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काशी में नाग पंचमी पर दिखा श्रद्धा का सैलाब, मां मंसा देवी मंदिर में वार्षिक श्रृंगार

काशी में नाग पंचमी पर दिखा श्रद्धा का सैलाब, मां मंसा देवी मंदिर में वार्षिक श्रृंगार

वाराणसी के रामनगर स्थित मां मंसा देवी मंदिर में नाग पंचमी पर भव्य श्रृंगार हुआ जिसमें हजारों श्रद्धालु उमड़ पड़े।

वाराणसी: रामनगर/ काशी की धरती पर मंगलवार को नाग पंचमी के पावन अवसर पर श्रद्धा का ऐसा ज्वार उमड़ा, जो वर्षों तक लोगों की स्मृतियों में गूंजता रहेगा। रामनगर स्थित मां मंसा देवी मंदिर में वार्षिक श्रृंगार का भव्य आयोजन हुआ, जिसमें हजारों श्रद्धालु आस्था के सागर में डूबे नजर आए। यह आयोजन न केवल एक धार्मिक पर्व था, बल्कि काशी की सनातन परंपरा और लोकविश्वास की आत्मा को सजीव करने वाला जीवंत उदाहरण भी बना।

✍️कौन हैं मां मंसा देवी?

मां मंसा देवी हिंदू धर्म की एक प्रमुख लोक-देवी हैं, जिन्हें नागों की देवी तथा मनोकामना पूर्ति की देवी माना जाता है। 'मंसा' का अर्थ होता है, मन से उत्पन्न। ऐसी मान्यता है कि देवी मंसा, भगवान शिव के मन से प्रकट हुईं थीं और वे नागों की अधिष्ठात्री देवी हैं। वे विशेष रूप से सांपों के डसने से रक्षा, कष्टों से मुक्ति और सच्चे हृदय से मांगी गई कामनाओं की पूर्ति के लिए पूजनीय हैं। उनका वाहन सर्प है, और उन्हें पूजा जाता है विशेष रूप से बंगाल, बिहार, झारखंड, असम और उत्तर प्रदेश के कुछ अंचलों में।

✍️ नाग पंचमी पर क्यों होती है मां मंसा देवी की पूजा?

नाग पंचमी, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है, जो सर्पों के प्रति सम्मान और प्रकृति के संतुलन की आराधना का दिन है। इस दिन मां मंसा देवी की पूजा करने से जीवन में सर्प भय, रोग-शोक, अकाल मृत्यु और अज्ञात दोषों से मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि इस दिन मां मंसा के श्रृंगार और पूजन से सर्प दोष निवारण होता है और कुल का कल्याण होता है। विशेषकर जब पूजा नागराजों की देवी मंसा के प्राचीन मंदिर में की जाए, तो उसका फल हजारगुना बढ़ जाता है।

✍️रामनगर में मां मंसा देवी मंदिर की स्थापना कब और कैसे हुई?

रामनगर स्थित मां मंसा देवी मंदिर का इतिहास अत्यंत गौरवशाली और पुरातन है। इसकी स्थापना काशी राज्य के शासनकाल में काशी नरेश महाराजा उदय नारायण सिंह के शासनकाल में 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में हुई थी। यह मंदिर गंगा तट के समीप किला रोड पर स्थित है और यह माना जाता है कि जब महाराजा को एक भयानक स्वप्न में सर्पदंश से जुड़ा संकेत मिला, तब राजगुरु के परामर्श पर इस मंदिर की स्थापना कराई गई। तभी से यह परंपरा शुरू हुई कि हर वर्ष नाग पंचमी के दिन मां मंसा देवी का विशेष श्रृंगार होगा और यह श्रृंगार स्वयं काशी राज परिवार की उपस्थिति में सम्पन्न होगा।

✍️श्रृंगार उत्सव में डूबा रामनगर

मंगलवार को हुए श्रृंगार आयोजन की भव्यता देखते ही बनती थी। देवी के विग्रह को दुल्हन की तरह सजाया गया। स्वर्णाभूषणों से लेकर रत्नजड़ित मुकुट तक, देवी का स्वरूप अद्वितीय, चमत्कारी और दर्शनमात्र से कृतार्थ कर देने वाला प्रतीत हो रहा था। मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित सुधाकर मिश्रा ने वैदिक विधि-विधान से श्रृंगार और आरती का आयोजन संपन्न कराया।

श्रद्धालुओं की भीड़ इतनी अधिक थी कि शाम होते-होते मंदिर के बाहर लंबी कतारें लग गईं। पूरे दिन दर्शन करने वालों का तांता लगा रहा। पुलिस बल को भीड़ नियंत्रित करने में मशक्कत करनी पड़ी, लेकिन भक्ति की मर्यादा इतनी प्रबल थी कि हर स्थान अनुशासन का उदाहरण बना रहा।

✍️ काशी राज प्रतिनिधि और महाप्रसाद वितरण

काशी राज के प्रतिनिधि डॉ. अनंत नारायण सिंह, किले के अधिकारीगण, स्थानीय जनप्रतिनिधि और सामाजिक संगठनों की सहभागिता ने आयोजन को और भी भव्यता प्रदान की। संतोष द्विवेदी एवं उनकी सेवा समिति द्वारा विशाल महाप्रसाद वितरण का आयोजन किया गया, जिसमें हज़ारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया।

✍️रामनगर में लोकआस्था का प्रतीक

रामनगर का यह मंदिर केवल ईंट-पत्थरों से बना ढांचा नहीं, बल्कि काशी की लोक-संस्कृति, विश्वास और श्रद्धा का वह स्तंभ है, जो हर नाग पंचमी को और दृढ़ होता जाता है। यहां की आस्था पीढ़ियों से बह रही है। एक मां के प्रति जो केवल देवी नहीं, बल्कि संकटों में आश्रय देने वाली शक्ति का नाम है: मां मंसा देवी।

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