Sat, 26 Jul 2025 00:29:24 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
मेरठ/पुंछ: जम्मू-कश्मीर के पुंछ सेक्टर में हुए बारूदी सुरंग विस्फोट में मेरठ के पस्तरा गांव निवासी 20 वर्षीय अग्निवीर ललित कुमार के बलिदान की खबर जैसे ही गांव पहुंची, पूरे क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई। परिवार का सबसे छोटा बेटा होने के बावजूद ललित ही घर की जिम्मेदारी उठाने वाला कंधा था, जो अब हमेशा के लिए सन्नाटे में बदल चुका है।
ललित कुमार की पहली पोस्टिंग जम्मू के पुंछ में हुई थी। शुक्रवार दोपहर वह अपनी चौकी के पास नायब सूबेदार हरिराम और हवलदार गजेंद्र सिंह के साथ नियमित गश्त पर निकला था। इस दौरान बारूदी सुरंग फट गई। धमाका इतना जबरदस्त था कि तीनों सैनिक गंभीर रूप से घायल हो गए। इलाज के दौरान ललित कुमार ने अंतिम सांस ली। नायब सूबेदार और हवलदार भी इलाजरत हैं।
ललित की शहादत की सूचना सेना की ओर से शुक्रवार दोपहर करीब दो बजे मोबाइल पर दी गई। फोन आया तो पिता राजपाल, जो मजदूरी करके घर चलाते हैं, सुनते ही सन्न रह गए। पहले बताया गया कि ललित घायल है और हालत गंभीर है, लेकिन थोड़ी देर बाद शहादत की पुष्टि ने परिवार की दुनिया ही उजाड़ दी। मां सरोज देवी खबर सुनते ही बेसुध होकर गिर पड़ीं। बहन काजल और भाइयों कुलदीप व नितिन का रो-रोकर बुरा हाल है।
ललित ने करीब डेढ़ साल पहले अग्निवीर के रूप में भारतीय सेना में भर्ती होकर देश सेवा की शुरुआत की थी। हालांकि उम्र में सबसे छोटा था, लेकिन परिवार की आर्थिक और सामाजिक जिम्मेदारी उसी ने संभाली थी। वह भाइयों और बहन को पढ़ाना चाहता था, उनके भविष्य के लिए योजनाएं बना रहा था। मां-बाप के लिए घर बनवाने और भाइयों की शादी करवाने का सपना देख रहा था। मगर यह सपना अधूरा ही रह गया।
गांव के लोग बताते हैं कि ललित बेहद मिलनसार और जिम्मेदार स्वभाव का था। उसके बलिदान की खबर मिलते ही लोग परिवार को ढांढस बंधाने जुटने लगे। गांव के बुजुर्गों से लेकर युवाओं तक सभी की आंखें नम थीं। हर कोई बस यही कहता नजर आया "हमारा ललित देश के लिए कुर्बान हो गया।"
शहीद ललित कुमार अभी 17 दिन पहले ही 9 जुलाई को 15 दिन की छुट्टी बिताकर ड्यूटी पर लौटा था। तब पूरा परिवार उसे खुशी-खुशी मेरठ स्टेशन छोड़ने आया था। ललित ने वादा किया था कि वह जल्दी ही फिर से छुट्टी लेकर आएगा क्योंकि गांव में कई काम अधूरे हैं। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।
अब पूरा गांव ललित के पार्थिव शरीर के पस्तरा पहुंचने का इंतजार कर रहा है। अंतिम दर्शन के लिए सैकड़ों की भीड़ उमड़ने की संभावना है। प्रशासन और सेना के अधिकारियों द्वारा पूरे सैन्य सम्मान के साथ उसका अंतिम संस्कार किया जाएगा। इस असमय बलिदान ने सिर्फ एक परिवार नहीं, बल्कि पूरे गांव को गमगीन कर दिया है।
देश सेवा के इस गौरवशाली बलिदान के बीच अब एक सवाल भी गांव के लोगों के मन में उभर रहा है। क्या ललित के परिवार को सरकार से वह सहयोग और सम्मान मिलेगा, जिसके वे हकदार हैं? शहीद की मां की सूनी आंखें और पिता का कांपता कंधा आज इसी उम्मीद में है कि ललित की कुर्बानी को सिर्फ खबर बनकर नहीं छोड़ा जाएगा, बल्कि उसे उचित सम्मान मिलेगा।