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अनंत चतुर्दशी 2025: विष्णु भक्ति और गणेश विसर्जन का दिव्य संगम

अनंत चतुर्दशी 2025: विष्णु भक्ति और गणेश विसर्जन का दिव्य संगम

आज देशभर में अनंत चतुर्दशी का पर्व श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है, गणेश महोत्सव का समापन होगा।

वाराणसी/लखनऊ/मुंबई: आज शनिवार, 6 सितंबर 2025 को देशभर में अनंत चतुर्दशी का पावन पर्व अत्यंत श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। यह दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा और दस दिवसीय गणेश महोत्सव के समापन का प्रतीक है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर मनाए जाने वाले इस पर्व का विशेष महत्व है। सुबह से ही मंदिरों में घंटानाद, मंत्रोच्चार और भजनों की गूंज सुनाई दे रही है। भक्तजन व्रत रखकर अनंत सूत्र धारण कर रहे हैं और शाम को गणपति बप्पा की भव्य शोभायात्राओं के साथ उन्हें विदाई देने की तैयारी है।

भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की आराधना
अनंत चतुर्दशी का मुख्य आकर्षण भगवान विष्णु की अनंत स्वरूप में पूजा है। मान्यता है कि इस दिन विष्णुजी की साधना करने से जीवन में स्थिरता, घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि के मार्ग खुलते हैं। पुरुष अपने दाहिने हाथ में और महिलाएं बाएं हाथ में अनंत सूत्र धारण करते हैं। यह सूत्र चौदह गांठों वाला लाल धागा होता है, जो विष्णुजी के बनाए चौदह लोकों का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि यह सूत्र जीवन की हर कठिनाई को दूर करता है और परिवार पर भगवान की कृपा बनी रहती है।

गणेश महोत्सव का समापन
अनंत चतुर्दशी का एक और विशेष महत्व यह है कि इसी दिन दस दिन तक चले गणेश महोत्सव का समापन होता है। पूरे भारत में भक्तजन "गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ" के जयकारों के साथ गणपति बप्पा को विदा करते हैं।

महाराष्ट्र और मुंबई में आज का दिन विशेष रूप से अद्भुत होता है। समुद्र किनारे लाखों लोग बप्पा की शोभायात्राओं में शामिल होकर उन्हें जल में विसर्जित करते हैं।

उत्तर भारत में घरों और मंदिरों में भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना होती है और अनंत सूत्र धारण करने की परंपरा निभाई जाती है।

गुजरात और मध्य प्रदेश में भी गणेश विसर्जन के साथ-साथ विष्णु पूजा का अनूठा संगम देखने को मिलता है।

पौराणिक कथा और मान्यता
अनंत चतुर्दशी का महत्व महाभारत से भी जुड़ा है। कथा के अनुसार, जब पांडवों ने राजसूय यज्ञ किया तो कौरवों और शकुनि की चाल से वे अपना राज-पाट खो बैठे। तब धर्मराज युधिष्ठिर निराश होकर श्रीकृष्ण के पास पहुंचे। श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी व्रत का महत्व बताया। कहा कि इस व्रत के प्रभाव से हर कठिनाई दूर हो सकती है। युधिष्ठिर ने इस व्रत का पालन किया और परिणामस्वरूप पांडवों को पुनः सुख और राजसुख की प्राप्ति हुई। तभी से यह व्रत घर-घर में आस्था के साथ मनाया जाने लगा।

पूजा-विधि और व्रत का महत्व
इस दिन भक्तजन प्रातः स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण करते हैं। घर में कलश स्थापना कर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप प्रज्वलित किया जाता है। फिर उन्हें पंचामृत से स्नान कराया जाता है और पीत वस्त्र पहनाए जाते हैं।
अनंत सूत्र को पहले भगवान विष्णु के चरणों में अर्पित कर पूजा की जाती है और बाद में उसे हाथ में धारण किया जाता है।
पूजा के दौरान यह मंत्र जाप करना शुभ माना जाता है, "ॐ अनन्ताय नमः।"

साथ ही विष्णु गायत्री मंत्र का उच्चारण भी किया जाता है-
"ऊँ नारायणाय विद्महे।
वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।"

विभिन्न राज्यों में अनंत चतुर्दशी की झलक
महाराष्ट्र: गणपति विसर्जन के विशाल जुलूस, ढोल-ताशों की थाप और नृत्य के बीच बप्पा को विदा किया जाता है। मुंबई, पुणे और नागपुर जैसे शहरों में लाखों की भीड़ उमड़ती है।

उत्तर प्रदेश और बिहार: विष्णु पूजा और व्रत की परंपरा प्रमुख है। घर-घर में महिलाएं अनंत सूत्र धारण करती हैं और परिवार की मंगलकामना करती हैं।

दक्षिण भारत: आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में इस दिन भगवान विष्णु के विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं और प्रसाद में पंचामृत और मिठाइयों का विशेष महत्व होता है।

गुजरात: यहां गणेश विसर्जन की धूम रहती है और साथ ही अनंत चतुर्दशी व्रत भी धारण किया जाता है।

आस्था और सामाजिक उत्सव का संगम
अनंत चतुर्दशी केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव का भी प्रतीक है। गणेश विसर्जन के समय झांकियां, नृत्य, संगीत और भक्तिरस में डूबे गीत पूरे वातावरण को उल्लास से भर देते हैं। यह पर्व हमें जीवन में धैर्य, विश्वास और स्थिरता का महत्व समझाता है।

अनंत चतुर्दशी का यह पावन पर्व हर भक्त के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाए, यही न्यूज रिपोर्ट परिवार की मंगलकामना है।
"ॐ अनन्ताय नमः।"
अनंत चतुर्दशी की सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं।

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