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2006 मुंबई बम धमाकों में एहतेशाम बरी, 19 साल बाद अदालत ने किया दोषमुक्त

2006 मुंबई बम धमाकों में एहतेशाम बरी, 19 साल बाद अदालत ने किया दोषमुक्त

मुंबई 2006 बम धमाकों के मामले में, बलिया के एहतेशाम को 19 साल बाद विशेष अदालत ने सभी आरोपों से बरी कर दिया, साक्ष्यों के अभाव में न्याय मिला, परिवार में खुशी।

बलिया: मुंबई में वर्ष 2006 में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के एक प्रमुख मामले में 19 वर्षों तक निर्दोष होने की लड़ाई लड़ रहे उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के मनेछा गांव निवासी एहतेशाम पुत्र कुदबुद्दीन को आखिरकार न्याय मिल गया है। सोमवार को मुंबई की विशेष अदालत ने उन्हें सभी आरोपों से दोषमुक्त करार देते हुए बरी कर दिया। अदालत ने यह फैसला साक्ष्यों के अभाव में सुनाया, जिससे वर्षों से चले आ रहे इस दर्दनाक मुकदमे का पटाक्षेप हुआ।

गांव के लोगों और परिजनों के लिए यह फैसला राहत की सांस लेकर आया है। मनेछा के ग्राम प्रधान सिराज अहमद के मुताबिक, एहतेशाम वर्ष 2006 में मुंबई में केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे और उस समय वे फाइनल ईयर के छात्र थे। शादी के महज एक साल बाद ही उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए मुंबई का रुख किया था, लेकिन उसी दौरान शहर में हुए बम धमाकों ने न केवल उनकी पढ़ाई, बल्कि पूरी जिंदगी को ही झकझोर कर रख दिया।

घटना के कुछ ही दिन बाद पुलिस ने संदेह के आधार पर एहतेशाम को गिरफ्तार कर लिया था। अभियोजन पक्ष ने उन्हें आतंकी गतिविधियों से जोड़ने की कोशिश की, लेकिन वर्षों तक चली कानूनी प्रक्रिया और गहन सुनवाई के दौरान पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत न किए जा सके। अंततः विशेष अदालत ने पाया कि आरोप पूरी तरह निराधार थे और एहतेशाम को सभी धाराओं से दोषमुक्त कर दिया।

एहतेशाम के पारिवारिक पृष्ठभूमि की बात करें तो उनके पिता कुदबुद्दीन आजीविका के लिए विदेश जाते थे। एहतेशाम तीन भाइयों और दो बहनों में सबसे बड़े हैं। उनके भाइयों का मुंबई में लोहे की वेल्डिंग का कारखाना है। पत्नी शबीना बनो, जो प्रयागराज की रहने वाली हैं, इस घटना के बाद मायके और ससुराल के बीच ही झूलती रहीं, और सालों तक पति की रिहाई की उम्मीद में जीती रहीं। उनका कोई संतान नहीं है।

इस लंबे अंतराल में एहतेशाम और उनके परिवार को सामाजिक और मानसिक रूप से जो आघात सहना पड़ा, उसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है। एक होनहार छात्र, जो वैज्ञानिक बनने का सपना लेकर मुंबई गया था, वह लगभग दो दशक जेल में बिताने को मजबूर हुआ। लेकिन अब जब वह निर्दोष साबित हो चुका है, तो गांव में भी खुशी की लहर दौड़ गई है।

परिजनों की आंखों में आंसू हैं, मगर इन आंसुओं में अब पीड़ा नहीं, बल्कि न्याय की जीत की झलक है। ग्रामीणों ने जैसे ही यह खबर सुनी, पूरे गांव में सुकून की भावना फैल गई। वर्षों बाद एक घर में फिर से रोशनी लौटी है, लेकिन इस रोशनी तक पहुंचने की कीमत बहुत बड़ी थी। एक युवा का सपना, उसका करियर, और पूरे परिवार के दो दशक।

यह फैसला न्यायिक प्रणाली की संवेदनशीलता और सच्चाई की ताकत का प्रतीक है, जिसने यह दर्शाया कि भले ही देर हो, मगर इंसाफ होता है।

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