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वाराणसी: शारदीय नवरात्रि से पहले मूर्तिकार व्यस्त, तैयार हो रहीं भव्य प्रतिमाएं

वाराणसी: शारदीय नवरात्रि से पहले मूर्तिकार व्यस्त, तैयार हो रहीं भव्य प्रतिमाएं

वाराणसी में शारदीय नवरात्रि के लिए मां दुर्गा की भव्य प्रतिमाएं तैयार हो रही हैं, कारीगरों द्वारा पारंपरिक व आधुनिक कला का मिश्रण देखने को मिल रहा है।

वाराणसी: शारदीय नवरात्रि का पर्व नजदीक आते ही वाराणसी के कारीगरों के बीच भारी चहल-पहल देखने को मिल रही है। यहां के मूर्तिकार दिन-रात मां दुर्गा की प्रतिमाओं को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। कई सप्ताह से लगातार काम कर रहे शिल्पकार अब प्रतिमाओं को सजाने और रंग-रोगन के अंतिम चरण में पहुंच चुके हैं। प्रतिमाओं की भव्यता इस वर्ष और भी खास नजर आ रही है क्योंकि इनमें पारंपरिक शिल्पकला के साथ आधुनिक डिजाइन का मिश्रण भी दिखाई दे रहा है।

शिल्पकार संघ के अध्यक्ष रमेश प्रजापति ने बताया कि इस बार प्रतिमाओं की मांग बीते वर्षों की तुलना में कहीं अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहर के पंडालों तक के आयोजक पहले ही बुकिंग कर चुके हैं। मूर्तिकार अब मां दुर्गा की प्रतिमाओं को चोला पहनाने और पारंपरिक वस्त्र सजाने का कार्य कर रहे हैं। साथ ही उनकी अलंकरण प्रक्रिया भी अंतिम चरण में है।

दुर्गा पूजा के लिए तैयार की जा रही प्रतिमाओं में केवल मां दुर्गा ही नहीं बल्कि उनके साथ महिषासुर, भगवान गणेश, माता सरस्वती, देवी लक्ष्मी और भगवान कार्तिकेय की मूर्तियां भी शामिल हैं। इन सभी प्रतिमाओं को बड़े ध्यान और निपुणता से तैयार किया गया है ताकि वे मंडपों और पूजा पंडालों में स्थापित होने के बाद भक्तों का ध्यान तुरंत आकर्षित कर सकें। श्रद्धालु और स्थानीय लोग इन प्रतिमाओं को देखने के लिए लगातार मूर्तिकारों की कार्यशालाओं में पहुंच रहे हैं और कला की सराहना कर रहे हैं।

इस वर्ष एक विशेष पहल के तहत कारीगरों ने पर्यावरण संरक्षण पर भी ध्यान दिया है। पारंपरिक तरीके से बनाए जा रहे ढांचों के साथ-साथ अब प्रतिमाओं में प्राकृतिक रंगों और पर्यावरण अनुकूल सामग्री का उपयोग किया जा रहा है। इससे न केवल मूर्तियों की शोभा और बढ़ गई है, बल्कि उनका जल में विसर्जन भी पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। कारीगरों का कहना है कि वे चाहते हैं कि भक्ति और उत्सव के साथ प्रकृति की रक्षा का संदेश भी समाज तक पहुंचे।

इन दिनों मूर्तिकारों की कार्यशालाएं गतिविधियों से भरी हुई हैं। सुबह से देर रात तक हथौड़े, ब्रश और रंगों की खनक गूंजती रहती है। शिल्पकार बताते हैं कि यह समय उनके लिए अत्यंत व्यस्त होता है, लेकिन यही व्यस्तता उन्हें संतोष और गर्व देती है क्योंकि उनकी बनाई प्रतिमाएं भक्तों की आस्था का केंद्र बनती हैं। नवरात्रि का पर्व जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे इन मूर्तियों की चमक और भी बढ़ती जा रही है।

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