Thu, 25 Sep 2025 12:22:27 - By : Shriti Chatterjee
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के जूलॉजी विभाग के प्रोफेसर शैल कुमार चौबे के निलंबन को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया है। न्यायाधीश सीडी सिंह ने प्रोफेसर चौबे की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए विश्वविद्यालय को निर्देश दिया है कि वह इस आदेश की प्रमाणित प्रति मिलने के दो सप्ताह के भीतर उनके निलंबन से संबंधित सभी तथ्य कार्यकारिणी परिषद के समक्ष रखे। इसके बाद कार्यकारिणी परिषद प्रोफेसर को अपना पक्ष रखने का अवसर प्रदान कर उचित और तार्किक आदेश पारित करेगी।
सुनवाई के दौरान प्रोफेसर के वकील ने बताया कि हाई कोर्ट की पूर्व खंडपीठ ने उनकी अनिवार्य सेवानिवृत्ति को पहले ही रद्द कर दिया था। इसके बावजूद विश्वविद्यालय की ओर से प्रोफेसर को निलंबित कर दिया गया था। विश्वविद्यालय की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अजीत कुमार सिंह ने कहा कि कार्यकारिणी परिषद का गठन पहले ही किया जा चुका है और संपूर्ण मामले को नए सिरे से निर्णय के लिए इसके समक्ष रखा जाएगा। याचिकाकर्ता के वकील ने अनुरोध किया कि मामला कार्यकारिणी परिषद के पास भेजने का निर्देश देकर याचिका का निपटारा किया जाए।
हाई कोर्ट ने 16 सितंबर को अपने आदेश में कहा कि कुलपति की मंजूरी से 26 जून, 2025 को पारित निलंबन का आदेश रद्द किया जाता है। इस मामले में आरोप है कि प्रोफेसर ने छात्रों पर अशोभनीय टिप्पणियां की थीं। दिसंबर 2018 में आंतरिक शिकायत समिति ने इस मामले की जांच की और अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की।
मामला वर्ष 2018 का है जब जूलॉजी विभाग का एक शैक्षिक यात्रा दल उड़ीसा के पुरी गया था। इस यात्रा के दौरान 17 छात्राओं ने प्रोफेसर चौबे पर अश्लील टिप्पणी करने का आरोप लगाया। छात्राओं ने यात्रा से लौटने के बाद कुलपति को शिकायत की। विश्वविद्यालय ने तत्काल आंतरिक जांच समिति का गठन किया, जिसने एक महीने से अधिक समय तक छात्राओं, कर्मचारियों और शिक्षकों से पूछताछ की।
जांच में पाया गया कि प्रोफेसर चौबे छात्रों के साथ अनुचित व्यवहार में दोषी थे। समिति की रिपोर्ट कुलपति को सौंपी गई और इसके बाद इसे बीएचयू कार्यकारिणी परिषद में रखा गया। परिषद ने प्रोफेसर को भविष्य में किसी प्रशासनिक पद पर न रखने की सजा सुनाई। इसके बाद प्रोफेसर को विश्वविद्यालय में पुनः शामिल कराया गया, जिससे छात्रों में आक्रोश पैदा हुआ। जुलाई 2019 में बीएचयू कोर्ट के आदेश के तहत उन्हें रिटायर कर दिया गया। इसके खिलाफ प्रोफेसर ने अदालत का रुख किया और हाई कोर्ट ने उनकी सेवानिवृत्ति रद्द कर दी। इस वर्ष जून में उन्हें सस्पेंड किया गया था, जिसे अब हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार रद्द कर दिया गया है।