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वाराणसी: संपूर्णानंद विवि में चीफ प्रॉक्टर का एक्शन, फर्जी पदोन्नति पर केस दर्ज

वाराणसी: संपूर्णानंद विवि में चीफ प्रॉक्टर का एक्शन, फर्जी पदोन्नति पर केस दर्ज

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के नए चीफ प्रॉक्टर ने कमान संभालते ही फर्जी शासनादेश से पदोन्नति मामले में केस दर्ज कराया।

वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के चीफ प्रॉक्टर ने कमान संभालते ही पुरानी शिकायतों की जांच पर एक्शन शुरू कर दिया है। सबसे पहले संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रकाशन निदेशक डॉ. पदमाकर मिश्र और अज्ञात मददगारों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है।

विनयाधिकारी डॉ. विजय कुमार शर्मा ने पुलिस को बताया कि डॉ. पदमाकर मिश्र ने अज्ञात लोगों के माध्यम से कूटरचित शासनादेश का लाभ लेकर पदोन्नति हासिल की है। शासन से जांच हुई और सामने आया कि डॉ. पदमाकर मिश्र ने धोखाधड़ी की है। जांच में पता चला कि निदेशक प्रकाशन के पद पर पदोन्नति का शासनादेश फर्जी और शासनादेश पर अंकित हस्ताक्षर जाली है।

उन पर कूटरचित दस्तावेज के आधार पर पदोन्नति पाने का आरोप है। चीफ प्रॉक्टर विजय कुमार शर्मा की तहरीर पर चेतगंज थाने में धोखाधड़ी समेत अन्य कई गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया गया है। पुलिस ने विश्वविद्यालय की रिपोर्ट के आधार पर जांच शुरू कर दी है।

डॉ. पद्माकर मिश्र ने विक्रय अधिकारी से निदेशक प्रकाशन के पद पर पदोन्नति प्राप्त कर सभी पदीय लाभ लिए। चेतगंज इंस्पेक्टर विजयनाथ शुक्ला ने बताया कि प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई है। कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि वह अभी शहर से बाहर हैं, वापस लौटने के बाद ही मामले में आगे कार्रवाई की जाएगी।

15 दिसंबर 2017 को शिकायत, 2019 में पदोन्नति निरस्त करने का आदेश

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में फर्जी शासनादेश के जरिए पदोन्नति की जांच में फर्जीवाड़े की पुष्टि होने के बाद शासन ने 2019 में विश्वविद्यालय प्रशासन को निदेशक प्रकाशन पद पर विक्रय अधिकारी की पदोन्नति को निरस्त करने का निर्देश दिया था। साथ ही एफआईआर दर्ज कराने को कहा था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

15 दिसंबर 2017 को हरिवंश कुमार पांडेय ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शिकायत की थी और निदेशक प्रकाशन संस्थान के पद पर डॉ. पद्माकर मिश्र की पदोन्नति को गलत ठहराया था। आरोप था कि विश्वविद्यालय ने 2010 में निदेशक के पद पर सीधी भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला।

तत्कालीन विक्रय अधिकारी डॉ. पद्माकर मिश्र ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों व कर्मचारियों से साठगांठ कर फर्जी आदेश तैयार करा लिया। शासनादेश की प्रति 15 जनवरी 2004 को विश्वविद्यालय में प्राप्त होना दिखाया गया, जबकि इस दिन विश्वविद्यालय में अवकाश था।

शिकायतकर्ता ने 7 जनवरी 2013 को तत्कालीन कुलसचिव और कुलाधिपति को पत्र भेजकर इस अनियमितता की सूचना दी थी। उच्च शिक्षा विभाग के सचिव रमेश मिश्रा ने 2018 में दो सदस्यीय जांच कमेटी गठित की थी। मार्च 2018 को जांच कमेटी ने शासन को रिपोर्ट सौंपी, जिसमें विश्वविद्यालय के अधिकारियों व कर्मचारियों की मिलीभगत से फर्जीवाड़े की बात कही थी।

इसके बाद सचिव आर. रमेश कुमार ने शासनादेश निरस्त करने और एफआईआर कराने के निर्देश दिए। तत्कालीन सचिव की ओर से जारी निर्देश में कहा गया था कि विक्रय अधिकारी को निदेशक प्रकाशन के पद पर पदोन्नति का शासनादेश फर्जी है।

जांच में पता चला कि शासनादेश पर अंकित हस्ताक्षर कूटरचित है। जांच कमेटी ने माना था कि तत्कालीन कुलपति के दोनों पत्रों की विवेचना से स्पष्ट होता है कि मामले में विश्वविद्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों और कर्मचारियों की संलिप्तता है। विवादित शासनादेश के जारी होने में भी संलिप्तता है।

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