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तिरुपुर: दलित महिला को खाना बनाने से रोकने पर छह लोगों को दो साल की जेल

तिरुपुर: दलित महिला को खाना बनाने से रोकने पर छह लोगों को दो साल की जेल

तमिलनाडु के तिरुपुर में दलित महिला रसोइया को स्कूल में खाना बनाने से रोकने पर छह लोगों को दो साल की कैद, जातिगत भेदभाव पर कड़ा संदेश।

तिरुपुर : तमिलनाडु जिले में दलित समुदाय की एक महिला को सरकारी स्कूल में बच्चों के लिए खाना बनाने से रोकने के मामले में छह लोगों को दोषी करार देते हुए अदालत ने दो साल की कैद की सजा सुनाई है। यह फैसला एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि जातिगत भेदभाव के मामलों में अब अदालतें कड़ा रुख अपना रही हैं। मामला वर्ष 2018 का है, जब थिरुमलाई गौंडमपलायम स्थित सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में नियुक्त रसोइया पी पप्पल को कुछ अभिभावकों के विरोध का सामना करना पड़ा था। इन अभिभावकों ने केवल इसलिए आपत्ति जताई थी क्योंकि महिला दलित समुदाय से आती है और स्कूल में मिड डे मील तैयार कर रही थी।

अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत इस मामले की सुनवाई विशेष अदालत में चल रही थी। अदालत ने पी पलानीसामी गौंडर, एन शक्तिवेल, आर षणमुगम, सी वेलिंगिरी, ए दुरैसामी और वी सीता लक्ष्मी को दोषी पाया और उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की। अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया कि छहों आरोपी बच्चों के अभिभावक थे और उन्होंने दबाव डालकर स्कूल प्रशासन को महिला रसोइया का काम बंद करवाने की कोशिश की। इससे स्कूल में तनाव की स्थिति पैदा हो गई और पी पप्पल को न केवल अपमान का सामना करना पड़ा बल्कि बाद में उसका तबादला भी करना पड़ा।

तमिलनाडु अस्पृश्यता उन्मूलन मोर्चा और अन्य सामाजिक संगठनों ने इस घटना के बाद विरोध प्रदर्शन किया था। प्रदर्शन का उद्देश्य यह बताना था कि समाज में अभी भी जातिगत भेदभाव की कड़ियां मौजूद हैं और इससे न केवल पीड़ित व्यक्ति बल्कि परिवार और समुदाय भी प्रभावित होते हैं। मानवाधिकार संगठनों ने भी इस घटना को गंभीरता से लिया था और राज्य सरकार से कड़े कदम उठाने की मांग की थी।

अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि इस तरह के भेदभावपूर्ण व्यवहार से न केवल कानून का उल्लंघन होता है बल्कि सामाजिक समानता और मानव गरिमा पर सीधा प्रहार होता है। अदालत ने कहा कि यह मामला सिर्फ एक रसोइया का नहीं बल्कि समाज में मौजूद मानसिकता का आईना है, जिसे बदलना बेहद आवश्यक है। यह फैसला इस बात की पुष्टि करता है कि दलित समुदाय के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव कानूनी रूप से अस्वीकार्य है और दोषियों को सजा से बचाया नहीं जाएगा।

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