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नर्सरी प्रवेश की जंग: बच्चों के साथ अभिभावकों पर भी इंटरव्यू का दबाव बढ़ा

नर्सरी प्रवेश की जंग: बच्चों के साथ अभिभावकों पर भी इंटरव्यू का दबाव बढ़ा

शहर के स्कूलों में नर्सरी प्रवेश की प्रक्रिया शुरू हो गई है, जिसमें बच्चों के साथ अभिभावक भी इंटरव्यू की गहन तैयारी कर रहे हैं।

नवंबर की शुरुआत होते ही शहर के कान्वेंट और पब्लिक स्कूलों में नर्सरी प्रवेश का माहौल गर्म होने लगा है। जिन घरों में इस वर्ष बच्चे चार साल के हुए हैं, वहां माहौल किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी जैसा दिख रहा है। घरों में बच्चों को बोलचाल, रंग, शेप्स और सामान्य ज्ञान की प्रैक्टिस कराई जा रही है, जबकि प्लेग्रुप और किंडरगार्टन में नर्सरी इंटरव्यू के लिए विशेष सत्र चल रहे हैं। अभिभावक भी उतने ही व्यस्त हैं जितने बच्चे, क्योंकि स्कूलों में होने वाला संवाद किसी औपचारिक इंटरव्यू से कम नहीं माना जा रहा।

शहर के कई बड़े स्कूलों ने अक्टूबर में ही आवेदन पत्र जारी कर दिए थे। अब आवेदनों की स्क्रीनिंग के बाद बच्चों और उनके अभिभावकों को स्कूल बुलाया जा रहा है। संवाद की प्रक्रिया दिखने में सरल है, लेकिन इसमें बच्चे के ज्ञान के साथ साथ अभिभावकों के तौर तरीके, बोलचाल और पारिवारिक वातावरण तक का आकलन किया जाता है।

नूरी दरवाजा निवासी शिवानी बंसल ने अपने बेटे शिवाय के लिए चार अलग अलग स्कूलों में आवेदन किया है। वह रोजाना बच्चे के साथ समय बिताकर उसे इंटरव्यू के संभावित सवालों की तैयारी करा रही हैं। इसी तरह आवास विकास कालोनी की काजल सहानी भी अपने बेटे नैतिक के लिए हर दिन अभ्यास करा रही हैं। माता पिता का कहना है कि प्रवेश तो बच्चे को लेना है, लेकिन मानसिक दबाव दोनों पर पड़ रहा है।

शहर के प्रतिष्ठित स्कूलों में सीटें सीमित हैं। एक सेक्शन में लगभग साठ सीटें होती हैं और कुल चार से पांच सेक्शन मिलाकर किसी भी स्कूल में करीब ढाई सौ सीटों पर प्रवेश होता है। इसके मुकाबले आवेदन संख्या कई गुना अधिक रहती है और अच्छे स्कूलों में यह अनुपात एक सीट पर दस आवेदन तक पहुंच जाता है। इस असमानता के कारण स्कूल अपने स्तर पर बच्चों और अभिभावकों के संवाद से ही शॉर्टलिस्ट करते हैं।

घर से लेकर किंडरगार्टन तक बच्चों की तैयारी मिशन मोड पर है। रंग पहचानने, गिनती, पसंदीदा फल या खिलौने के नाम, जानवरों और पक्षियों की पहचान जैसी बुनियादी बातों के साथ साथ बच्चों को आत्मविश्वास से उत्तर देने की आदत डाली जा रही है। अभिभावकों को भी परिवार में अनुशासन, बच्चे को दिया जाने वाला समय, शिक्षा की प्राथमिकताएं और नैतिक मूल्यों से जुड़े सवालों का सामना करना पड़ रहा है। स्कूल प्रधानाचार्यों का कहना है कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य केवल बच्चे को नहीं, बल्कि पूरे परिवार को जानना होता है।

शिक्षाविदों का कहना है कि अच्छे स्कूलों की सीमित संख्या, बढ़ती प्रतिस्पर्धा और सोशल मीडिया पर आदर्श पेरेंटिंग की छवि ने माता पिता पर दबाव और बढ़ा दिया है। यदि बच्चा थोड़ा शर्मीला हो तो स्थिति और चुनौतीपूर्ण हो जाती है। ऐसे में अभिभावक कोई अवसर गंवाना नहीं चाहते।

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