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अयोध्या: भारत की सबसे प्राचीन नगरी है रामजन्मभूमि, 5 हजार साल से अधिक पुराना इतिहास

अयोध्या: भारत की सबसे प्राचीन नगरी है रामजन्मभूमि, 5 हजार साल से अधिक पुराना इतिहास

अयोध्या को भारत की सबसे प्राचीन और पवित्र नगरी माना जाता है, जिसका इतिहास 5 हजार साल से भी अधिक पुराना है।

अयोध्या को भारत की सबसे प्राचीन और पवित्र नगरियों में गिना जाता है। इतिहास के अध्यायों और धार्मिक मान्यताओं में दर्ज विवरणों के अनुसार इसकी स्थापना लगभग पांच हजार वर्ष पहले वैवस्वत मनु ने की थी जिन्हें मानव जाति का प्रणेता माना जाता है। यह वही नगरी है जिसे भगवान राम, महाराजा हरिश्चंद्र, राजा दिलीप और भागीरथ जैसे पराक्रमी राजाओं की भूमि कहा जाता है। रामलला की जन्मभूमि होने के कारण यह शहर हजारों वर्षों से आस्था, संस्कृति और अध्यात्म का केंद्र रहा है। रामलला और राजा राम के मंदिर में विराजमान होने के बाद हाल ही में हुए ध्वजारोहण समारोह ने भी अयोध्या की ऐतिहासिक पहचान को एक बार फिर उजागर किया।

इतिहासकारों के अनुसार अयोध्या का महत्व केवल पौराणिक कथाओं तक सीमित नहीं है। साकेत महाविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ महेंद्र पाठक बताते हैं कि महाभारत युद्ध लगभग 3100 ईसा पूर्व हुआ था और इस संदर्भ से अयोध्या की आयु कम से कम पांच हजार वर्ष मानी जा सकती है। वह कहते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता का काल तीन हजार ईसा पूर्व का माना जाता है और इस आधार पर अयोध्या इससे भी पुरानी है। खगोल विज्ञान के आधार पर कुछ विद्वान इसके इतिहास को लगभग 12 करोड़ पांच लाख वर्ष पुराना बताते हैं जिसका उल्लेख काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहासकार रहे प्रो ठाकुर प्रसाद वर्मा ने अपनी पुस्तक अयोध्या एवं श्रीरामजन्मभूमि ऐतिहासिक सिंहावलोकन में भी किया है।

अयोध्या की स्थापना के पीछे एक प्रचलित मान्यता यह भी है कि जलप्रलय के बाद मनु हिमालय से नीचे उतरे और उन्हें यह स्थान सबसे सुरक्षित दिखाई दिया क्योंकि यह तीन ओर से नदी से घिरा था। इसी वजह से इसे राजधानी के तौर पर बसाया गया। समय के साथ अयोध्या विभिन्न नामों से प्रसिद्ध होती चली गई जिनमें कोशल, अजपुरी, विशाखा, अयुधा, अपराजिता, अवध और रघुपुरी शामिल हैं। यहां की प्राचीन वाटिकाएं जैसे हनुमान बाग, तुलसी उद्यान, श्रवण कुंज और राघव कुंज भी इसकी पहचान का अहम हिस्सा रही हैं।

अयोध्या जैन परंपरा में भी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह आदिनाथ समेत पांच जैन तीर्थंकरों की जन्मस्थली मानी जाती है। कहा जाता है कि गौतम बुद्ध ने यहां लगभग सोलह वर्षावास किए थे। माता जानकी की कुलदेवी बड़ी देवकाली और छोटी देवकाली का भी यहां विशेष महत्व है। मान्यता है कि विवाह के बाद जानकी जी जनकपुर से छोटी देवकाली को अपने साथ लेकर आई थीं और आज भी श्रद्धालु यहां आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं।

शहर में कनक भवन, हनुमानगढ़ी, क्षीरेश्वरनाथ, नागेश्वरनाथ, आदिनाथ मंदिर, जालपा देवी मंदिर और पत्थर मंदिर जैसे प्रसिद्ध मंदिर इसकी धार्मिक विविधता को और समृद्ध करते हैं। सप्तहरि के रूप में जानी जाने वाली श्रीहरि की सात प्रकट स्थली भी अयोध्या में स्थित है जिनमें गुप्तहरि, धर्महरि, चक्रहरि, विष्णुहरि, पुण्यहरि, चंद्रहरि और बिल्वहरि शामिल हैं। इसके साथ ही यहां का ऐतिहासिक स्वरूप किलों, टीलों और सरोवरों के माध्यम से भी सामने आता है। लक्ष्मण किला, सुग्रीव किला, तपस्वी जी की छावनी और मणिराम दास जी की छावनी जैसे किले आज भी इसकी प्राचीन वास्तुकला का परिचय देते हैं।

अयोध्या की पहचान इसके पवित्र कुंडों से भी जुड़ी है। ब्रह्मकुंड, सूर्यकुंड, लक्ष्मीकुंड, गिरिजाकुंड, विद्याकुंड, अग्निकुंड, गणेशकुंड, दशरथकुंड, वशिष्ठकुंड, सीताकुंड, भरतकुंड और विभीषणकुंड जैसे कई स्थल यहां की प्राचीन परंपराओं की झलक देते हैं। मान्यता है कि ब्रह्मकुंड वही स्थान है जहां स्वयं ब्रह्मा जी ने तपस्या की थी।

अयोध्या साल भर आयोजनों और त्योहारों से उल्लासित रहती है। सबसे महत्वपूर्ण पर्व रामनवमी और दीपावली को माना जाता है। रामनवमी पर भगवान राम का जन्मोत्सव मनाया जाता है जबकि दीपावली उनके वनवास से लौटने की स्मृति में मनाई जाती है। इसके अलावा कार्तिक माह में 14 कोसी और पंचकोसी परिक्रमा का आयोजन होता है जिसमें देश भर से लाखों श्रद्धालु आते हैं। अमावस्या और पूर्णिमा पर सरयू स्नान का विशेष महत्व माना जाता है और कार्तिक, चैत्र और सावन के मेले करीब पंद्रह दिन तक चलते हैं।

रामनगरी की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सीमा 84 कोसी परिक्रमा पथ के रूप में भी पहचानी जाती है। यह पथ गोंडा, अंबेडकर नगर और बाराबंकी जिले की सीमा तक फैला है और इसके भीतर राजा राम और अनेक प्राचीन ऋषियों के आश्रम स्थित हैं। जमदग्नि आश्रम, श्रृंगी ऋषि आश्रम, अष्टावक्र मुनि आश्रम, कपिल मुनि आश्रम और च्यवन मुनि आश्रम जैसे स्थल इस परिक्रमा का हिस्सा हैं। यहां मखभूमि, रामरेखा, सूर्यकुंड और जनमेजय कुंड जैसे पौराणिक स्थल भी स्थित हैं। हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा से शुरू होकर जानकी नवमी पर समाप्त होने वाली 84 कोसी परिक्रमा आज भी हजारों श्रद्धालुओं के लिए गहन आध्यात्मिक अनुभव का माध्यम है।

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