Thu, 30 Oct 2025 14:43:57 - By : Yash Agrawal
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए नाबालिग पत्नी को उसके पति की अभिरक्षा में सौंपने से इंकार कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि जब तक लड़की बालिग नहीं हो जाती, उसे राजकीय बाल गृह निर्धरिया, बलिया में ही रखा जाएगा। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि बालिग होने के बाद लड़की को अपनी इच्छा के अनुसार निर्णय लेने की पूरी स्वतंत्रता होगी, वह जहां चाहे और जिसके साथ चाहे रह सकेगी।
मामला देवरिया जिले का है, जहां एक व्यक्ति ने अपनी नाबालिग बेटी के अपहरण और दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए एक युवक के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। आरोपी पर पॉक्सो एक्ट के तहत भी मामला दर्ज किया गया था। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया था, लेकिन बाद में उसे जमानत मिल गई। इस दौरान मेडिकल रिपोर्ट में यह सामने आया कि किशोरी 29 सप्ताह की गर्भवती है।
सुनवाई के दौरान किशोरी ने अदालत में बयान दिया कि उसने अपनी मर्जी से युवक से शादी की थी और पति के रूप में उसके साथ रह रही थी। हालांकि, स्कूल के अभिलेखों में उसकी उम्र 15 साल 7 महीने दर्ज पाई गई, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि वह अभी नाबालिग है।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि नाबालिग को पति के साथ भेजना उसे यौन शोषण के खतरे में डाल सकता है और ऐसा करना पॉक्सो एक्ट के तहत नया अपराध माना जाएगा। अदालत ने टिप्पणी की कि कानून का उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है और नाबालिगों को किसी भी प्रकार की शोषणपूर्ण परिस्थिति से बचाना न्याय व्यवस्था की जिम्मेदारी है।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि किशोरी बालिग होने तक राजकीय बाल गृह में ही रहेगी, जहां उसकी सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य की उचित देखभाल की जाएगी। जैसे ही वह बालिग होगी, उसे अपनी जीवनशैली और संबंधों के बारे में स्वयं निर्णय लेने की पूरी स्वतंत्रता दी जाएगी। अदालत के इस आदेश को बाल संरक्षण और कानून के सिद्धांतों के अनुरूप एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील कदम माना जा रहा है।