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वाराणसी: रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने किया पुस्तक विमोचन

वाराणसी: रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने किया पुस्तक विमोचन

वाराणसी में साहित्यकार मनु शर्मा पर केंद्रित पुस्तक 'अग्निरथ का सारथी' का विमोचन हुआ, धीरेंद्र शास्त्री ने ज्ञान की महिमा बताई।

वाराणसी में मंगलवार को रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में साहित्यकार पद्मश्री मनु शर्मा पर केंद्रित डॉ. इंदीवर की पुस्तक ‘अग्निरथ का सारथी’ का भव्य विमोचन किया गया। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम ‘हमारे मनु’ में बागेश्वर धाम के प्रमुख पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने अपने प्रेरक संबोधन में कहा कि जब दुनिया साथ छोड़ देती है, तब भी ज्ञान और ग्रंथ मनुष्य के साथ खड़े रहते हैं। अस्त्र-शस्त्र, पद और प्रतिष्ठा भले ही साथ न दें, लेकिन गुरु और ग्रंथ कभी साथ नहीं छोड़ते। यही सच्चे मार्गदर्शक हैं जो व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं।

उन्होंने कहा कि ज्ञान का स्रोत या तो गुरु होता है या फिर ग्रंथ। अगर जीवन में गुरु उपलब्ध न हो, तो ग्रंथ ही मार्गदर्शन करते हैं। पुस्तक हमें ज्ञान के उस शिखर तक पहुंचाने का माध्यम बनती है, जहां से जीवन का असली अर्थ समझ में आता है। उन्होंने कहा कि जिसका गुरु बलवान हो या जिसका ग्रंथ बलवान हो, उसका चेला हमेशा सफल होता है। ग्रंथ की शक्ति का प्रमाण काशी स्वयं है, क्योंकि यहां के ज्ञान और संस्कृति ने विश्व को नई दिशा दी है।

पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने काशी की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि काशी केवल एक नगर नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की आत्मा है। उन्होंने बताया कि उनके दादा का अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर हुआ था, जिसके दौरान उन्हें पंद्रह दिनों तक काशी में रहने का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि उस दौरान उन्होंने यहां के मंदिर, घाट, गली-चौराहे, गंगा आरती और विद्वानों की परंपरा को नजदीक से देखा और समझा। उन्होंने कहा कि काशी में अक्खड़ता, फक्कड़ता, भक्ति और ज्ञान का अनूठा संगम देखने को मिलता है। बाबा विश्वनाथ और भैरवनाथ के दर्शन ने उन्हें यह अनुभव कराया कि काशी वास्तव में भारत की असली शान है।

मनु शर्मा को स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि कुछ लोग भले ही इस दुनिया से चले जाते हैं, लेकिन उनकी चेतना, सोचने का ढंग और जीवन जीने की पद्धति हमेशा जीवित रहती है। मनु शर्मा ऐसे ही साहित्यकार थे, जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से समाज को नई दिशा दी। उनके विचार और कर्म आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।

कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन और अतिथि सम्मान के साथ हुई। पुस्तक के प्रकाशक प्रभात कुमार ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। मनु शर्मा के पुत्र और साहित्यकार हेमंत शर्मा ने ‘हमारे मनु’ कार्यक्रम के उद्देश्य और उनके जन्मशती समारोह की रूपरेखा प्रस्तुत की। मनु शर्मा के पोते पार्थ शर्मा ने उनके नाम पर दी जाने वाली छात्रवृत्ति योजना की जानकारी दी और छह विद्यार्थियों को पुस्तकें भेंट की गईं।

केंद्रीय पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कार्यक्रम को दक्षिण अफ्रीका से ऑनलाइन संबोधित करते हुए कहा कि मनु शर्मा के साहित्य ने भारतीय संस्कृति और मूल्यों को सहेजने का काम किया है। वहीं, केंद्रीय मत्स्य, डेयरी मंत्री प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल ने कहा कि मनु शर्मा ने न केवल कर्ण की आत्मकथा लिखी, बल्कि उसे जिया भी। उन्होंने अपने निधन के समय बीस लाख रुपये काशी के घाटों के संरक्षण के लिए दान में दिए, जो उनके समाजसेवी व्यक्तित्व का प्रमाण है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए असम के राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य ने कहा कि पुस्तकें जीवन का आईना होती हैं। इनके शब्द मनुष्य को सही राह दिखाते हैं और जीवन जीने की कला सिखाते हैं। महापौर अशोक तिवारी ने कार्यक्रम के समापन पर घोषणा की कि वाराणसी में उपयुक्त स्थान चुनकर पद्मश्री मनु शर्मा की प्रतिमा स्थापित की जाएगी।

कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल, स्टांप राज्यमंत्री रवींद्र जायसवाल, आयुष मंत्री डॉ. दयाशंकर मिश्र दयालु, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बिहारीलाल शर्मा, काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

यह आयोजन न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा, बल्कि इसने यह भी संदेश दिया कि समय चाहे कितना भी बदल जाए, गुरु और ग्रंथ की शक्ति सदैव अटूट रहती है और वही मनुष्य को सच्चे अर्थों में जीवन का मार्ग दिखाते हैं।

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