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सीतापुर: सांप के डसने से महिला की मौत, चमत्कार की उम्मीद में 24 घंटे से गोबर में दबी है-लाश

सीतापुर: सांप के डसने से महिला की मौत, चमत्कार की उम्मीद में 24 घंटे से गोबर में दबी है-लाश

सीतापुर में एक दुखद घटना में, सांप के काटने से एक 60 वर्षीय महिला की मौत हो गई, जिसके बाद परिवार ने एक बाबा के कहने पर शव को 24 घंटे तक गोबर में दबाकर रखा, ताकि वह जीवित हो सके।

सीतापुर: तंबौर थाना क्षेत्र के चकपुरवा गांव में गुरुवार को एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया, जिसने अंधविश्वास और ग्रामीण समाज की विडंबनाओं को फिर एक बार उजागर कर दिया। यहां 60 वर्षीय महिला कलावती की सांप के डसने से मौत हो गई, लेकिन एक तथाकथित बाबा की बातों पर विश्वास करते हुए परिजनों ने मृतका के शव को 24 घंटे के लिए गोबर में दबा दिया, इस उम्मीद में कि वह वापस जीवित हो सकती है।

गांव की निवासी कलावती देवी पत्नी स्व. अर्जुनलाल अपने दो बेटों अनिल और हरेराम के साथ रहती थीं। गुरुवार दोपहर लगभग एक बजे वह घर के बाहर उपले (कंडे) ठीक कर रही थीं, तभी अचानक किसी जहरीले सांप ने उन्हें डस लिया। परिवार के लोगों ने तुरंत उन्हें इलाज के लिए नजदीकी गांव बिसवां खुर्द में एक वैद्य के पास पहुंचाया, लेकिन वहां कोई लाभ नहीं हुआ। इसके बाद उन्हें खैराबाद स्थित बीसीएम अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

इसी दौरान हजरतपुर गांव के बाबा कृपालदास, जो तंबौर के इस्माइलपुर मंदिर में पूजा-पाठ करते हैं, मौके पर पहुंचे और दावा किया कि अगर उनकी बताई विधियों को पूरा किया गया, तो महिला में जीवन लौट सकता है। बाबा के अनुसार, शव को पूरी तरह से गोबर से ढक कर 24 घंटे रखा जाए और निर्देशानुसार कुछ धार्मिक क्रियाएं की जाएं। परिजनों ने डॉक्टरों की राय के बजाए बाबा की बातों पर भरोसा किया और शव को घर लाकर गोबर में दबा दिया।

घटना की सूचना पर पुलिस गांव में पहुंची और परिजनों से शव निकालने की अपील की, लेकिन वे नहीं माने। गांव में भीड़ इकट्ठा हो गई और कई हिंदूवादी संगठन, बजरंग दल के कार्यकर्ता भी मौके पर पहुंचे, जिन्होंने इस पूरे घटनाक्रम पर आपत्ति जताई। पुलिस प्रभारी निरीक्षक राकेश सिंह ने बताया कि परिजनों ने शव का पोस्टमॉर्टम कराने से साफ इनकार कर दिया है। मजबूरन पुलिस को बिना कोई कार्रवाई किए वापस लौटना पड़ा।

महिला के बेटे अनिल ने कहा कि जब डॉक्टरों ने उनकी मां को मृत घोषित किया, तो गांव लौटते समय बाबा कृपालदास ने शव में "गर्माहट" महसूस करने का दावा किया और यह विश्वास दिलाया कि गोबर में रखने से जान वापस आ सकती है। "बाबा पहले भी ऐसा कर चुके हैं। अगर मां बच जाती हैं तो यह भगवान की कृपा होगी, नहीं तो अंतिम संस्कार कर देंगे," उन्होंने कहा।

गुरुवार रात करीब आठ बजे शव को गोबर में दबाया गया था, और शुक्रवार रात नौ बजे उसे बाहर निकाले जाने की बात परिजन कर रहे हैं। शुक्रवार दोपहर तक कोई परिवर्तन सामने नहीं आया था, लेकिन परिवार अब भी चमत्कार की उम्मीद लगाए बैठा है।

बाबा कृपालदास ने भी अपने बचाव में कहा कि यह किसी तांत्रिक विधि का हिस्सा नहीं है, बल्कि धार्मिक आस्था और भगवान के चमत्कार पर आधारित उपाय है। उन्होंने दावा किया कि हरदोई के मल्लावां में एक बीमार बच्चे को इसी तरीके से ठीक किया गया था। "यह तंत्र नहीं, श्रद्धा का विषय है," उन्होंने कहा।

इस पूरी घटना ने न केवल ग्रामीण समाज में फैले अंधविश्वास को उजागर किया है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा किया है कि जब चिकित्सा विज्ञान ने स्पष्ट रूप से मौत की पुष्टि कर दी थी, तो फिर ऐसे ‘चमत्कारों’ पर विश्वास क्यों किया गया? स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता और ग्रामीणों की आस्था के टकराव ने एक मृत देह को 24 घंटे तक दफन रहने पर मजबूर कर दिया।

अब देखना यह है कि शुक्रवार रात महिला को गोबर से निकालने के बाद परिवार क्या निर्णय लेता है। परिजन अगर अब भी किसी चमत्कार की उम्मीद कर रहे हैं, तो यह न केवल सामाजिक चेतना के लिए चुनौती है, बल्कि एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य और कानूनी मुद्दा भी बनता जा रहा है। प्रशासनिक स्तर पर भी यह मामला संज्ञान में लिया गया है, हालांकि अब तक कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की गई है।

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