Thu, 16 Oct 2025 15:07:34 - By : Shubheksha vatsh
वाराणसी: 16 अक्टूबर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने शिक्षा के क्षेत्र में एक और ऐतिहासिक कदम उठाया है। नई शिक्षा नीति के अंतर्गत बीएचयू में भारत का पहला पुरातत्व जीवविज्ञान यानी Archaeological Zoology कोर्स शुरू किया गया है। यह तीन क्रेडिट का एक मल्टी डिसीप्लीनेरी कोर्स है जिसे बीएससी तीसरे सेमेस्टर के छात्रों के लिए प्रारंभ किया गया है। इस कोर्स के माध्यम से छात्र सिंधु-सरस्वती सभ्यता, नीएंडरथल मानवों और प्राचीन डीएनए तकनीक के साथ-साथ मानव विकास के हजारों वर्षों पुराने रहस्यों को वैज्ञानिक दृष्टि से समझ सकेंगे।
इस कोर्स को जंतु विज्ञान विभाग के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने डिजाइन किया है। उनका कहना है कि यह कोर्स विज्ञान, इतिहास, पुरातत्व और आनुवंशिकी को एक साथ जोड़ता है। इसमें मानव और पशु अवशेषों के अध्ययन के जरिए छात्रों को अतीत के जीवन को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने का अवसर मिलेगा। कोर्स में दक्षिण एशिया के प्रागैतिहासिक कालखंड यानी लगभग 25 लाख ईसा पूर्व तक के जीवन और मानव विकास की प्रक्रिया पर विशेष ध्यान दिया गया है।
प्रोफेसर चौबे ने बताया कि कोर्स की संरचना पाषाण युग से लेकर प्राचीन डीएनए के अध्ययन तक के रोमांचक सफर को समेटे हुए है। इसमें दक्षिण एशिया के पुरातात्विक कालक्रम, प्रारंभिक कृषि क्रांति, पशुपालन और जंगली पशुओं से घरेलू पशुओं के विकास की प्रक्रिया को विस्तार से समझाया जाएगा। छात्र कांस्य और लौह युगों के औजारों के निर्माण, सभ्यताओं के उदय और सिंधु-सरस्वती तथा गंगा घाटी के मानव एवं पशु अवशेषों के वैज्ञानिक विश्लेषण से भी परिचित होंगे।
कोर्स में मानव उत्पत्ति, अफ्रीका से आधुनिक मानवों के प्रवास, दक्षिण एशिया की आनुवंशिक विविधता और नीएंडरथल तथा डेनिसोवांस जैसे प्राचीन मानवों के जीनोमिक रहस्यों को गहराई से समझाया जाएगा। इसका एक विशेष भाग प्राचीन डीएनए तकनीक पर केंद्रित है, जिसमें मानव विकास, पशुपालन की जीन तकनीक, लैक्टोज सहनशीलता और रोगों के प्रभाव जैसे विषयों पर अध्ययन कराया जाएगा।
इस कोर्स में देश के नामी वैज्ञानिक और पुरातत्व विशेषज्ञ अतिथि व्याख्याता के रूप में शामिल किए जा रहे हैं। इनमें प्रोफेसर वसंत शिंदे, डॉ के थंगराज और डॉ सचिन तिवारी प्रमुख हैं। प्रोफेसर शिंदे का कहना है कि यह कोर्स दक्षिण एशिया के प्राचीन रहस्यों को नई दृष्टि से देखने और समझने का अवसर प्रदान करेगा। यह आने वाली पीढ़ियों के शोधकर्ताओं के लिए एक मजबूत नींव तैयार करेगा और उन्हें भारतीय पुरातत्व के वैज्ञानिक पहलुओं से जोड़ने में मदद करेगा।
बीएचयू की यह पहल न केवल विज्ञान शिक्षा में एक अभिनव प्रयोग है बल्कि भारत की सांस्कृतिक और जैविक विरासत को आधुनिक शोध के माध्यम से समझने का प्रयास भी है। इस कोर्स के माध्यम से छात्र अतीत के रहस्यों से जुड़कर भविष्य की वैज्ञानिक खोजों के लिए प्रेरित होंगे।