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काशी में स्वर्वेद संदेश यात्रा का भव्य समापन, संत प्रवर विज्ञान देव जी महाराज पहुंचे

काशी में स्वर्वेद संदेश यात्रा का भव्य समापन, संत प्रवर विज्ञान देव जी महाराज पहुंचे

संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज के नेतृत्व में स्वर्वेद संदेश यात्रा 25 राज्यों को जोड़ते हुए वाराणसी में संपन्न हुई।

कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैली राष्ट्रव्यापी स्वर्वेद संदेश यात्रा अपने भव्य समापन के साथ वाराणसी में पूर्ण हुई। संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज के नेतृत्व में यह यात्रा 29 जून को श्रीनगर के ऐतिहासिक लाल चौक पर तिरंगा फहराकर प्रारंभ की गई थी। चार महीने से अधिक समय तक चली इस यात्रा ने भारत के 25 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों को जोड़ते हुए देशभर में आध्यात्मिक जागरण और एकता का संदेश फैलाया। यात्रा के दौरान संत प्रवर ने जहां-जहां प्रवास किया, वहां लाखों लोगों ने उनका स्वागत किया और विहंगम योग की शिक्षाओं से प्रेरणा प्राप्त की।

यात्रा के समापन पर शुक्रवार को जब श्री विज्ञान देव जी महाराज वाराणसी के स्वर्वेद महामंदिर धाम पहुंचे, तो पूरा परिसर भक्तिभाव से गूंज उठा। सड़क मार्ग से 41,365 किलोमीटर की लंबी यात्रा पूर्ण कर जब महाराज जी काशी पहुंचे, तो शंखध्वनि और वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच उनका पारंपरिक स्वागत किया गया। भक्तों ने फूल वर्षा की और पूरे परिसर में जयघोष की गूंज छा गई। इस अवसर पर संत प्रवर ने विहंगम योग के प्रणेता महर्षि सदाफल देव जी महाराज की प्रतिमा पर लौंग और इलायची से बनी प्राकृतिक माला अर्पित की और देश में आध्यात्मिक पुनर्जागरण का आह्वान किया।

अपने प्रेरक संबोधन में श्री विज्ञान देव जी महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति ही विश्व की आदि संस्कृति है और यही हमारी पहचान है। उन्होंने कहा कि भारत केवल भूमि का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि यह हमारी मातृभूमि है, जिसके साथ आत्मा का अटूट संबंध है। उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे भौतिक विकास के साथ आध्यात्मिकता को भी अपनाएं, क्योंकि सच्ची प्रगति तभी संभव है जब व्यक्ति भीतर से जागरूक हो।

यात्रा के दौरान पूरे देश में लोगों में 25-26 नवंबर को स्वर्वेद महामंदिर धाम, वाराणसी में होने वाले 25,000 कुण्डीय महायज्ञ को लेकर विशेष उत्साह देखने को मिला। यह आयोजन विश्व स्तर पर भारतीय आध्यात्मिक परंपरा की भव्यता और एकता का प्रतीक बनने जा रहा है।

महाराज जी के आगमन के साथ ही स्वर्वेद महामंदिर धाम में भक्ति और उल्लास का वातावरण बन गया। भक्तों ने दीप जलाए, भजनों की ध्वनि से पूरा वातावरण आलोकित हो उठा। इस ऐतिहासिक यात्रा के माध्यम से न केवल भारत की सांस्कृतिक आत्मा को पुनर्जीवित किया गया, बल्कि पूरे राष्ट्र को यह संदेश दिया गया कि आध्यात्मिक एकता ही सच्चे भारत की पहचान है।

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