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यूपी में लॉ शिक्षा पर बड़ा संकट, मान्यता नवीनीकरण में देरी से 50 हजार छात्रों का भविष्य दांव पर

यूपी में लॉ शिक्षा पर बड़ा संकट, मान्यता नवीनीकरण में देरी से 50 हजार छात्रों का भविष्य दांव पर

उत्तर प्रदेश में बार काउंसिल ऑफ इंडिया की मान्यता नवीनीकरण प्रक्रिया में देरी से 50 हजार लॉ छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधिक शिक्षा की स्थिति को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। बाराबंकी स्थित रामस्वरूप मेमोरियल विश्वविद्यालय में हाल ही में पुलिस और लॉ स्टूडेंट्स के बीच हुए विवाद ने न केवल प्रदेश में कानून की पढ़ाई पर सवाल उठाए, बल्कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) की मान्यता प्रक्रिया पर भी बहस छेड़ दी है।

दरअसल, छात्रों के विरोध और पुलिस लाठीचार्ज के बीच 3 सितंबर को रामस्वरूप विश्वविद्यालय को एलएलबी कोर्स की मान्यता मिल गई। यही वह मान्यता थी, जिसके लिए छात्र लंबे समय से आंदोलनरत थे। लेकिन यह राहत केवल एक संस्थान तक सीमित है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU), लखनऊ विश्वविद्यालय (LU) और राज्य के कई बड़े विश्वविद्यालय अब भी BCI मान्यता नवीनीकरण से वंचित हैं। इस देरी के कारण करीब 50 हजार छात्रों का भविष्य अनिश्चितता के घेरे में है।

विधिक शिक्षा नियमावली-2008 के मुताबिक, किसी भी विधिक शिक्षा केंद्र को बिना BCI की मंजूरी के छात्रों को प्रवेश देने या पढ़ाई कराने की अनुमति नहीं है। लॉ कोर्स चलाने के लिए संस्थानों को पहले बार काउंसिल से संबद्धता लेनी होती है और फिर हर साल उसका नवीनीकरण कराना अनिवार्य है। यह प्रक्रिया ही इस समय सबसे बड़ी अड़चन बनी हुई है।

रामस्वरूप विश्वविद्यालय विवाद के बाद जब पुलिस ने छात्रों पर लाठीचार्ज किया, तो मामला राज्य स्तर पर गूंजा। 22 अगस्त को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कैबिनेट बैठक में साफ कहा कि बिना BCI मान्यता वाले संस्थानों पर कठोर कार्रवाई होगी। सरकार ने संकेत दिए कि छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।

पड़ताल से सामने आया है कि प्रदेश में 12 से अधिक विश्वविद्यालय और 35 से अधिक लॉ कॉलेज लंबे समय से मान्यता नवीनीकरण का इंतजार कर रहे हैं। इनमें अयोध्या का राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, बरेली का एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय, झांसी का बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, वाराणसी का महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, लखनऊ विश्वविद्यालय और कानपुर का छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय शामिल हैं। इन संस्थानों से संबद्ध लॉ कॉलेजों की भी स्थिति समान है।

निजी और सरकारी विश्वविद्यालयों का कहना है कि उन्होंने समय पर नवीनीकरण का आवेदन और शुल्क दोनों BCI को जमा कर दिया है। संचालकों का तर्क है कि आवेदन और फीस जमा कराने के बाद उनकी मान्यता को तकनीकी रूप से खत्म नहीं माना जा सकता। यही वजह है कि अधिकांश संस्थान प्रवेश प्रक्रिया और पढ़ाई जारी रखे हुए हैं।

BCI के पूर्व सदस्य गोपाल नारायण मिश्रा भी मानते हैं कि काउंसिल फीस और आवेदन जमा होने के बाद मान्यता रोकती नहीं है। उनके अनुसार, बार काउंसिल एक संवेदनशील संस्था है और छात्रों के हितों को सर्वोपरि रखती है।

उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय का कहना है कि निजी विश्वविद्यालयों पर सरकार का सीधा नियंत्रण नहीं है। हां, उच्च शिक्षा परिषद आंशिक तौर पर निगरानी करती है, लेकिन फीस और प्रवेश जैसे मामलों में हस्तक्षेप की गुंजाइश कम है। मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि छात्रों पर लाठीचार्ज जैसी कार्रवाई अस्वीकार्य है।

उन्होंने बताया कि सरकार “समर्थ पोर्टल” के जरिए राज्य और निजी विश्वविद्यालयों का पूरा डाटा ऑनलाइन उपलब्ध कराने की योजना पर काम कर रही है। इस पोर्टल से पारदर्शिता बढ़ेगी और यह साफ हो सकेगा कि कहां-कहां कौन-से कोर्स चल रहे हैं और कितने छात्र अध्ययनरत हैं।

फिलहाल, रामस्वरूप विश्वविद्यालय को मान्यता मिलने से वहां के छात्रों को राहत जरूर मिली है, लेकिन पूरे प्रदेश में लॉ की पढ़ाई कर रहे हजारों छात्रों के सामने असमंजस की स्थिति बनी हुई है। सवाल यही है कि आखिर कब तक BCI और विश्वविद्यालयों के बीच यह खींचतान जारी रहेगी और छात्रों का भविष्य असुरक्षित रहेगा।

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