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वाराणसी के ग्रामीण इलाकों में गेंदे की खेती से किसानों को बंपर मुनाफा, धान-गेहूं छोड़ा

वाराणसी के ग्रामीण इलाकों में गेंदे की खेती से किसानों को बंपर मुनाफा, धान-गेहूं छोड़ा

वाराणसी के ग्रामीण किसान पारंपरिक फसलें छोड़ अब गेंदे की खेती से मालामाल हो रहे हैं, शादियों के सीजन में बंपर मांग से मिल रहा बंपर मुनाफा।

वाराणसी के ग्रामीण इलाकों में खेती का पैटर्न लगातार बदल रहा है. पहले जहां किसान पारंपरिक फसलों जैसे गेहूं और धान पर निर्भर रहते थे, अब वे कम मेहनत और अधिक मुनाफा देने वाली नगदी फसलों की ओर बढ़ रहे हैं. इनमें गेंदे की खेती सबसे लोकप्रिय होती जा रही है. नवंबर में शादियों का सीजन शुरू होते ही गेंदे की मांग तेजी से बढ़ गई है और किसानों को अपनी फसल का अच्छा मूल्य मिल रहा है. यह बदलाव न केवल गांव की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है बल्कि किसानों को नए विकल्प भी प्रदान कर रहा है.

गेंदे के फूलों की मांग हर साल त्योहारों और शादी सीजन में बढ़ जाती है. इस समय वाराणसी के आसपास के खेतों में गेंदे की फसल पूरी तरह तैयार हो चुकी है. अलग अलग गांवों में किसान सुबह से ही खेतों में फूल तोड़ने में जुटे हैं. बाजार और शहर के फ्लावर डीलरों से सीधे ऑर्डर मिल रहे हैं जिससे किसानों को मैदान स्तर पर ही बेहतर दाम मिल रहा है. सब्जियों के दाम जहां अक्सर ऊपर नीचे होते रहते हैं, वहीं गेंदे के फूलों का मूल्य नवंबर में स्थिर बना रहता है. इससे किसानों को निश्चित आय का भरोसा मिलता है.

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि गेंदे की खेती ग्रामीण क्षेत्रों के लिए तेजी से लाभकारी विकल्प बन रही है. यह फसल कम लागत में तैयार हो जाती है और तीन से चार महीने के भीतर उत्पाद मिलने लगता है. गेहूं या धान की तुलना में इसमें पानी और खाद की भी कम जरूरत होती है. दिवाली के बाद से होने वाले त्योहार और विवाह समारोह किसानों की कमाई को कई गुना बढ़ा देते हैं. यही वजह है कि कई किसान अब पारंपरिक खेती का रकबा घटाकर फूलों की खेती की ओर रुख कर रहे हैं.

इस बदलाव की एक मिसाल स्थानीय किसान राहुल हैं. उन्होंने इस बार पारंपरिक अनाज की खेती में कटौती कर बड़े हिस्से में गेंदे की खेती की. उनका कहना है कि पहले उन्हें अनाज बेचकर साल में केवल एक या दो बार ही पैसा मिलता था, जिससे दैनिक जरूरतें पूरी करना मुश्किल हो जाता था. लेकिन फूलों की खेती ने इस अंतर को कम कर दिया है. शादियों के सीजन में व्यापारी सीधे उनके खेत पर आते हैं और वहीं से फूल खरीद लेते हैं. इससे उन्हें मंडी जाने का खर्च नहीं उठाना पड़ता और मुनाफा भी पहले की तुलना में काफी बढ़ गया है.

राहुल बताते हैं कि फूलों की खेती ने उन्हें सिर्फ आर्थिक मजबूती ही नहीं दी बल्कि उनकी खेती को नए बाजारों से जोड़ने में मदद की. आसपास के और भी किसान अब इस मॉडल को अपनाने की सोच रहे हैं. गेंदे की खेती का विस्तार गांवों के लिए एक सकारात्मक परिवर्तन माना जा रहा है जो आने वाले समय में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकता है.

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