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वाराणसी: बीएचयू, आईआईटी के 90 वैज्ञानिक स्टैनफोर्ड की शीर्ष 2% सूची में शामिल

वाराणसी: बीएचयू, आईआईटी के 90 वैज्ञानिक स्टैनफोर्ड की शीर्ष 2% सूची में शामिल

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी और एल्सिवियर की वर्ल्ड्स टॉप 2 प्रतिशत साइंटिस्ट्स सूची में बीएचयू और आईआईटी बीएचयू के 90 वैज्ञानिक शामिल किए गए हैं।

वाराणसी: विज्ञान और शोध की दुनिया में काशी हिंदू विश्वविद्यालय और आईआईटी बीएचयू ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान मजबूत की है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी और एल्सिवियर की ओर से जारी वर्ल्ड्स टॉप 2 प्रतिशत साइंटिस्ट्स की सूची में इस बार बीएचयू और आईआईटी बीएचयू के कुल 90 वैज्ञानिकों का नाम शामिल हुआ है। यह सूची शनिवार को जारी हुई और इसमें चयनित वैज्ञानिकों को उनके शोध कार्य और वैश्विक योगदान के आधार पर स्थान दिया गया।

वैज्ञानिकों के चयन के लिए शोध प्रकाशन, साइटेशन, एच-इंडेक्स, सह-लेखन और अन्य समग्र सूचकांकों को आधार बनाया जाता है। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय हर साल यह रैंकिंग जारी करता है, जिसमें 22 प्रमुख वैज्ञानिक क्षेत्रों और 174 उप-क्षेत्रों के आधार पर दुनिया भर के वैज्ञानिकों का वर्गीकरण किया जाता है।

आईआईटी बीएचयू से जिन नामों को सूची में शामिल किया गया है उनमें डॉ. जहर सरकार, डॉ. नरेश कुमार, डॉ. योगेशचंद्र शर्मा, डॉ. मनोज कुमार मंडल, डॉ. प्रांजल चंद्रा, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. रश्मि रेखा साहू, डॉ. नेहा श्रीवास्तव, डॉ. सुदीप मुखर्जी, डॉ. प्रलय मैती और डॉ. प्रदीप कुमार मिश्रा शामिल हैं।

बीएचयू से प्रो. सलिल कुमार भट्टाचार्य, प्रो. जमुना शरण सिंह, कृष्णेंदु भट्टाचार्य, प्रो. हरिकेश बहादुर सिंह, प्रो. गणेश पांडेय, प्रो. श्याम बहादुर राय, प्रो. नवल किशोर दुबे, प्रो. राजीव प्रताप सिंह और प्रो. यामिनी भूषण त्रिपाठी जैसे वरिष्ठ वैज्ञानिकों को भी सूची में स्थान मिला है। इस बीच 'हाइड्रोजन मैन' के नाम से प्रसिद्ध स्वर्गीय प्रो. ओएन श्रीवास्तव को मरणोपरांत शामिल किए जाने से संस्थान में विशेष भावुकता और गर्व का माहौल है। प्रो. श्रीवास्तव का हाइड्रोजन ऊर्जा और उससे जुड़े शोध कार्यों में योगदान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया था।

आईआईटी बीएचयू के निदेशक प्रो. अमित पात्रा ने कहा कि यह उपलब्धि संस्थान की अकादमिक शक्ति और शोध उत्कृष्टता का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि इस तरह की मान्यता न केवल संस्थान की वैश्विक साख को मजबूत करती है, बल्कि यह छात्रों और युवा शोधकर्ताओं को भी प्रेरित करती है कि वे उच्च लक्ष्य तय करें और विज्ञान व समाज में महत्वपूर्ण योगदान दें।

इस उपलब्धि ने एक बार फिर यह साबित किया है कि काशी की धरती केवल धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं की धरोहर ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर ज्ञान और विज्ञान की प्रयोगशाला भी है।

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