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मथुरा में मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने संत प्रेमानंद से की भेंट, कर्म को साधना बनाने का मार्ग जाना

मथुरा में मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने संत प्रेमानंद से की भेंट, कर्म को साधना बनाने का मार्ग जाना

उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने मथुरा में संत प्रेमानंद महाराज से भेंट कर कर्म के साथ नाम जप करने का मार्ग पूछा, संत ने बताया कर्म को ईश्वर को समर्पित करें।

मथुरा के श्रीराधे हित केलिकुंज में शुक्रवार सुबह आध्यात्मिक वातावरण उस समय और गहरा गया जब उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने संत प्रेमानंद महाराज से भेंट की। यह मुलाकात एकांतिक वार्ता के रूप में हुई, जहां मंत्री ने संत से जीवन और कर्म के गहरे प्रश्न पर मार्गदर्शन मांगा। उन्होंने पूछा कि काम के साथ नाम जप करना कठिन लगता है, इसे कैसे संभव बनाया जा सकता है।

संत प्रेमानंद महाराज ने उनके प्रश्न का उत्तर अत्यंत सहज किंतु गहराई से भरा हुआ दिया। उन्होंने कहा कि भगवान ने गीता में स्पष्ट कहा है कि जो भी कर्म करो, उसे मुझे समर्पित कर दो। अगर मनुष्य अपने कर्म को ईश्वर को अर्पित कर दे, तो वही कर्म साधना का रूप ले लेता है। उन्होंने समझाया कि नाम जप केवल मौन में बैठकर ही नहीं, बल्कि कर्म करते हुए भी किया जा सकता है, बशर्ते उस कर्म में समर्पण और निष्काम भावना हो।

संत ने आगे कहा कि भगवान की भक्ति कर्म से अलग नहीं है। जब व्यक्ति अपने कार्य को ईश्वर का कार्य मानकर करता है, तो हर क्रिया पूजा बन जाती है। उन्होंने मंत्री उपाध्याय से कहा कि उन्हें जो जिम्मेदारी मिली है, वह समाज को उन्नति की ओर ले जाने वाला कार्य है। इसलिए यदि वे अपने दायित्वों को सच्चे मन से निभाते हैं और उन्हें भगवान को समर्पित करते हैं, तो वही उनकी साधना कहलाएगी।

संत प्रेमानंद महाराज ने यह भी कहा कि किसी भय या प्रलोभन के वश में आकर किया गया कर्म पाप की श्रेणी में आता है, जबकि निस्वार्थ और भक्ति भावना से किया गया कर्म पुण्य बन जाता है। उन्होंने बताया कि व्यक्ति के जीवन का हर क्षण साधना का अवसर है, यदि वह अपने भीतर ईश्वर का स्मरण बनाए रखे।

योगेंद्र उपाध्याय ने संत के इस मार्गदर्शन को विनम्रता से स्वीकार किया और कहा कि संतों का आशीर्वाद जीवन की दिशा तय करता है। उन्होंने संत प्रेमानंद महाराज से समाज कल्याण और शिक्षा सुधार के कार्यों में प्रेरणा लेने की बात भी कही।

वार्ता के बाद मंत्री ने आश्रम परिसर में दर्शन किए और संत के सान्निध्य में कुछ समय मौन ध्यान में व्यतीत किया। इस दौरान परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं ने दोनों का स्वागत पुष्प वर्षा के साथ किया। वातावरण में भक्ति, श्रद्धा और संतुलन की एक नई अनुभूति दिखाई दी, जहां कर्म और भक्ति के संगम की झलक स्पष्ट रूप से महसूस की जा सकती थी।

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