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वाराणसी: अनधिकृत पाठशाला मामले में पीडीए सदस्यों पर FIR, आरटीई उल्लंघन का आरोप

वाराणसी: अनधिकृत पाठशाला मामले में पीडीए सदस्यों पर FIR, आरटीई उल्लंघन का आरोप

वाराणसी में बिना अनुमति संचालित 'पाठशाला' मामले में पीडीए के दो सदस्यों पर एफआईआर दर्ज, आरटीई और बच्चों की सुरक्षा के नियमों का उल्लंघन।

वाराणसी: लालपुर-पांडेयपुर थाना क्षेत्र के हुकुलगंज इलाके में बीते 4 अगस्त को पीडीए (प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक अलायंस) के बैनर तले बिना किसी आधिकारिक अनुमति के आयोजित की गई "पाठशाला" का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। अब इस आयोजन में शामिल जिला सभा जिलाध्यक्ष राहुल सोनकर और आयुष यादव के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया है। खंड शिक्षा अधिकारी (बीईओ) अखिलेश यादव की ओर से दर्ज कराई गई एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि दोनों ने बच्चों की सुरक्षा के साथ गंभीर खिलवाड़ किया और शिक्षा विभाग के नियमों का उल्लंघन करते हुए आरटीई (शिक्षा का अधिकार अधिनियम) की धज्जियां उड़ाईं।

मामले की शुरुआत सोशल मीडिया पर वायरल हुई तस्वीरों और वीडियो से हुई, जिनमें हुकुलगंज स्थित दैत्र बाबा मंदिर परिसर में आयोजित पीडीए की अनधिकृत पाठशाला में कई बच्चे शामिल दिखे। इन पोस्टों में राजनीतिक संदेशों और भ्रामक सूचनाओं के साथ पाठशाला का प्रचार किया गया, जिससे विभाग की छवि को ठेस पहुंची और अभिभावकों में भ्रम फैल गया।

खंड शिक्षा अधिकारी अखिलेश यादव ने बताया कि विभागीय जांच में यह स्पष्ट हुआ कि आयोजन स्थल के आसपास कोई भी सरकारी परिषदीय विद्यालय नहीं है, और न ही इस क्षेत्र की किसी स्कूल की पेयरिंग की गई थी। इसका अर्थ है कि आयोजन पूरी तरह से गैरकानूनी और असंगठित था। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा से जुड़े किसी भी आयोजन में बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि होती है, और इस मामले में आयोजकों ने सुरक्षा मानकों की न सिर्फ अनदेखी की, बल्कि विद्यालय को एक दिन के लिए बंद रखवाकर छात्रों के शैक्षणिक अधिकारों का हनन किया।

पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) वरुणा प्रमोद कुमार ने जानकारी दी कि खंड शिक्षा अधिकारी की तहरीर पर राहुल सोनकर और आयुष यादव के खिलाफ आईपीसी की सुसंगत धाराओं में केस दर्ज किया गया है। पुलिस इस पूरे प्रकरण की विस्तृत जांच कर रही है और आयोजन से जुड़े अन्य व्यक्तियों की भूमिका भी खंगाली जा रही है।

शिक्षा विभाग के सूत्रों के अनुसार, इस तरह के आयोजनों को लेकर पहले भी चेतावनी दी गई थी कि किसी भी गैर-शैक्षणिक संस्था या व्यक्ति द्वारा बिना विभागीय अनुमति के बच्चों से जुड़ा कोई भी कार्यक्रम आयोजित करना न सिर्फ गैरकानूनी है, बल्कि यह बच्चों की सुरक्षा, मनोवैज्ञानिक स्थिति और शिक्षा के अधिकार को सीधे प्रभावित करता है।

इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए बच्चों को मोहरा बनाया जा रहा है? और यदि हां, तो इस प्रवृत्ति पर समय रहते कठोर कार्रवाई क्यों नहीं होती? शिक्षा विभाग और प्रशासन की सख्ती इस मामले में एक मिसाल बन सकती है यदि दोषियों को कानून के अनुसार उचित सजा दिलाई जाती है।

वहीं, जिला प्रशासन ने आम जनता, अभिभावकों और सामाजिक संगठनों से अपील की है कि वे बच्चों से जुड़े किसी भी कार्यक्रम या आयोजन के मामले में पूरी जानकारी लें और ऐसी गतिविधियों की सूचना तुरंत संबंधित विभाग या पुलिस को दें। शिक्षा के क्षेत्र में गैर जिम्मेदाराना हस्तक्षेप को रोकना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।

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