News Report
TRUTH BEHIND THE NEWS

गोरखपुर: छठ महापर्व पर किन्नर अखाड़ा के महामंडलेश्वर ने सुरों के सम्राट डॉ राकेश श्रीवास्तव को किया सम्मानित

गोरखपुर: छठ महापर्व पर किन्नर अखाड़ा के महामंडलेश्वर ने सुरों के सम्राट डॉ राकेश श्रीवास्तव को किया सम्मानित

गोरखपुर में छठ महापर्व पर आयोजित भजन संध्या में डॉ राकेश श्रीवास्तव को सम्मानित किया गया, किन्नर अखाड़ा महामंडलेश्वर भी शामिल रहे।

गोरखपुर: संगीत और आस्था के संगम में डूबी बाबा गोरखनाथ की धरती उस क्षण भाव-विभोर हो उठी, जब लोक संगीत जगत के विख्यात गायक, सुरों के सम्राट डॉ. राकेश श्रीवास्तव को छठ महापर्व की पावन संध्या पर सम्मानित किया गया। भक्ति और भावनाओं के आलोक से ओतप्रोत इस दिव्य आयोजन में जब उनके सुर गूंजे, तो मानो वातावरण श्रद्धा और अध्यात्म से भर उठा।

यह भव्य भजन संध्या किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर कनकेश्वरी नंदगिरी जी के सान्निध्य में आयोजित की गई थी, जिसमें देशभर से श्रद्धालु और संगीतप्रेमी उपस्थित थे। इस अवसर पर मुख्य अतिथि किन्नर पीठाधीश्वर प्रो. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी जी तथा महामंडलेश्वर यामाई ममता नंदगिरी ( मशहूर बॉलीवुड अभिनेत्री ममता कुलकर्णी) जी ने अपने करकमलों से डॉ. राकेश श्रीवास्तव को सम्मानित किया। यह सम्मान न केवल उनके लोकसंगीत के प्रति समर्पण का प्रतीक था, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा में बसे सुरों और शब्दों के प्रति आदरांजलि भी।

डॉ. राकेश श्रीवास्तव, जिनकी आवाज़ में लोकगीतों की आत्मा बसती है, ने आयोजकों के आग्रह पर मंच संभालते हुए अपनी अनुपम प्रस्तुति “सुनो श्रीराम कहानी…” से संध्या को भक्ति के महासागर में परिवर्तित कर दिया। उनके सुरों में ऐसी मधुरता और गहराई थी कि श्रोताओं की आँखें स्वतः नम हो उठीं। हर शब्द, हर आलाप मानो भक्ति और प्रेम की गंगा बनकर बह रहा था।

छठ महापर्व का यह आयोजन केवल पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह भारतीय लोक परंपरा की आत्मा को सजीव करने वाला अवसर बन गया। डॉ. राकेश श्रीवास्तव ने अपने मधुर स्वर से यह संदेश दिया कि छठ केवल सूर्य की उपासना नहीं, बल्कि आस्था, अनुशासन और आत्मशक्ति का जीवंत प्रतीक है। उन्होंने कहा, कि “छठ वह पर्व है, जिसमें मनुष्य प्रकृति, ईश्वर और आत्मा के त्रिकोण में संतुलन खोजता है। यह पर्व भक्ति के साथ-साथ आत्मसंयम और तप की साधना भी है।”

समारोह के दौरान भजन संध्या में उपस्थित जनसमूह ने जब-जब डॉ. श्रीवास्तव के गीतों की तान सुनी, तब-तब तालियों की गूंज मंदिर की घंटियों की तरह प्रतिध्वनित होती रही। उनकी गायकी में लोक की सादगी, भाव की गहराई और संगीत की परंपरा का ऐसा संगम था, जो सीधे दिलों में उतर गया।

डॉ. राकेश श्रीवास्तव को संगीत जगत में “सुरों के सम्राट” के रूप में जाना जाता है। वे न केवल लोकगीतों के जीवंत धरोहर हैं, बल्कि वे उस परंपरा के संवाहक भी हैं, जो पीढ़ियों से भारतीय समाज को अपनी जड़ों से जोड़ती आई है। उनकी कला केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि भक्ति, संस्कृति और आत्मानुशासन का प्रतीक बन चुकी है।

आयोजन के अंत में जब दीपों की पंक्तियाँ गंगा तट की ओर जलीं, तब मंच पर उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में केवल एक ही भावना थी। भक्ति और संगीत का यह संगम अविस्मरणीय बन गया।

छठ महापर्व की इस भजन संध्या ने यह सिद्ध कर दिया कि जब कला और अध्यात्म एक साथ हों, तो हर सुर प्रार्थना बन जाता है और हर ताल ईश्वर के चरणों में अर्पण। इस दिव्य अवसर पर डॉ. राकेश श्रीवास्तव के सुरों ने न केवल माहौल को भक्तिमय बनाया, बल्कि यह भी स्मरण करा दिया कि भारतीय लोकसंगीत आज भी हमारे संस्कारों की सबसे सुंदर ध्वनि है।

FOLLOW WHATSAPP CHANNEL
Bluva Beverages Pvt. Ltd

LATEST NEWS