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काशी में 12 नवंबर को भैरव जन्मोत्सव की भव्य तैयारी, मंदिरों में विशेष आयोजन

काशी में 12 नवंबर को भैरव जन्मोत्सव की भव्य तैयारी, मंदिरों में विशेष आयोजन

वाराणसी में 12 नवंबर को भैरव जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा, प्रमुख मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना और भव्य अनुष्ठानों की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।

वाराणसी: काशी में इस वर्ष भैरव जन्मोत्सव 12 नवंबर को बड़ी धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा। मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि पर होने वाले इस पर्व के अवसर पर काशी के प्रमुख भैरव मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठानों की तैयारियां जोरों पर हैं। बाबा कालभैरव, लाटभैरव और बटुकभैरव मंदिरों में विशेष आकर्षण रहेगा, जहां भव्य सजावट और अनूठे आयोजन किए जाएंगे।

काशी के प्रमुख भैरव मंदिरों में दीप, पुष्प और झंडों से सजावट की जाएगी। कालभैरव मंदिर में बाबा के विग्रह पर सिंदूर लेपन कर उन्हें रजत मुखौटा, रुद्राक्ष की माला और नरमुंडों की माला धारण कराई जाएगी। पूरे दिन वैदिक विधानों के साथ पूजा-अर्चना होगी। सायंकाल पांच वैदिक ब्राह्मणों द्वारा वसंत पूजा का आयोजन किया जाएगा, और रात्रि 10 बजे सवा किलो कपूर से विराट आरती संपन्न होगी।

मंदिर परिसर में 151 किलो के फलाहारी केक का भोग लगाया जाएगा। वहीं मंदिर के बाहर चौराहे पर प्रिंस गुप्ता द्वारा 1100 किलो का विशाल फलाहारी केक काटा जाएगा। यह केक मिष्ठान, फल और पंचमेवा से तैयार किया जाएगा। प्रिंस गुप्ता ने वर्ष 2004 में एक किलो के केक से यह परंपरा शुरू की थी, जो अब भक्तिभाव और जनसहभागिता का प्रतीक बन चुकी है।

लाटभैरव मंदिर में अन्नकूट भोग और संगीतमय सुंदरकांड का आयोजन किया जाएगा। ब्रह्ममुहूर्त में पं. रवींद्र त्रिपाठी के आचार्यत्व में वैदिक विधान से पूजा प्रारंभ होगी। बालरूप में रजत मुखौटा धारण कराने के बाद बाबा का नवीन वस्त्राभूषण और अन्य आभूषणों से शृंगार किया जाएगा। अन्नकूट भोग अर्पित कर महाआरती की जाएगी और मंदिर के चबूतरे पर संगीतमय सुंदरकांड पाठ आयोजित होगा। रामबाग क्षेत्र में नगर वधुएं पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत करेंगी।

पं. विकास शास्त्री के अनुसार इस वर्ष भैरव अष्टमी पर दो शुभ योग बन रहे हैं—शुक्ल योग सुबह सूर्योदय से 8:02 बजे तक और उसके बाद ब्रह्म योग मध्यरात्रि के बाद तक प्रभावी रहेगा। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी तिथि 11 नवंबर रात 11 बजकर 8 मिनट पर प्रारंभ होकर 12 नवंबर रात 10 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी।

काशी के संत, पुजारी और श्रद्धालु मानते हैं कि इन शुभ योगों में भैरव पूजन करने से व्यक्ति के समस्त भय और विघ्न दूर होते हैं। पूरे शहर में भैरव जयंतियों के जयघोष से वातावरण भक्तिभाव और उत्साह से भर जाएगा, और हर गलियारे में “जय कालभैरव” की गूंज सुनाई देगी।

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