वाराणसी: काशी की पावन धरती पर सोमवार की संध्या वह ऐतिहासिक क्षण सामने आया जब विश्वप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला में प्रभु श्रीराम का जन्मोत्सव सजीव मंचित हुआ। अयोध्या मैदान में हजारों लीला प्रेमियों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। "जय श्रीराम" और "हर-हर महादेव" के गगनभेदी नारों से गूंजते इस वातावरण में हर किसी के चेहरे पर अपार आनंद और भक्ति का भाव झलक रहा था। मंगल गीत, बधाइयों और सोहर की ध्वनियों ने वातावरण को ऐसा दिव्य बना दिया मानो सचमुच त्रेता युग की अयोध्या नगरी उतर आई हो।
लीला का मंचन आरंभ होते ही घोषणा हुई कि महाराज दशरथ के महल में रानी कौशल्या ने एक दिव्य बालक को जन्म दिया है। यह घोषणा सुनते ही पूरा मैदान उत्सव में बदल गया। स्त्रियाँ पारंपरिक सोहर गाने लगीं, ढोल-नगाड़ों और शहनाई की गूंज से माहौल उल्लासमय हो उठा। लीला का दृश्य इतना सजीव था कि भक्तजन भाव-विभोर होकर अश्रु बहाने लगे।
गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस की पंक्तियाँ इस दृश्य में जीवंत हो उठीं-
"भए प्रकट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥"
जब रानी कौशल्या ने नवजात बालक को गोद में लिया तो उनके मुखमंडल पर अद्भुत आनंद और विस्मय एक साथ झलक रहे थे। बालक का स्वरूप देखते ही दर्शकों के मन में तुलसीदास की पंक्तियाँ गूंज उठीं-
"तनु गौर श्याम अरु ललित अंग,
कनक कमल दल लोचन भृंग॥"
श्याम-गौर वर्ण मिश्रित शरीर, कमलदल समान नेत्र और मोहक मुस्कान ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। हर कोई यही अनुभव कर रहा था कि स्वयं नारायण अवतरित होकर मानवता को दिशा देने आए हैं।
मंचन में रामजन्म के साथ ही देवताओं की पुष्पवृष्टि का दृश्य प्रस्तुत हुआ। दुंदुभियाँ बजने लगीं, गंधर्व और अप्सराएँ नृत्य करने लगे। ऋषि-मुनि आशीर्वाद देने लगे और स्वर्ग से आकाशवाणी हुई कि विष्णु स्वयं अवतरित हुए हैं। लीला प्रेमियों ने इस पल को अपनी आँखों में हमेशा के लिए संजो लिया।
रामनगर की रामलीला का एक अनिवार्य हिस्सा है, काशी नरेश की उपस्थिति। शुक्रवार को भी परंपरा के अनुसार दुर्ग से शाही सवारी निकली। हाथी पर सवार होकर काशी राजपरिवार के कुंवर अनंत नारायण सिंह लीला स्थल पहुँचे। उनके आते ही जयकारों से पूरा क्षेत्र गूंज उठा। राजसी ठाठ-बाट और पारंपरिक गरिमा ने आयोजन की भव्यता को और बढ़ा दिया।
वाराणसी, मिर्जापुर, गाजीपुर, जौनपुर सहित कई जिलों से हजारों श्रद्धालु इस पावन प्रसंग के साक्षी बने। दशकों से रामनगर की रामलीला देखने आने वाले श्रद्धालु इसे जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य बताते हैं। वाराणसी के विपिन तिवारी ने कहा, "रामजन्म की लीला का साक्षी बनना मानो स्वयं त्रेता युग में पहुंच जाना है।"
लगभग 228 वर्षों से निरंतर आयोजित हो रही रामनगर की रामलीला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा की जीवंत धरोहर है। यूनेस्को ने भी इसे विश्व धरोहर की मान्यता दी है। इसकी विशेषता है कि यहां मंचन बिना आधुनिक तकनीक के, केवल पेट्रोमैक्स और पारंपरिक साधनों से होता है। लगभग पाँच किलोमीटर के दायरे में अलग-अलग स्थलों पर यह लीला प्रतिदिन नए प्रसंग के साथ प्रस्तुत की जाती है।
लीला के मंचन में यह भी दिखाया गया कि राजा दशरथ पुत्रेष्टि यज्ञ के बाद दिव्य द्रव्य पाकर अपनी तीनों रानियों को प्रसन्न करते हैं। कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा को द्रव्य का वितरण करने के बाद उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति होती है, राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न। अयोध्या दीपों से जगमग हो उठती है, घर-घर मिठाई बाँटी जाती है और ब्राह्मणों को दान दिया जाता है। इसके बाद गुरु वशिष्ठ चारों भाइयों का नामकरण करते हैं। यह दृश्य देखते ही पूरा अयोध्या मैदान भक्तिमय हो उठा।
रामजन्म का यह प्रसंग केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसे मानवता के लिए धर्म, सत्य और करुणा की ज्योति का उदय माना गया। लीला प्रेमियों का कहना था कि इस दृश्य ने उन्हें ऐसा अनुभव कराया मानो स्वयं अयोध्या के उस युग में उपस्थित हों।
रामनगर की रामलीला का मंचन अगले दिन पुनः मंगलवार को शाम पाँच बजे आरंभ होगा। इसमें विश्वामित्र आगमन, ताड़का और सुबाहु वध, मारीच निरसन, अहिल्या उद्धार, गंगा दर्शन, मिथिला प्रवेश और जनक मिलन की लीलाओं का मंचन किया जाएगा। श्रद्धालुओं में अगले प्रसंग को देखने की उत्सुकता अभी से बढ़ गई है।
वाराणसी: कौशल्या की गोद में झूले रामलला, जयकारों से गूंजा रामनगर का अयोध्या मैदान

वाराणसी में विश्वप्रसिद्ध रामनगर रामलीला में प्रभु श्रीराम का जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मंचित हुआ, हजारों श्रद्धालु उमड़े।
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