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लखनऊ: पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित परिवारों को भूमि स्वामित्व देगी योगी सरकार

लखनऊ: पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित परिवारों को भूमि स्वामित्व देगी योगी सरकार

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित होकर उत्तर प्रदेश में बसे परिवारों को भूमि स्वामित्व अधिकार देने की प्रक्रिया को तत्काल गति देने का निर्देश दिया है।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को लोक भवन में एक उच्चस्तरीय बैठक में ऐतिहासिक और मानवीय दृष्टिकोण से अत्यंत संवेदनशील विषय पर महत्वपूर्ण निर्णय लिया। बैठक में उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से विस्थापित होकर राज्य के विभिन्न जिलों में बसे हजारों परिवारों को विधिसम्मत भूमि स्वामित्व अधिकार दिए जाने की प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से गति देने का निर्देश दिया। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि यह केवल प्रशासनिक या संपत्ति स्थानांतरण का मुद्दा नहीं है, बल्कि दशकों से संघर्षरत उन परिवारों के आत्मसम्मान और उनके अधिकारों को स्थापित करने का प्रयास है, जिन्होंने देश की सीमाओं के पार से आकर यहां शरण ली थी और पुनर्वास की प्रतीक्षा में एक लंबा समय बिता दिया।

मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से कहा कि इस विषय में संवेदना और गरिमा के साथ कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि शासन की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वह उन विस्थापितों के साथ न्याय करे, जो भारत के नागरिक होने के बावजूद अब तक अपने नाम से भूमि के स्वामित्व की वैधानिक पुष्टि का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सभी संबंधित जिलों में प्रशासन ऐसी पारदर्शी और व्यवहारिक कार्ययोजना बनाए, जिससे वास्तविक पात्रों को शीघ्र लाभ मिल सके और विवाद की आशंका समाप्त हो।

बैठक में अधिकारियों ने मुख्यमंत्री को विस्तार से जानकारी दी कि 1960 से 1975 के बीच जब पूर्वी पाकिस्तान से हजारों परिवारों ने भारत में शरण ली, तब उनमें से कई को उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, बिजनौर और रामपुर जिलों में कृषि भूमि के साथ बसाया गया था। प्रारंभ में ट्रांजिट कैंपों में रहने के बाद इन परिवारों को स्थायी रूप से पुनर्वासित किया गया, परंतु कानूनी और दस्तावेजी त्रुटियों के चलते आज तक उन्हें भूमिधरी अधिकार नहीं मिल पाए हैं। कहीं भूमि पर कब्जा तो है, लेकिन रिकॉर्ड में नाम नहीं। कहीं नाम तो दर्ज हैं, लेकिन जमीन वन विभाग या अन्य राजकीय संस्थानों के नाम दर्ज हो चुकी है। वहीं कुछ मामलों में नामांतरण लंबित है, जिससे स्वामित्व को वैधता नहीं मिल पा रही है।

अधिकारियों ने यह भी बताया कि वर्षों से कुछ विस्थापित परिवार उन गांवों में रह रहे हैं, जहां उन्होंने खेती के साथ-साथ मकान भी बना लिए हैं, किंतु उनका अस्तित्व सरकारी अभिलेखों में नहीं दिखता। वहीं कुछ स्थानों पर ऐसे परिवार अब मौजूद ही नहीं हैं, जिन्हें मूलतः पुनर्वासित किया गया था। कुछ जगहों पर गैर-कानूनी रूप से कब्जा भी देखा गया है, जिससे कई बार विवाद उत्पन्न हो जाता है। इन सब कारणों से स्थिति जटिल हो चुकी है और दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निर्देश दिया कि उन मामलों की विशेष समीक्षा की जाए, जिनमें पहले गर्वनमेंट ग्रांट एक्ट के तहत भूमि आवंटन किया गया था। चूंकि यह अधिनियम 2018 में निरस्त हो चुका है, इसलिए वर्तमान कानूनी ढांचे में ही व्यावहारिक और वैध समाधान खोजे जाएं। उन्होंने इस मुद्दे को न केवल प्रशासनिक प्राथमिकता का विषय बताया, बल्कि इसे सामाजिक और ऐतिहासिक न्याय की भावना से जोड़ते हुए मानवीयता आधारित समाधान अपनाने पर भी बल दिया।

बैठक में राजस्व, गृह, वन एवं पुनर्वास विभाग के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे, जिन्होंने विभिन्न पहलुओं पर अपना पक्ष और रिपोर्ट प्रस्तुत की। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि आगामी समय में जिलावार प्रगति की नियमित समीक्षा की जाएगी और जहां कहीं आवश्यक हो, वहां विशेष टीम गठित कर समाधान सुनिश्चित किया जाएगा।

यह निर्णय लंबे समय से अपनी पहचान और अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे विस्थापित परिवारों के लिए एक नई उम्मीद की किरण है। शासन की इस पहल से न केवल उनके कानूनी अधिकार सुनिश्चित होंगे, बल्कि दशकों पुराना सामाजिक न्याय भी साकार होगा।

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