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वाराणसी: बिरसा मुंडा की विरासत पर राष्ट्रीय संगोष्ठी, CM योगी ने किया उद्घाटन

वाराणसी: बिरसा मुंडा की विरासत पर राष्ट्रीय संगोष्ठी, CM योगी ने किया उद्घाटन

वाराणसी में 'बिरसा मुंडा की विरासत' पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ, जिसका उद्घाटन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया, जिसमें आदिवासी सशक्तिकरण पर जोर दिया गया।

वाराणसी: आदिवासी सशक्तिकरण और राष्ट्रीय आंदोलन में बिरसा मुंडा की ऐतिहासिक भूमिका को केंद्र में रखते हुए वसंत महिला महाविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार की शुरुआत हुई। ‘बिरसा मुंडा की विरासत' आदिवासी सशक्तिकरण और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए उत्प्रेरक’ विषय पर केंद्रित इस संगोष्ठी का उद्घाटन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया। यह आयोजन भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) और वसंत महिला महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में 18 से 19 जुलाई तक आयोजित किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने उद्घाटन संबोधन में कहा कि बिरसा मुंडा का जीवन आदिवासी चेतना का प्रतीक रहा है, जिनकी संघर्षशीलता, साहस और समाजोन्मुखी दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि बिरसा मुंडा न केवल एक जननायक थे, बल्कि उन्होंने औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ आदिवासी समाज को संगठित कर जन-जागरण का आंदोलन खड़ा किया। उनका योगदान आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा है, विशेषकर उन वर्गों के लिए जो समाज में न्याय और समानता की लड़ाई लड़ रहे हैं।

इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में देशभर से 100 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए जाने हैं, जो बिरसा मुंडा के जीवन, विचारों और आंदोलन की व्यापकता को नए दृष्टिकोण से विश्लेषित करेंगे। मुख्य वक्ता के रूप में पद्मश्री अशोक भगत शामिल हैं, जो जनजातीय सशक्तिकरण पर लंबे समय से कार्य कर रहे हैं। उन्होंने अपने उद्बोधन में बिरसा मुंडा को “आदिवासी आत्मसम्मान की जीवंत मूर्ति” बताते हुए कहा कि उनका संघर्ष सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि एक सतत प्रक्रिया है जिसे आज भी सामाजिक आंदोलनों में महसूस किया जा सकता है।

सेमिनार की संयोजक प्रोफेसर अंजना सिंह ने बताया कि संगोष्ठी का उद्देश्य केवल बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि अर्पित करना नहीं, बल्कि उनके जीवन और संघर्ष की बहुआयामी व्याख्या करना है। उन्होंने कहा कि बिरसा मुंडा एक दूरदर्शी नेता थे जिन्होंने आदिवासी समुदाय के अधिकारों, सामाजिक न्याय, सांस्कृतिक पहचान और पर्यावरण संरक्षण की जोरदार वकालत की। उनके विचार आज भी विकास के समावेशी मॉडल की दिशा में एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करते हैं।

डॉ. संवेदना सिंह ने जानकारी दी कि उद्घाटन सत्र के पश्चात सेमिनार के दौरान सात तकनीकी सत्रों का आयोजन किया जाएगा। इन सत्रों में सामाजिक विज्ञान, इतिहास, मानवविज्ञान और राजनीतिक विज्ञान से जुड़े विशेषज्ञ, विद्वान, शोधार्थी और सामाजिक कार्यकर्ता भाग लेंगे। तकनीकी सत्रों के माध्यम से बिरसा मुंडा के आंदोलन की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परतों को गहराई से समझने का प्रयास किया जाएगा।

इस आयोजन में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय विश्वविद्यालयों से आए शोधकर्ताओं, अध्यापकों और छात्र-छात्राओं ने भी भागीदारी की, जिनके लिए यह संगोष्ठी शोध एवं विमर्श का एक महत्वपूर्ण मंच बनकर उभरी है। इस तरह के प्रयास न केवल बिरसा मुंडा जैसी महान विभूतियों के योगदान को वर्तमान संदर्भों में समझने में सहायक होते हैं, बल्कि समावेशी भारत की दिशा में नीतिगत और वैचारिक पहल को भी मजबूती प्रदान करते हैं।

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