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मद्रास हाई कोर्ट जज के दीपोत्सव आदेश पर महाभियोग की मांग, राजनीतिक विवाद तेज

मद्रास हाई कोर्ट जज के दीपोत्सव आदेश पर महाभियोग की मांग, राजनीतिक विवाद तेज

मंदिर में दीपोत्सव आदेश के बाद विपक्ष ने जज पर महाभियोग लाने की प्रक्रिया शुरू की, सामाजिक संगठनों ने विरोध किया।

मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस बी पी स्वामीनाथन द्वारा हाल ही में एक बंद पड़े मंदिर में दीपोत्सव पुनः प्रारंभ करने संबंधी दिए गए आदेश के बाद देश की राजनीति में नया विवाद खड़ा हो गया है. इस निर्णय पर इंडिया गठबंधन के कुछ सांसदों ने आपत्ति व्यक्त करते हुए न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया शुरू की है. इस कदम के सामने आते ही कई धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और इसे न्यायपालिका पर राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश बताया. उनका कहना है कि किसी भी न्यायिक निर्णय से असहमति होना एक अलग विषय है लेकिन न्यायधीश को सीधे महाभियोग की धमकी देना लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए चिंताजनक संकेत है.

अखिल भारतीय संघ समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने विपक्षी दलों की इस पहल को निंदनीय और असंवैधानिक बताते हुए कहा कि मंदिर और परंपराओं से जुड़े किसी निर्णय को लेकर जज के विरुद्ध महाभियोग लाना न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करने वाला कदम है. उन्होंने कहा कि यह संदेश देने का प्रयास है कि यदि कोई न्यायाधीश हिंदू परंपराओं के अनुरूप कोई फैसला देता है, तो उसे राजनीतिक प्रताड़ना झेलनी पड़ेगी. उनके अनुसार यह स्थिति न्यायिक व्यवस्था के लिए खतरा उत्पन्न कर सकती है क्योंकि इससे न्यायालयों पर अनावश्यक दबाव बढ़ेगा और धार्मिक मुद्दों पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित हो सकती है.

स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने यह भी कहा कि पिछले 75 वर्षों में कई बार हिंदू समाज की आस्थाओं की अनदेखी हुई है और कभी कभी न्यायपालिका की निष्पक्षता को लेकर भी सवाल उठे हैं, लेकिन यदि किसी निर्णय को चुनौती देना हो तो उसका संवैधानिक तरीका उच्चतम न्यायालय में अपील करना है. महाभियोग प्रक्रिया का राजनीतिक उपयोग न्याय व्यवस्था को दुरुपयोग की ओर धकेल सकता है और यही कारण है कि उन्होंने इस कदम को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया. उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्षी दल महाभियोग का इस्तेमाल न्यायपालिका को प्रभावित करने की रणनीति के रूप में कर रहे हैं और यदि हाई कोर्ट के हर निर्णय पर संसद में इस प्रकार की राजनीति शुरू हो गई तो न्यायिक स्वतंत्रता समाप्त होने की स्थिति आ सकती है. समिति ने कहा कि यह कदम संविधान की रक्षा के नाम पर राजनीति करने वालों के उस आचरण को उजागर करता है जो स्वयं असंवैधानिक माना जा सकता है.

स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ दलों से अपील की है कि इस प्रकार के निराधार महाभियोग प्रस्ताव को किसी भी परिस्थिति में पास न होने दिया जाए. उनके अनुसार यह न सिर्फ संबंधित न्यायाधीश पर एक अनुचित प्रहार है बल्कि पूरे हिंदू समाज की आस्था पर भी आक्रमण है. उन्होंने कहा कि देश की प्राचीन संस्कृति और परंपरा को राजनीतिक संघर्ष का माध्यम नहीं बनाए जाना चाहिए और इस प्रकार के कदमों का पूरे लोकतांत्रिक ढांचे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. उन्होंने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखना हर नागरिक और प्रत्येक राजनीतिक दल की जिम्मेदारी है और इस मर्यादा का उल्लंघन लोकतंत्र को कमजोर कर सकता है.

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