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वाराणसी: नागपंचमी पर काकेमल अखाड़े में कुश्ती दंगल, परंपरा का अद्भुत संगम

वाराणसी: नागपंचमी पर काकेमल अखाड़े में कुश्ती दंगल, परंपरा का अद्भुत संगम

वाराणसी के ऐतिहासिक काकेमल अखाड़े में नागपंचमी पर हुआ भव्य कुश्ती दंगल, जिसमें पहलवानों ने अपना दमखम दिखाया।

वाराणसी: नागपंचमी के पावन अवसर पर काशी के ऐतिहासिक काकेमल अखाड़ा, पशुपतेश्वर चौक में परंपरागत कुश्ती दंगल का भव्य आयोजन किया गया। पक्के महाल की गलियों में गूंजते घोष और मिट्टी में लिपटे हुए पहलवानों की भिड़ंत ने न केवल परंपरा को जीवित रखा बल्कि वीरता, अनुशासन और भक्ति का अद्भुत समागम भी प्रस्तुत किया।

काशी, जो विश्वनाथ मंदिर, गंगा घाटों और बनारसी साड़ियों के लिए विश्वविख्यात है, वह अपने अखाड़ों और पहलवानी परंपरा के लिए भी जानी जाती है। सदियों से काशी के ये अखाड़े केवल पहलवानी के केंद्र नहीं रहे, बल्कि भारतीय संस्कृति, शौर्य और धर्म के संरक्षण का सशक्त माध्यम भी बने हुए हैं। नागपंचमी के दिन अखाड़ों में विशेष पूजन-अर्चन के साथ कुश्ती प्रतियोगिताएं आयोजित करना इसी परंपरा का अंग है।

इसी क्रम में काकेमल अखाड़ा में भी मंगलवार को नागपंचमी पर विशेष श्रृंगार के साथ दक्षिणमुखी बाल स्वरूप श्री हनुमान जी का पूजन हुआ। तत्पश्चात अखाड़े के गौरवशाली मंच पर पारंपरिक दंगल आरंभ हुआ, जिसमें युवा और अनुभवी दोनों पहलवानों ने अपना दमखम दिखाया। सैकड़ों स्थानीय नागरिकों की उपस्थिति में जब पहलवानों ने गदा, जोड़ी और कुश्ती के दांव पेच दिखाए, तो उपस्थित जनसमूह जयघोष और तालियों की गूंज से अखाड़े की मिट्टी में ऊर्जा भरते रहे।

इस अवसर पर अखाड़े के वरिष्ठ पहलवानों बच्चा लाल यादव, विकास पहलवान, प्रशांत आकाश, प्रियेश, वंशु, बबलू, अक्षित, सुक्कू और विष्णु ने शानदार प्रदर्शन किया। वहीं, बच्चों की श्रेणी में विवान यादव, अनुराग यादव और वरुण यादव ने भी अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए दर्शकों की सराहना बटोरी।

अखाड़े के संरक्षकों ने बताया कि नागपंचमी का यह पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि युवा पीढ़ी को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाने का एक अवसर है। पहलवानों द्वारा इस दिन कुश्ती के माध्यम से हनुमान जी की आराधना की जाती है, जो शक्ति और साहस के प्रतीक हैं।

वाराणसी में आज भी दर्जनों से अधिक पारंपरिक अखाड़े मौजूद हैं, जिनमें से कई पक्के महाल क्षेत्र में स्थित हैं। ये अखाड़े समय के साथ भले ही तकनीक और सुविधा से लैस हुए हों, परंतु इनका मूलभाव शरीर और आत्मा की साधना आज भी ज्यों का त्यों जीवित है।

काकेमल अखाड़ा का यह आयोजन न केवल पहलवानी परंपरा का उत्सव था, बल्कि यह इस बात का प्रमाण भी है कि काशी आज भी अपने संस्कारों और सांस्कृतिक विरासत को पूरे श्रद्धा और संकल्प के साथ सहेजे हुए है। आयोजनों में शामिल क्षेत्रीय नागरिकों की उपस्थिति और उत्साह इस परंपरा को आगे बढ़ाने का संकल्प था, जिसे हर वर्ष नागपंचमी पर पुनः दोहराया जाता है।

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