अमेरिका की यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम ने अपनी 2025 की वार्षिक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बाबरी मस्जिद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और आरएसएस से संबंधित कई टिप्पणियां शामिल हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण बाबरी मस्जिद के खंडहरों पर हुआ, 1992 की घटना में हुई हिंसा का जिक्र किया गया और धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़ी कई बातों को उठाया गया। भारत में इस रिपोर्ट को लेकर संत समाज और कानूनी विशेषज्ञों ने कड़ी आपत्ति दर्ज की है और इसे देश की संप्रभुता पर सवाल खड़े करने वाला बताया है।
अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि यह रिपोर्ट भारत की सांस्कृतिक परंपरा, संवैधानिक मूल्यों और समावेशी समाज के प्रति सम्मान को कम करती है। उनका कहना है कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से विदेशी संस्थाओं की ओर से भारत के खिलाफ गलत नरेटिव पेश करने की कोशिशें बढ़ी हैं। उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट भारत को अस्थिर दिखाने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा लगती है। उन्होंने सवाल उठाया कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में हिंदू जनसंख्या में आई भारी गिरावट पर ऐसी एजेंसियां कभी कोई टिप्पणी क्यों नहीं करतीं। उन्होंने कहा कि इन देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हुए अत्याचारों पर न तो कोई रिपोर्ट आती है और न ही कोई चिंता दिखाई देती है।
स्वामी जितेंद्रानंद ने कहा कि श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर किसी सरकारी निर्णय का परिणाम नहीं था, बल्कि पांच सौ वर्षों के संघर्ष और सर्वोच्च न्यायालय के सर्वसम्मत फैसले के आधार पर बना है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के मुद्दई हाशिम अंसारी के बेटे ने भी पांच अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री को रामायण भेंट की थी, जिसने यह दिखाया कि भारत के मुसलमानों ने फैसले को स्वीकार किया और सामाजिक सद्भाव बनाए रखा। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर विदेशी संस्थाएं इस प्रकार भारत के आंतरिक मामलों में दखल देती रहीं तो भारत को भी अपने संबंधों पर पुनर्विचार करना पड़ेगा।
अमेरिकी रिपोर्ट में आरएसएस पर स्कूल की किताबों से मुस्लिम शासकों के इतिहास को हटाने, धार्मिक परिवर्तन रोकने और धार्मिक नीतियों को प्रभावित करने के आरोप लगाए गए हैं। रिपोर्ट में धर्म परिवर्तन विरोधी कानूनों के विस्तार और राज्यों में लाए गए नए प्रावधानों का भी उल्लेख है। इसके साथ ही रिपोर्ट में दावा किया गया है कि लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान मुसलमानों के खिलाफ नफरती भाषण दिए गए और इससे चुनावी माहौल प्रभावित हुआ। पीएम मोदी और अमित शाह के बयानों पर भी प्रश्न उठाए गए।
संत समाज ने कहा कि यह रिपोर्ट भारत की छवि को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से तैयार की गई है। उनका कहना है कि विश्व में जहां जहां धर्मांतरण हुआ है, वहां मूल जनसंख्या पर हुए प्रभाव की चर्चा इन रिपोर्टों में कभी नहीं की जाती। उन्होंने कहा कि विदेशी एजेंसियों को भारत को लेकर गलत निष्कर्ष निकालने से पहले अपने इतिहास पर भी नजर डालनी चाहिए।
वहीं, राम मंदिर के कानूनी पक्ष में शामिल रहे एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने रिपोर्ट को पूरी तरह तथ्यहीन बताया। उन्होंने कहा कि भारत में कई स्थानों पर मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गईं, जिसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि हाल ही में संभल में एएसआई अधिकारियों पर हमला किया गया और उन्हें सर्वेक्षण करने नहीं दिया गया, लेकिन रिपोर्ट में उन तथ्यों का उल्लेख नहीं किया गया। उन्होंने चेतावनी दी कि यह रिपोर्ट देश में तनाव पैदा करने वाली है। उनका कहना है कि यह एक नरेटिव युद्ध है और इसका उद्देश्य ज्ञानवापी, कृष्ण जन्मभूमि जैसे मामलों को प्रभावहीन करना है। उन्होंने कहा कि जिन विदेशी संस्थाओं को भारत की न्याय प्रक्रिया और ऐतिहासिक प्रमाणों की जानकारी नहीं है, वे गलत निष्कर्ष प्रस्तुत कर रही हैं और इनका असर समाज में भ्रम फैलाने का होता है।
अखिल भारतीय संत समिति ने 9 और 10 दिसंबर 2025 को शीर्ष संतों की राष्ट्रीय बैठक बुलाने का निर्णय लिया है, जिसमें इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा की जाएगी। समिति ने कहा कि समय आने पर वे ठोस निर्णय भी लेंगी और आवश्यक कार्रवाई भी करेंगी।
अमेरिकी रिपोर्ट पर भारत में बवाल, संत समाज और कानूनी विशेषज्ञों ने जताया विरोध

अमेरिकी आयोग की धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट पर भारत में तीखी प्रतिक्रिया, विशेषज्ञों ने इसे संप्रभुता पर हमला बताया।
Category: india international relations religious freedom
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