Mon, 10 Nov 2025 15:08:22 - By : Shriti Chatterjee
काशी में मां अन्नपूर्णा का 17 दिन का महाव्रत सोमवार से आरंभ हो गया है। मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष पंचमी के शुभ दिन पर भक्तों ने मां अन्नपूर्णा की पूजा अर्चना के साथ 17 गांठ का पवित्र धागा ग्रहण कर व्रत की शुरुआत की। परंपरा के अनुसार, यह व्रत हर वर्ष इसी अवधि में रखा जाता है और इसका विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व माना जाता है।
सुबह से ही भक्त अन्नपूर्णा मंदिर में उमड़ पड़े। मंदिर परिसर में भक्ति और आस्था का वातावरण दिखाई दिया। श्रद्धालु मंदिर के महंत शंकर पुरी के हाथों से पूजन के लिए 17 गांठ का धागा प्राप्त कर रहे थे। इसी धागे को पहनकर वे अगले 17 दिनों तक मां की उपासना, कथा श्रवण और व्रत का पालन करेंगे। इस दौरान मां अन्नपूर्णा से घर में अन्न, धन और समृद्धि की कामना की जाती है।
यह व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि श्रद्धा और अनुशासन का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि 17 दिनों तक मां अन्नपूर्णा का ध्यान और पूजा करने से जीवन में स्थिरता और समृद्धि आती है। भक्त इस अवधि में सात्विक आहार ग्रहण करते हैं और प्रतिदिन मां की कथा सुनते हैं। मंदिर में सुबह और शाम दोनों समय आरती और भजन संध्या का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हो रहे हैं।
पूर्वांचल के किसानों ने भी इस अवसर पर अपनी पहली फसल मां अन्नपूर्णा को अर्पित की। किसान समुदाय का यह विश्वास है कि मां को अर्पण की गई पहली उपज से खेतों में उत्पादन बढ़ता है और वर्ष भर सुख-शांति बनी रहती है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि यह परंपरा सदियों पुरानी है और ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरों तक इस व्रत का पालन बड़ी आस्था के साथ किया जाता है।
महंत शंकर पुरी ने बताया कि यह व्रत 17 वर्षों तक लगातार रखने वाले भक्त विशेष फल प्राप्त करते हैं। उन्होंने कहा कि इस बार भी कई श्रद्धालु ऐसे हैं जो वर्षों से इस परंपरा को निभा रहे हैं और 17 वर्षों का व्रत पूर्ण करने वाले भक्त 17 दिनों के उपवास के बाद मां की परिक्रमा करके आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।
व्रत का समापन 26 नवंबर को होगा, जब मां अन्नपूर्णा को धान की बालियों से विशेष रूप से सजाया जाएगा। 27 नवंबर को मां के शृंगार में उपयोग किए गए धान का प्रसाद भक्तों में वितरित किया जाएगा। इसे ग्रहण करने से घर में अन्न की कमी नहीं रहती, ऐसा विश्वास है। मंदिर प्रबंधन ने बताया कि व्रत की अवधि में भक्तों के लिए कथा, कीर्तन और प्रसाद वितरण का आयोजन प्रतिदिन किया जाएगा।
काशी में इस महाव्रत का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी गहरा है। यहां अन्नपूर्णा मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि अन्न और समृद्धि की देवी के रूप में यह पूरे क्षेत्र की जीवनशैली से जुड़ा हुआ है। हर वर्ष की तरह इस बार भी देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु काशी पहुंच रहे हैं ताकि मां अन्नपूर्णा की आराधना कर व्रत का पुण्य प्राप्त कर सकें।