के महत्व को भी बताता है जहां बच्चियों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है।

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