वाराणसी: रामनगर/कारगिल युद्ध की वीरगाथा और भारत माता के सच्चे सपूतों की अमर स्मृति को समर्पित एक गरिमामयी कार्यक्रम शनिवार को लाल बहादुर शास्त्री स्मृति भवन संग्रहालय, रामनगर में आयोजित किया गया। कारगिल विजय दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित इस आयोजन का संयोजन क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई, वाराणसी द्वारा किया गया, जिसमें परिचर्चा, सैनिक सम्मान और दीपांजलि अर्पण जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से वीर शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई।
कार्यक्रम की शुरुआत संग्रहालयाध्यक्ष अमित कुमार द्विवेदी द्वारा विषय स्थापना के साथ हुई। उन्होंने कारगिल युद्ध की भौगोलिक एवं सामरिक चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कैसे भारतीय जवानों ने विषम परिस्थितियों में दुश्मनों को पराजित कर विजय प्राप्त की। उन्होंने इस युद्ध को भारत के सैन्य पराक्रम और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बताया।
इस अवसर पर सेना के जवान वीरेंद्र पाल ने युद्ध के अनुभव साझा किए और बताया कि बर्फ से ढकी पहाड़ियों पर हर कदम मौत से टकराना था, फिर भी मातृभूमि के लिए कर्तव्य सर्वोपरि रहा। देवानंद उपाध्याय ने कारगिल युद्ध के दौरान की परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए कहा कि यह विजय भारत की अद्वितीय सैन्य रणनीति और साहस का परिणाम थी। वीरेंद्र मौर्य ने शहीदों को नमन करते हुए कहा कि उनका बलिदान हमारे राष्ट्र का गौरव है।
मुख्य वक्ता डॉ. सुजीत चौबे ने कहा कि कारगिल विजय दिवस केवल सैन्य सफलता का दिन नहीं, बल्कि यह देश के प्रति हमारी जिम्मेदारियों और संकल्पों की पुनः पुष्टि का अवसर है। उन्होंने कहा कि शहीदों की सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम एक सशक्त, आत्मनिर्भर और समर्पित भारत का निर्माण करें।
कार्यक्रम में सांझ होते ही दीपांजलि समारोह का आयोजन हुआ। संग्रहालय परिसर में सैकड़ों दीप प्रज्वलित किए गए, जिनमें हर दीप एक अमर शहीद की स्मृति का प्रतीक बना। इस भावनात्मक दृश्य ने पूरे परिसर को राष्ट्रभक्ति की लौ से आलोकित कर दिया।
इस अवसर पर शैलेन्द्र सिंह, अभिषेक सिंह, मनोज कुमार, विनय मौर्य, चंद्रप्रकाश मौर्य, महेंद्र नारायण, रोशन गुप्ता, अजीत कुमार, मिथुन, प्रिंस सिंह समेत बड़ी संख्या में स्थानीय नागरिक, छात्र, इतिहास प्रेमी और सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
धन्यवाद ज्ञापन राजीव रंजन, क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी द्वारा किया गया। उन्होंने सभी प्रतिभागियों, वक्ताओं और सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस आयोजन का उद्देश्य केवल अतीत को स्मरण करना नहीं, बल्कि उससे प्रेरणा लेना है।
वर्ष 1999 में कारगिल की ऊंची चोटियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ कर भारतीय सेना ने जो विजय प्राप्त की, वह भारत के सैन्य इतिहास की एक गौरवगाथा बन गई। ऑपरेशन विजय के अंतर्गत लड़े गए इस युद्ध में 527 से अधिक सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। इस दिन को प्रतिवर्ष 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है, ताकि देश उनकी कुर्बानी को कभी न भूले।
यह आयोजन एक ऐसे ऐतिहासिक स्थल पर हुआ, जो भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की स्मृति को संजोए हुए है। शास्त्री जी का जीवन सादगी, संकल्प और राष्ट्रसेवा की मिसाल रहा है। उनके द्वारा दिया गया नारा "जय जवान, जय किसान" आज भी देश की रीढ़ की हड्डी को मजबूती देता है। ऐसे प्रेरणास्थल पर शहीदों को नमन करना न केवल प्रतीकात्मक था, बल्कि भावनात्मक रूप से अत्यंत सशक्त और सार्थक भी।
यह आयोजन केवल श्रद्धांजलि नहीं था, यह एक संकल्प था । शहीदों की कुर्बानियों को जीवन का हिस्सा बनाकर एक नया भारत गढ़ने का।
वाराणसी: रामनगर/कारगिल विजय दिवस पर वीर शहीदों को दी गई श्रद्धांजलि

वाराणसी के रामनगर में कारगिल विजय दिवस पर वीर सैनिकों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई और उनके बलिदान को याद किया गया।
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