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वाराणसी: दीपावली पर मिट्टी के दीयों की भारी मांग, कुम्हारों की आय में बंपर उछाल

वाराणसी: दीपावली पर मिट्टी के दीयों की भारी मांग, कुम्हारों की आय में बंपर उछाल

वाराणसी में दीपावली के करीब आते ही मिट्टी के दीयों की मांग में भारी वृद्धि हुई है, जिससे कुम्हारों की आय में बंपर इजाफा होने की संभावना है।

वाराणसी: दीपावली का पर्व करीब आते ही काशी के बाजारों में दीयों की रौनक नजर आने लगी है। इस अवसर पर घरों को रोशन करने के लिए मिट्टी के पारंपरिक दीयों की मांग बढ़ गई है, जिससे कुम्हारों और स्वयं सहायता समूहों में उत्साह का माहौल है। यह पर्व समृद्धि, सौभाग्य और लक्ष्मी माता की कृपा का प्रतीक माना जाता है।

कुम्हार दिन-रात मेहनत कर रहे हैं ताकि सभी प्रकार के दीयों की मांग को पूरा किया जा सके। इस वर्ष मिट्टी के दीयों की मांग में 30 से 50 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है। पिछले साल एक कुम्हार त्योहार के दौरान 60 हजार रुपये कमाता था, वहीं इस साल कमाई सवा लाख रुपये तक पहुंचने की संभावना है। परंपरागत दीपों के साथ-साथ डिजाइनर दीयों का निर्माण भी किया जा रहा है, जिसमें हर जेब के लिए विकल्प बनाए गए हैं।

कुम्हार श्यामजी, संजय, राजेश और सुनील प्रजापति ने बताया कि चोलापुर, टिसौरा, कपिसा और महमूदपुर में पिछले साल 32 हजार दीयों का आर्डर था, जो इस साल बढ़कर 48 हजार हो गया है। बड़ागांव और आसपास के ब्लॉक में भी कुम्हार कुल्हड़, पुरवा, कसोरा और अन्य प्रकार के दीयों का निर्माण कर रहे हैं। दीपावली और देव दीपावली के अवसर पर मिट्टी के गणेश-लक्ष्मी की भी अच्छी बिक्री हो रही है।

कुम्हारों का कहना है कि पहले हाथ के चाक पर एक घंटे में 400 दीये बनते थे, जबकि अब वे 800 दीये बना लेते हैं। साथ ही, डिज़ाइनर दीयों की वजह से ग्राहकों की रुचि और बिक्री दोनों बढ़ी है। इन दीयों की कीमतें भी बढ़ी हैं। बड़े दीये 60 रुपये प्रति सैकड़ा, मंझले 50 रुपये, छोटे 40 रुपये और विशेष डिजाइन जैसे स्वास्तिक और परई 80 से 100 रुपये प्रति सैकड़ा बिक रहे हैं।

स्वदेशी उत्पाद और पर्यावरण के अनुकूल डिजाइनर दीयों की मांग भी बढ़ी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वदेशी आह्वान ने कुम्हारों में आत्मनिर्भरता की भावना जगाई है। इसके अलावा, बच्चों के खेलने के लिए विभिन्न आकृतियों वाले छोटे दीयों की बिक्री भी हो रही है, जिनकी कीमतें 50 से 200 रुपये के बीच हैं।

दीपावली के अवसर पर कुम्हारों की मेहनत और उत्साह ने वाराणसी के बाजारों में जीवंतता ला दी है। यह न केवल स्थानीय कुम्हारों की आजीविका बढ़ाने का साधन बन रहा है, बल्कि स्वदेशी उत्पाद और परंपरा को भी प्रोत्साहित कर रहा है।

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