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काशी में दीपावली बाद अन्नकूट महोत्सव, मंदिरों में भव्य भोग अर्पित, भक्तिमय माहौल

काशी में दीपावली बाद अन्नकूट महोत्सव, मंदिरों में भव्य भोग अर्पित, भक्तिमय माहौल

वाराणसी में दीपावली के बाद अन्नकूट महोत्सव धूमधाम से संपन्न हुआ, 500 से अधिक मंदिरों में देवी-देवताओं को 500 क्विंटल से ज्यादा भोग लगा।

वाराणसी: दीपावली के बाद अन्नकूट महोत्सव का आयोजन श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ किया गया। इस अवसर पर काशी के 500 से अधिक छोटे-बड़े मंदिरों में देवी-देवताओं को भव्य पकवानों और मिठाइयों से श्रृंगारित किया गया। मंदिरों में रोटी-सब्जी, पूड़ी-कचौड़ी, खीर, हलवा और अन्य पारंपरिक व्यंजन अर्पित किए गए। भक्तों ने हर प्रकार के व्यंजन को भोग के रूप में सजाया और इसे देवी-देवताओं के चरणों में अर्पित किया।

मां अन्नपूर्णा मंदिर में इस वर्ष कुल 511 क्विंटल यानी 51 हजार 100 किलो व्यंजनों का भोग अर्पित किया गया। इसके अतिरिक्त दुर्गा मंदिर में 100 क्विंटल, काशी विश्वनाथ मंदिर में 21 क्विंटल, राम मंदिर और गोपाल मंदिर में 51-51 क्विंटल, और श्रीकृष्ण मंदिर में 21-21 क्विंटल भोग अर्पित किया गया। धर्मसंघ स्थित मणिमंदिर में आयोजित अन्नकूट महोत्सव में 5000 घरों से तैयार किए गए भोग भक्तों द्वारा अर्पित किए गए।

मंदिरों में सजावट और झांकियों का भी विशेष ध्यान रखा गया। पूरे प्रांगण को दीपों, रंगोली और पुष्पों से सजाया गया, जिससे भक्तिमय और सौंदर्यपूर्ण वातावरण तैयार हुआ। बाबा विश्वनाथ ने मां गौरा के साथ दर्शन दिए, जिससे भक्तों में उल्लास और भक्ति की भावना चरम पर पहुंच गई। भक्तों ने सुबह से लेकर देर रात तक पूजा-अर्चना की और भोग अर्पित किया। मंदिर परिसर में जय श्रीकृष्ण और अन्नपूर्णा माता की जयकारे गूंजती रहीं।

अन्नकूट महोत्सव केवल भक्ति का ही नहीं, बल्कि काशी की सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं का भी प्रतीक है। प्रत्येक मंदिर में तैयार किए गए भोग को स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं के बीच वितरित किया गया। महिलाएं, पुरुष और बच्चे सभी उत्साहपूर्वक भाग लेते हुए इस परंपरा का पालन करते दिखाई दिए। मंदिर के पुजारियों ने बताया कि अन्नकूट महोत्सव दशकों से चली आ रही परंपरा है और इसे श्रद्धा एवं भक्ति भाव के साथ मनाना हर वर्ष की विशेषता है।

भक्तों का मानना है कि अन्नकूट महोत्सव में भाग लेकर और सच्चे मन से भोग अर्पित करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिरों में सजावट, झांकियां और विशाल भोग देखने योग्य रहे। इस अवसर पर शहर के विभिन्न हिस्सों से आए श्रद्धालुओं ने मंदिरों में भक्ति और सांस्कृतिक परंपरा को जीवंत रखा।

अन्नकूट महोत्सव ने काशी के मंदिरों और शहर के वातावरण को भक्तिमय बनाया और एक बार फिर यह साबित किया कि धार्मिक उत्सवों के माध्यम से न केवल आस्था का प्रदर्शन होता है, बल्कि समाज में भाईचारा, सेवा और सांस्कृतिक चेतना को भी बढ़ावा मिलता है।

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