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वाराणसी: शंकराचार्य ने चुनाव आयोग पर लगाया धार्मिक भावनाओं की अनदेखी का गंभीर आरोप

वाराणसी: शंकराचार्य ने चुनाव आयोग पर लगाया धार्मिक भावनाओं की अनदेखी का गंभीर आरोप

वाराणसी में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने चुनाव आयोग द्वारा घोषित विधानसभा चुनाव की तारीखों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह हिंदू पर्वों की अनदेखी है।

वाराणसी: ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती शनिवार को वाराणसी पहुंचे और उन्होंने चुनाव आयोग द्वारा घोषित विधानसभा चुनाव की तारीखों पर गंभीर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि आयोग ने हिंदू समाज की धार्मिक भावनाओं, परंपराओं और विश्वास की अनदेखी की है। जिस समय देशभर में हिंदू समाज अपने सबसे प्रमुख पर्वों—गोवत्स द्वादशी, नरक चतुर्दशी, दीपावली, भाईदूज, गोपाष्टमी और छठ—को मना रहा है, उसी दौरान चुनावी प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। शंकराचार्य ने कहा कि यह महज संयोग नहीं बल्कि एक सोची-समझी रणनीति प्रतीत होती है, जिससे बहुसंख्यक समाज का ध्यान धार्मिक आस्था से हटाकर राजनीतिक गतिविधियों में बांटा जा सके।

उन्होंने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि चुनाव आयोग ने इतने महत्वपूर्ण पर्वों के बीच नामांकन, जांच और मतदान की प्रक्रिया तय कर दी। आयोग चाहे तो चुनाव कार्यक्रम को पांच या सात दिन पहले या बाद में रख सकता था। लेकिन इन पावन अवसरों पर चुनाव घोषित करना न केवल आस्था से खिलवाड़ है, बल्कि करोड़ों हिंदू मतदाताओं के प्रति असंवेदनशीलता का उदाहरण है। उन्होंने कहा कि यह वह समय है जब देशभर में लोग पूजा-पाठ, उपवास, स्नान, व्रत और पारिवारिक परंपराओं में व्यस्त रहते हैं। ऐसे समय में चुनावी प्रक्रिया शुरू कर देना अनुचित है और इससे मतदाताओं के धार्मिक कर्तव्यों और राजनीतिक दायित्वों में टकराव उत्पन्न होता है।

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने यह भी कहा कि यदि किसी अन्य धर्म का बड़ा पर्व होता, तो शायद ऐसा निर्णय नहीं लिया जाता। उन्होंने कहा कि हिंदू पर्वों को बाधित करने के पीछे कहीं न कहीं एक सोच और षड्यंत्र दिखाई देता है। यह आवश्यक है कि देश की राजनीतिक और संवैधानिक संस्थाएं सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और संवेदनशीलता रखें।

उन्होंने आगे कहा कि धर्म, आस्था और संस्कृति किसी भी राष्ट्र की आत्मा होते हैं। जब प्रशासन या संस्था इनसे टकराने लगती है, तो यह केवल धर्म नहीं बल्कि समाज की जड़ों को हिलाने का प्रयास होता है। उन्होंने मांग की कि चुनाव आयोग को आगे से इस प्रकार की गलती नहीं दोहरानी चाहिए और ऐसे संवेदनशील समय में हिंदू समाज के पर्वों का सम्मान करते हुए कार्यक्रम तय करने चाहिए।

भोजपुरी भाषा और संस्कृति पर विचार
शंकराचार्य ने वाराणसी प्रवास के दौरान भोजपुरी भाषा की आत्मा और उसकी सहजता पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि भोजपुरी की भाषा में अल्हड़पन और व्यंजना उसकी सबसे बड़ी विशेषता है। कुछ शब्द जो भोजपुरी क्षेत्र में सामान्य और आत्मीय लगते हैं, वही अन्य क्षेत्रों में असभ्य प्रतीत हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि भाषा का अपना सांस्कृतिक संदर्भ होता है और इसे उसी नजरिए से समझा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि अश्लीलता किसी भी भाषा में नहीं होनी चाहिए, लेकिन भाषा को दोष देने के बजाय समाज को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। भाषा को हथियार बनाकर किसी पर आरोप लगाना गलत है। हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह अपनी भाषा की पवित्रता और मर्यादा को बनाए रखे।

छठ पूजा और गंगा की स्वच्छता पर चिंता
शंकराचार्य ने लोक आस्था के सबसे बड़े पर्व छठ महापर्व को लेकर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि लाखों श्रद्धालु अपनी श्रद्धा और भक्ति से गंगा के तटों पर पहुंचते हैं, लेकिन सरकारों की तैयारियां अक्सर नाकाफी साबित होती हैं। घाटों पर सफाई, प्रकाश व्यवस्था, सुरक्षा और जल की गुणवत्ता को लेकर गंभीर लापरवाही बरती जाती है।

उन्होंने सवाल उठाया कि हमारी पवित्र नदियों को आखिर नालों में क्यों बदला जा रहा है। गंगा, यमुना, नर्मदा, कावेरी, कृष्णा—सभी नदियां अब प्रदूषण से ग्रस्त हैं। नगरों और उद्योगों का अपशिष्ट बिना रोक-टोक इन नदियों में डाला जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह केवल पर्यावरण नहीं, बल्कि आस्था पर भी चोट है। सरकारों को इस विषय पर गंभीरता से ध्यान देना होगा और नदियों की पवित्रता पुनः स्थापित करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

शंकराचार्य ने अंत में कहा कि धर्म केवल पूजा नहीं, बल्कि जीवन का संतुलन है। जब तक हम अपनी आस्था, भाषा और संस्कृति की रक्षा नहीं करेंगे, तब तक राष्ट्र की आत्मा भी कमजोर होती जाएगी।

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