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शिवराज चौहान का बड़ा बयान, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद की संविधान में नहीं है कोई आवश्यकता

शिवराज चौहान का बड़ा बयान, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद की संविधान में नहीं है कोई आवश्यकता

वाराणसी में एक प्रेस वार्ता के दौरान केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भारत के संविधान में धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद जैसे शब्दों की कोई आवश्यकता नहीं है, कांग्रेस ने जनता को भ्रमित किया।

वाराणसी: केंद्रीय कृषि मंत्री एवं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार को वाराणसी में आयोजित एक प्रेस वार्ता के दौरान एक बड़ा बयान देते हुए कहा कि भारत के संविधान में ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ जैसे शब्दों की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस पार्टी पर तीखा हमला बोला और आपातकाल के दौर की राजनीति को आड़े हाथों लेते हुए आरोप लगाया कि इन शब्दों को संविधान में बाद में जोड़कर जनता को भ्रमित किया गया, जबकि भारत की मूल संस्कृति और सनातन परंपरा से इनका कोई मेल नहीं है।

श्री चौहान आपातकाल की वर्षगांठ के अवसर पर भारतीय जनता पार्टी द्वारा देशभर में चलाए जा रहे जनजागरण अभियान के अंतर्गत काशी पहुंचे थे। लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर भाजपा काशी क्षेत्र के अध्यक्ष दिलीप पटेल के नेतृत्व में भारी संख्या में पार्टी कार्यकर्ताओं ने उनका स्वागत किया। पारंपरिक अंदाज में फूलमालाओं और ढोल-नगाड़ों के साथ कार्यकर्ताओं ने कृषि मंत्री का अभिनंदन किया।

प्रेस वार्ता में चौहान ने आपातकाल के दौरान लगाए गए सेंसरशिप, लोकतांत्रिक संस्थाओं के दमन और विरोधियों की गिरफ्तारी को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का काला अध्याय बताया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने सत्ता के लोभ में 1976 में संविधान के प्राक्कथन में 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवाद' जैसे शब्द जोड़ दिए, जो न केवल उस समय की परिस्थितियों के विरुद्ध थे, बल्कि भारत की आत्मा और उसकी सांस्कृतिक विरासत से भी विसंगत थे।

कृषि मंत्री ने यह भी कहा कि भारत की आत्मा सनातन संस्कृति में निहित है, जो सर्वधर्म समभाव और सहिष्णुता का संदेश देती है। “हमारा संविधान पहले से ही सभी नागरिकों को समानता और स्वतंत्रता प्रदान करता है। धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के नाम पर जो शब्द जोड़े गए, वे केवल राजनीतिक स्वार्थ और वैचारिक भ्रम फैलाने का माध्यम बने,” उन्होंने जोर देकर कहा।

उन्होंने युवाओं से आपातकाल के उस काले दौर को जानने और समझने की अपील की, जब लोकतंत्र को कुचलने का प्रयास किया गया था। साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि भाजपा का संकल्प है कि वह देश के लोकतांत्रिक ढांचे की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और देश को उसकी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने का कार्य जारी रखेगी।

शिवराज सिंह चौहान के इस बयान को जहां भाजपा कार्यकर्ताओं ने ऐतिहासिक और साहसिक बताया, वहीं विपक्षी दलों की ओर से तीखी प्रतिक्रियाएं आने की संभावना जताई जा रही है।

श्री चौहान का यह दौरा ऐसे समय पर हो रहा है जब देश में राजनीतिक विमर्श तेजी से संवैधानिक मूल्यों, विचारधाराओं और लोकतांत्रिक संस्थाओं की भूमिका को लेकर गहराता जा रहा है। उनके बयान ने न केवल आपातकाल के इतिहास को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है, बल्कि संविधान की मूल भावना और उसके स्वरूप पर भी नई बहस की जमीन तैयार कर दी है।

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