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भगवान विष्णु की मूर्ति पर CJI की टिप्पणी से बढ़ा विवाद, शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने जताई नाराजगी

भगवान विष्णु की मूर्ति पर CJI की टिप्पणी से बढ़ा विवाद, शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने जताई नाराजगी

खजुराहो मूर्ति बहाली याचिका पर CJI की टिप्पणी विवादों में घिरी, शंकराचार्य ने इसे आस्था का अपमान बताया और टिप्पणी वापस लेने की मांग की।

सुप्रीम कोर्ट में खजुराहो स्थित भगवान विष्णु की एक प्राचीन मूर्ति की बहाली को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई की टिप्पणी अब विवाद का कारण बन गई है। याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा था कि अगर आप भगवान विष्णु के इतने बड़े भक्त हैं तो जाकर उनसे प्रार्थना करिए। इस टिप्पणी को लेकर देश भर में प्रतिक्रिया तेज हो गई है। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने इसे आस्था का अपमान बताते हुए न्यायमूर्ति गवई से अपनी टिप्पणी वापस लेने की मांग की है।

मामला खजुराहो मंदिर परिसर की उस मूर्ति से जुड़ा है जो लंबे समय से क्षतिग्रस्त है। याचिकाकर्ता राकेश दलाल ने दावा किया था कि यह मूर्ति मुगल काल में तोड़ी गई थी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण तथा सरकार पिछले छह वर्षों से इसके संरक्षण और बहाली में असफल रही है। दलाल का कहना था कि यह केवल एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं बल्कि करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है, इसलिए इसे पुनः प्रतिष्ठित किया जाना चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी पर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि यह कथन न केवल करोड़ों हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है, बल्कि इसे सुनकर यह भी प्रतीत होता है मानो मुगल काल में हुए मंदिरों और देवमूर्तियों पर हमलों को परोक्ष समर्थन दिया जा रहा हो। शंकराचार्य ने अपने बयान में कहा कि यह टिप्पणी संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि सुप्रीम कोर्ट पहले शिरूर मठ केस 1954 और श्री कृष्ण सिंह बनाम मथुरा अहीर 1979 जैसे मामलों में यह स्वीकार कर चुका है कि देवमूर्तियां अपने भक्तों और सेवायतों के माध्यम से अपने अधिकारों की रक्षा कर सकती हैं।

उन्होंने सरकार से भी आग्रह किया है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियमों में बदलाव किया जाए ताकि मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर हुए ऐतिहासिक अन्यायों को सुधारा जा सके। शंकराचार्य का कहना है कि जब अन्य कानूनों में संशोधन किया जा सकता है तो आस्था से जुड़े मामलों में भी सुधार संभव होना चाहिए। इस पूरे विवाद ने धार्मिक संगठनों और समाज के विभिन्न वर्गों के बीच चर्चा को और तेज कर दिया है।

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