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अंबेडकर विद्यालयों में नियुक्ति धांधली का बड़ा खुलासा, 42 शिक्षक व अधिकारियों पर दर्ज हुई FIR

अंबेडकर विद्यालयों में नियुक्ति धांधली का बड़ा खुलासा, 42 शिक्षक व अधिकारियों पर दर्ज हुई FIR

उत्तर प्रदेश के अंबेडकर विद्यालयों में बड़ी नियुक्ति धांधली का पर्दाफाश, 42 शिक्षकों व कई अधिकारियों पर शहर कोतवाली में मुकदमा दर्ज किया गया है।

लखनऊ: अंबेडकर विद्यालयों में हुई एक बड़ी नियुक्ति धांधली ने शिक्षा और समाज कल्याण विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिला समाज कल्याण अधिकारी विकास रश्मी मिश्रा ने इस घोटाले में शामिल 42 शिक्षकों, 20 तत्कालीन स्कूल प्रबंधकों, तीन पूर्व जिला समाज कल्याण अधिकारियों, शिक्षा विभाग के तीन तत्कालीन अफसरों और तीन पर्यवेक्षकों के खिलाफ शहर कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया है। आरोप है कि इन सभी ने फर्जी शैक्षणिक प्रमाण पत्र और कूटरचित दस्तावेजों के जरिए नौकरी पाई थी।

इस मामले का पर्दाफाश वर्ष 2018 में उस समय हुआ, जब आश्वासन समिति ने मुख्यमंत्री को अंबेडकर स्कूलों में फर्जी नियुक्तियों की शिकायत भेजी। शिकायत के बाद तत्कालीन जिलाधिकारी प्रकाश बिंदु ने 24 फरवरी 2018 को बीएसए कार्यालय का औचक निरीक्षण किया। निरीक्षण में सामने आया कि 74 सहायक अध्यापकों की नियुक्ति में गंभीर गड़बड़ियां हैं। अनुमोदन पत्रावलियों की तलाश के दौरान केवल 32 शिक्षकों की फाइलें ही बरामद हुईं। संदेह बढ़ने पर डीएम ने इन फाइलों को ट्रेजरी के लॉकर में सुरक्षित कर दिया और मामले की तह तक पहुंचने के लिए पांच सदस्यीय जांच समिति गठित की।

जांच में यह स्पष्ट हो गया कि 42 शिक्षकों ने जाली दस्तावेजों के आधार पर नौकरी पाई थी। इन शिक्षकों में कुलदीप नारायण, गौरव कुमार पांडेय, जितेंद्र सिंह, राजमती यादव, राकेश कुमार दीक्षित, वंदना कौशल, अभिषेक कुमार दुबे, रामप्यारे प्रसाद, सुरेंद्र कुमार भारती, रजनीश उपाध्याय, श्रीराम प्रसाद, मनोज कुमार राय, मुकेश यादव, अश्वनी कुमार रंजन, राघवेंद्र कुमार मिश्रा, शमा, उपमा गौतम, हरिकेश यादव, कमरुदीन, रामप्रसाद, अनिता सिंह, अनुप्रिया राय, शशिकांत सिंह, प्रतिमा पटेल, विछुता पटेल, सलील कुमार दुबे, अभिषेक पांडेय, अनिल कुमार यादव, अर्चना भारती, प्रमोद कुमार राव, बृजेश कुमार यादव, धर्मेंद्र कुमार, मोनिका जायसवाल, वीना राय, संजय कुमार, ओमप्रकाश भारती और रेनू यादव जैसे नाम शामिल हैं।

इनके अलावा 20 तत्कालीन स्कूल प्रबंधक जिनमें धनंजय कुमार, सखरज, गौरीराम, रामलाल, विनोद कुमार, सरोजनाथ पांडेय, सरफराज अहमद, शेख सल्लू, रामसेवक राम, लछीराम, मोतीचंद्र, शंभू सिंह, अरविंद्र कुमार, सुधाकर शर्मा, राजकिशोर प्रसाद, रामअवध राव, प्रभुशंकर राय और मुसाफिर शामिल हैं, पर भी आरोप तय हुए हैं।

मामले की गंभीरता इस बात से भी समझी जा सकती है कि तत्कालीन जिला समाज कल्याण अधिकारी बलदेव त्रिपाठी, जितेंद्र मोहन शुक्ल और विमला राय के साथ-साथ सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी फतेहपुर मंडाव, सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी घोसी, खंड शिक्षा अधिकारी मुहम्मदाबाद गोहना और तत्कालीन बीएसए पर भी मुकदमा दर्ज किया गया है। इसके अलावा समाज कल्याण विभाग के तत्कालीन पर्यवेक्षक कैलाश सिंह, जितेंद्र कुमार राय, शोयब अहमद खान और 14 अज्ञात व्यक्तियों को भी आरोपी बनाया गया है।

मुख्यमंत्री के निर्देश पर संयुक्त निदेशक समाज कल्याण सुनील कुमार सिंह बिसेन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच समिति बनाई गई, जिसमें जिला समाज कल्याण अधिकारी चंदौली और गोंडा के डीडीआर को शामिल किया गया। इस समिति ने प्रत्येक शिक्षक के शैक्षणिक प्रमाण पत्रों की विस्तृत जांच की और पाया कि नियुक्तियों में व्यापक पैमाने पर फर्जीवाड़ा किया गया है।

अंबेडकर स्कूलों में हुए इस बड़े पैमाने के घोटाले ने न केवल सरकारी नियुक्तियों की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया है कि विभागीय निगरानी और सत्यापन की प्रक्रिया में गंभीर खामियां हैं। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि इतने बड़े और पुराने मामले में कानूनी कार्रवाई कितनी तेज़ी से होती है और दोषियों को कब तक सजा मिल पाती है।

यह प्रकरण एक बार फिर से साबित करता है कि यदि नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता, दस्तावेजों का सत्यापन और सख्त निगरानी नहीं होगी, तो योग्य उम्मीदवारों का हक छिनता रहेगा और फर्जीवाड़ा करने वाले बिना डर के व्यवस्था का दुरुपयोग करते रहेंगे।

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