बीएचयू वैज्ञानिक शुक्र के गहरे रहस्यों को समझने में जुटे, इसरो मिशन को मिलेगा लाभ

बीएचयू के वैज्ञानिक शुक्र की सतह और वायुमंडल के रहस्यों पर शोध कर रहे हैं, जो इसरो के शुक्रयान मिशन में सहायक होगा।

Sat, 06 Dec 2025 14:48:40 - By : Tanishka upadhyay

वाराणसी: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक शुक्र ग्रह की सतह और वायुमंडल के गहरे रहस्यों को समझने की दिशा में महत्वपूर्ण शोध कर रहे हैं। पृथ्वी के समान माने जाने वाले वीनस पर अत्यधिक तापमान, घना कार्बन डाइआक्साइड वातावरण और सल्फ्यूरिक एसिड के बादलों जैसी स्थितियां इसे सौर मंडल का सबसे चुनौतीपूर्ण ग्रह बनाती हैं। ऐसे जटिल वातावरण में होने वाली भूगर्भीय गतिविधियों को समझने के लिए बीएचयू की टीम अंतरराष्ट्रीय शोध समूह के साथ मिलकर सतह की संरचना का विश्लेषण कर रही है।

बीएचयू के भूविज्ञान विभाग के शोधकर्ता वीनस की सतह पर मौजूद डाइक्स नामक चट्टानी संरचनाओं का विस्तृत मानचित्रण कर रहे हैं। यह डाइक्स मैग्मा के ठंडा होने से बनती हैं और ग्रह की ज्वालामुखीय गतिविधियों का संकेत देती हैं। शोध समूह इन संरचनाओं के पैटर्न को समझकर इस बात का अनुमान लगाएगा कि ग्रह के नीचे कहां मैग्मैटिक प्लूम सेंटर मौजूद हो सकते हैं। इससे यह जानना संभव होगा कि वीनस वर्तमान में भूवैज्ञानिक रूप से सक्रिय है या नहीं।

यह अध्ययन इसरो के प्रस्तावित शुक्रयान मिशन के लिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जिसका प्रक्षेपण वर्ष 2028 में किया जाना है। अभी तक वैज्ञानिकों को वीनस की सतह का डाटा नासा के मैगलन अंतरिक्ष यान की रडार छवियों से ही प्राप्त हो रहा है, लेकिन शुक्रयान मिशन से सतह के भीतर की जानकारियां भी उपलब्ध होंगी। जिससे ग्रह की भूगर्भीय गतिविधि, तापमान संरचना और वायुमंडलीय बदलावों को और बेहतर तरीके से समझा जा सकेगा।

हाल ही में बीएचयू की शोध टीम ने इसरो द्वारा बेंगलुरु में आयोजित राष्ट्रीय बैठक में हिस्सा लिया, जहां वीनस से संबंधित शोध और भविष्य की वैज्ञानिक योजनाओं पर विस्तृत चर्चा की गई। इस अंतरराष्ट्रीय परियोजना का नेतृत्व कनाडा की कार्लटन यूनिवर्सिटी के डा. रिचर्ड अर्न्स्ट और डा. हफीदा एल बिलाली कर रहे हैं। बीएचयू की टीम का समन्वय विज्ञान संकाय के डीन प्रो. राजेश के श्रीवास्तव कर रहे हैं। टीम में शोधार्थियों के साथ मास्टर्स की छात्राएं भी शामिल हैं, जो सतह की छवियों का विश्लेषण कर रही हैं।

शोध का उद्देश्य न केवल वीनस की सतह के भूवैज्ञानिक इतिहास को समझना है, बल्कि पृथ्वी और वीनस के बीच की समानताओं और भिन्नताओं की तुलना करना भी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि दोनों ग्रहों के विकास क्रम की तुलना से यह समझने में भी मदद मिलेगी कि पृथ्वी पर जीवन संभव होने के पीछे कौन से भूवैज्ञानिक कारक जिम्मेदार रहे।

वीनस का तापमान 450 डिग्री सेल्सियस से अधिक है और इसका वातावरण बेहद घना है। ऐसे ग्रह के भीतर की स्थितियों को समझना आसान नहीं है, लेकिन वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वर्तमान शोध और आने वाला शुक्रयान मिशन वीनस के कई अनसुलझे रहस्यों से पर्दा उठाएगा। बीएचयू का यह शोध भारत की ग्रह विज्ञान में बढ़ती भूमिका का उदाहरण बन रहा है।

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