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चंदौली: नंदी महाराज की दिव्य विदाई, एक साढ़ की कहानी, लोगों के जुबानी

चंदौली: नंदी महाराज की दिव्य विदाई, एक साढ़ की कहानी, लोगों के जुबानी

चंदौली के सैयदराजा में नंदी महाराज के निधन से शोक की लहर, वे सिर्फ एक पशु नहीं थे बल्कि लोगों के जीवन का अभिन्न अंग थे, जिनकी आत्मीयता और दिव्यता ने सभी को मोहित किया।

चंदौली: सैयदराजा में एक सन्नाटा पसरा है। ऐसा सन्नाटा जो न केवल शोक का है, बल्कि एक युग के समाप्त होने की गूंज भी है। नगर का प्रिय साढ़, जिसे हर कोई ‘नंदी महाराज’ कहकर पुकारता था, अब इस धरती पर नहीं रहा। पर उनके जाने की पीड़ा ने यह साफ कर दिया कि वे केवल एक पशु नहीं थे, बल्कि लोगों के जीवन का हिस्सा, उनकी सुबह की शुभ छाया और शाम की शांति का प्रतीक थे।

नंदी महाराज की पहचान केवल उनके विशाल शरीर और शांत चाल से नहीं थी, बल्कि उनकी आत्मीयता, सहजता और दिव्यता से थी। वे हर गली, हर मोड़, हर चबूतरे के परिचित थे। बच्चे उन्हें अपने खेलों में शामिल करते, महिलाएं उनके दर्शन को सौभाग्य मानतीं, और बुजुर्ग उनके समीप बैठकर शांति महसूस करते थे। ऐसा प्रतीत होता था मानो साक्षात शिव के नंदी वृषभ स्वयं नगर में विचरण कर रहे हों।

गौ सेवा संगठन के जिलाध्यक्ष परमानंद तिवारी, जो वर्षों से नंदी महाराज की देखभाल में जुटे रहे, उनकी विदाई को भी एक तपस्वी संत की भांति गरिमामयी और श्रद्धापूर्ण बनाना चाहते थे। हमारे संवाददाता से बात करते हुए उन्होंने भावुक स्वर में कहा, “नंदी महाराज नगर की आत्मा थे। उनके दर्शन मात्र से लोगों के दिन शुभ हो जाते थे। वे बच्चों के साथ खेलते थे, बड़ों के साथ बैठते थे और हर दरवाजे पर उनके लिए कुछ न कुछ रखा जाता था। उनका जाना हमारे लिए व्यक्तिगत नहीं, सामूहिक क्षति है। उनकी अंतिम यात्रा ऐसे होनी चाहिए थी जो उनके जीवन की भव्यता को दर्शाए और हमने वही किया।”

परमानंद तिवारी के नेतृत्व में, जेसीबी से एक विशाल गड्ढा खुदवाया गया। इसके बाद सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में ढोल-नगाड़ों, शंखनाद और पुष्पवर्षा के साथ नंदी महाराज को अंतिम विदाई दी गई। यह दृश्य किसी महामानव की अंतिम यात्रा जैसा था। हर व्यक्ति नंगे पांव, हाथों में फूल, आंखों में आंसू और मन में श्रद्धा लिए चला।

इस भावभीनी विदाई में अजय वर्मा, शुभम पांडेय, चंदन यादव, शिवम् सेठ, अनिकेत केशरी, बिक्की केशरी, अरविंद केशरी, जितेंद्र विश्वकर्मा, अमित वर्मा, सामू जायसवाल, सिताराम, मुन्ना सोनकर, विवेक सहित स्थानीय युवा, बुजुर्ग और बच्चे बड़ी संख्या में शामिल हुए। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो एक संपूर्ण नगर, अपने एक प्रिय सदस्य को अंतिम प्रणाम देने निकला हो।

नगर की एक वृद्धा गिरजा देवी, जो वर्षों से नंदी महाराज को अपने पुत्रवत मानती थीं, अश्रुपूरित आंखों से बोलीं, “जब तक उनके दर्शन नहीं होते थे, दिन अधूरा लगता था। उनकी उपस्थिति में घर, आंगन, मंदिर सब कुछ पूर्ण लगता था। जैसे भगवान शिव के नंदी हमारे बीच विचरण करते थे।”

नंदी महाराज अब भले ही इस धरती से विदा हो चुके हैं, लेकिन उन्होंने एक ऐसी अमर छवि छोड़ दी है जो आने वाली पीढ़ियों के लिए श्रद्धा, सेवा और आत्मीयता का प्रतीक बनी रहेगी। उनकी कथा अब सिर्फ एक नगर की नहीं, बल्कि उस संस्कृति की है, जहां एक साढ़ को भी ईश्वर की तरह पूजने का भाव जीवित है।

जब भी सैयदराजा की गलियों में कोई बच्चा गुड़ लेकर दौड़ेगा, कोई वृद्ध दाल चावल का दोना ले जाकर सड़क किनारे रखेगा। वहां एक छाया हमेशा मौजूद रहेगी। वो छाया होगी नंदी महाराज की जिसे लोग भले न देख सकें, पर उसकी उपस्थिति सदा महसूस करेंगे।
जय नंदी महाराज!

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